सरकार ने हाल ही में NDTV के ब्यूरो प्रमुख नाज़िर मसूदी, रॉयटर्स के वरिष्ठ प्रतिनिधि फ़य्याज़ बुखारी और एसोसिएटेड प्रेस के ऐजाज़ हुसैन को जल्दी-से-जल्दी उन्हें श्रीनगर में मिले हुए सरकारी बंगले खाली करने का निर्देश दिया है। कारण बताया गया है कि वे उन बंगलों के आवंटन की न्यूनतम शर्तें पूरी नहीं करते।
आर्गेनाइज़र में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक इन तथाकथित पत्रकारों को यह बंगले पिछली सरकार ने उनकी “पत्रकारिता की सेवाओं” के बदले न्यूनतम शर्तें पूरी न करने पर भी आवंटित कर दिए थे। अब चूँकि वे शर्तों को पूरा नहीं करते थे, तो उन्हें हुआ यह आवंटन सरकार के किसी भी नियम के हिसाब से आगे नहीं बढ़ाया जा सकता था। अतः उनका वहाँ निवास करते रहना साफ-साफ अवैध था। इसीलिए सरकार ने उन पत्रकारों को बंगले खाली करने के निर्देश दिए।
ज़ाहिर तौर पर इससे कश्मीर का, और उससे जुड़े देश भर का, पत्रकारिता का समुदाय विशेष नाराज़ तो हो ही गया। इतने साल से पिछली सरकारों से मिलती आ रही सुविधाओं की लत जो लग गई थी। इसीलिए इस समुदाय विशेष की संस्था कश्मीर प्रेस क्लब ने बयान जारी कर राज्य प्रशासन (यानि कि केंद्र सरकार) पर ‘प्रताड़ना’ का आरोप लगाया है- यानि उनके हिसाब से इन पत्रकारों ने जो बंगलों पर अवैध कब्ज़ा कर रखा था, उसे हटाने की कोशिश इन्हें प्रताड़ित करना है। उनके हिसाब से यह प्रताड़ना इसलिए है, ताकि घाटी के पत्रकार एक लाइन विशेष को पकड़ कर ही रिपोर्टिंग करें।
यह समुदाय विशेष वाले पत्रकार केवल कश्मीर के पत्रकारों का समुदाय विशेष हो, ऐसा भी नहीं है। इसे राष्ट्रीय स्तर पर प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया और एडिटर्स’ गिल्ड का पूरा समर्थन रहता है।
यहाँ इन पत्रकारों के बारे में यह जान लेना ज़रूरी है कि इनमें से कई न केवल जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान की ही भाषा बोल रहे हैं, बल्कि उसे हिंदुस्तान के खिलाफ प्रोपेगंडा करने के लिए ‘कच्चा माल’ ही नहीं, पकी-पकाई खीर ही थाली में परोस रहे हैं।
उदाहरण हैं NDTV के नाज़िर मसूदी, जिनकी श्रीनगर से की गई ‘रिपोर्टिंग’ के दम पर इमरान खान की पीटीआई हिंदुस्तान को गालियाँ बकती फिर रही है। मसूदी ने बिना किसी वीडियो सबूत या लोगों के नाम बताए यह दावा किया कि उन्होंने श्रीनगर के स्थानीय लोगों से बात की हैं और वे बस इस इंतज़ार में हैं कि सुरक्षा इंतज़ाम ढीले हों और वे हिंदुस्तान के खिलाफ हिंसक विरोध प्रदर्शन के नाम पर जिहादी हिंसा शुरू करें।
जिहाद के लिए आने-जाने वाले पैसे की जाँच के दौरान NIA ने भी दावा किया था कि कश्मीर प्रेस क्लब और कश्मीर एडिटर्स’ गिल्ड के सदस्यों में से कई ISI से वित्तपोषित होते हैं। कश्मीर में अशांति किसी-न-किसी तरह साबित करने के लिए, बल्कि वहाँ अशांति फ़ैलाने के लिए, कई तरह का प्रोपेगंडा, कई तरह की फेक न्यूज़ वहाँ के पत्रकारों द्वारा फैलाई जा रही है। एक झूठा नैरेटिव बनाने की कोशिश हो रही है कि हिंदुस्तानी सुरक्षा बल कश्मीर में ‘अत्याचार’ कर रहे हैं।