श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में 97 लोगों की मौत हुई। ये ट्रेनें लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मजदूरों को उनके घर तक पहुॅंचाने के लिए चलाई गईं थी। मृतकों में करीब 60 पहले से ही बीमार थे। नरेंद्र मोदी सरकार ने यह जानकारी संसद में दी है।
राज्यसभा में तृणमूल कॉन्ग्रेस के सांसद डेरेक ओब्रायन द्वारा पूछे गए एक प्रश्न के लिखित उत्तर में [pdf] में शुक्रवार को रेल मंत्री पीयूष गोयल ने इन विशेष गाड़ियों में मरने वालों की संख्या का आँकड़ा उपलब्ध कराया।
रेलमंत्री ने कहा, “राज्य पुलिस द्वारा उपलब्ध कराए गए आँकड़े के आधार पर वर्तमान कोविड-19 संकट के दौरान श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में यात्रा करते हुए 9 सितंबर, 2020 तक 97 लोगों की मौत की सूचना है।” गोयल ने बताया कि इन 97 मामलों में से राज्य पुलिस ने 87 मामलों में शवों को पोस्टमार्टम के लिए भेजा।
रेल मंत्री ने स्पष्ट रूप से कहा कि अब तक संबंधित राज्य पुलिस बलों से प्राप्त कुल 51 पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट से पता चला है कि उनकी मौत का कारण हृदय गति रुकने, दिल की बीमारी, ब्रेन हेमरेज, पूर्व से ही क्रोनिक बीमारी या अन्य लिवर या फेफड़े की बीमारी का कारण बताया गया है।
प्रवासियों की प्राकृतिक मौत पर रेल मंत्री की प्रतिक्रिया काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि पिछले कुछ महीनों से वामपंथी मीडिया इस मुद्दे प्रोपेगेंडा कर रही थी। जिसमें बताया जा रहा था कि ये मौतें भूख से हुई हैं।
जब से मोदी सरकार ने प्रवासी मजदूरों को घर वापस भेजने के लिए विशेष श्रमिक ट्रेनों की शुरुआत की, वामपंथी-उदारवादी मीडिया समूहों ने श्रमिक ट्रेनों में कुछ प्रवासी श्रमिकों की मृत्यु पर सरकार को घेरने के लिए भ्रामक रिपोर्ट के जरिए प्रचार करना शुरू कर दिया था। विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स ने दावा किया था कि यात्रा के दौरान इन प्रवासी मजदूरों की मौत भूख से हुई थी।
वामपंथी गिरोह द्वारा किए जा रहे भ्रामक रिपोर्ट्स को सरकार ने समय-समय पर खारिज कर दिया था, लेकिन कुछ मीडिया ने लगातार ऐसी खबरों का प्रचार-प्रसार जारी रखा कि प्रवासी मजदूर भूख के कारण मर गए, क्योंकि सरकार उन्हें खाना देना भूल गई।
इसकी शुरुआत हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट से हुई। 30 मई को एक रिपोर्ट प्रकाशित कर दावा किया गया था कि 9-27 मई के बीच 80 प्रवासियों की मौत हो गई थी। वामपंथी मीडिया समूहों ने इस तथ्य को ऐसे पेश किया जैसे मौतें भूख से हुई हों।
अक्सर फर्जी खबरों का प्रचार-प्रसार करने वाले लेफ्ट विंग स्क्रॉल ने हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के आधार पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी, लेकिन रिपोर्ट को अपने आधार पर तोड़-मरोड़कर पेश किया गया। बता दें इस पोर्टल को कई बार फेक न्यूज़ फैलाते हुए पकड़ा भी गया है। स्क्रॉल ने दावा किया, “हिंदुस्तान टाइम्स द्वारा समीक्षा की गई रेलवे प्रोटेक्शन फोर्स के आँकड़ों के मुताबिक, लॉकडाउन के बीच अपने गाँव के लिए विशेष ट्रेनों की यात्रा करते हुए 9 मई से 27 मई के बीच लगभग 80 प्रवासी श्रमिकों की भूख और गर्मी से मृत्यु हो गई।”
मोदी सरकार पर हमला करने के लिए प्रवासी मजदूरों की मौत के मुद्दे का फायदा उठाने के लिए न केवल स्क्रॉल, वामपंथी प्रचार वेबसाइट द वायर ने भी इस फर्जी खबर को फैलाने में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। द वायर ने यह दावा करके गलत सूचना देने का प्रयास किया था कि कई प्रवासी मजदूरों ने संक्रमण के दौरान भूख और डिहाइड्रेशन के कारण अंतिम साँस ली थी।
एक अन्य तथाकथित स्व-घोषित फैक्ट चेक वेबसाइट ऑल्ट न्यूज़ (जिसके सह-संस्थापक पर बच्ची के ऑनलाइन उत्पीड़न का आरोप है) ने भी इसी तरह के फेक न्यूज़ को बढ़ावा दिया था। उन्होंने दावा किया कि रेलवे ने न तो भोजन दिया और न ही पानी दिया। इसी वजह से भूख के कारण श्रमिक ट्रेनों में प्रवासी मजदूरों की मौत हो गई।
इसी तरह कारवां इंडिया की पत्रकार विद्या कृष्णन भी श्रमिक एक्सप्रेस के बारे में झूठ फैला रही थी। स्व-घोषित पत्रकार विद्या कृष्णन ने दावा किया था कि 40 श्रमिक एक्सप्रेस ट्रेनें अपना रास्ता भटक गई और सरकार यात्रियों को खाना देना भूल गई, जिसके कारण कम से कम 10 लोगों की मौत हो गई।
हालाँकि, पीआईबी फैक्ट चेकिंग वेबसाइट ने फर्जी खबर फैलाने वालों को लेकर उस वक्त ट्विटर पर कहा था कि मृत्यु का कारण शव परीक्षण और उचित कानूनी प्रक्रिया के बिना निर्धारित नहीं किया जा सकता है।
गौरतलब है कि केंद्र द्वारा सुप्रीम कोर्ट को सूचित करने के बावजूद कि श्रमिक ट्रेनों में मौत भूख या भोजन की कमी के कारण नहीं हुई थी, इन मीडिया आउटलेटों ने इस तरह की गलत सूचना को फैलाना जारी रखा था।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत से कहा था कि एक जाँच में पाया गया कि भोजन, पानी या दवा की कमी से कोई मौत नहीं हुई। जिन लोगों की मृत्यु हुई है उन्हें पहले से कुछ बीमारियाँ थी।
ऑपइंडिया ने भी मृत प्रवासियों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट की समीक्षा की थी। 30 ऐसी पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला था कि प्रवासियों की मौत भूख से नहीं हुई है। अन्य मृतक व्यक्तियों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट्स से यह भी पता चला कि उनकी मृत्यु प्राकृतिक कारणों से हुई थी और पहले से मौजूद बीमारी की वजह से, न कि भूख के कारण।
उल्लेखनीय है कि मोदी सरकार ने लॉकडाउन अवधि के दौरान प्रवासी मजदूरों को उनके गृह राज्यों तक पहुँचाने के लिए 1 मई को श्रमिक स्पेशल ट्रेनों का संचालन शुरू किया था। रेल मंत्रालय ने संसद में बताया, मंत्रालय ने कुल 4,621 श्रमिक स्पेशल ट्रेनें 1 मई से 31 अगस्त के बीच चलाई थी। इनसे 6,319,000 यात्रियों को उनके गृह राज्य में पहुँचाया गया था।