प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हालिया वीडियो ‘मन की बात’ पर भारतीय जनता पार्टी यूट्यूब चैनल को 24 घंटे से कम समय में 7 लाख डिस्लाइक झेलने पड़े। ऐसे में कॉन्ग्रेस और आम आदमी पार्टी समर्थकों ने ये फैलाना शुरू कर दिया कि चूँकि सरकार ने JEE और NEET परीक्षाओं को कराने में अपना समर्थन दिया, इसी वजह से लोग नाराज हैं और वीडियो पर डिस्लाइक दबा कर अपना रोष जता रहे हैं।
इतना ही नहीं, रविवार को तो यह प्रोपगेंडा भी फैलाया गया कि PMO की ओर से वीडियो पर कमेंट को बंद कर दिया गया था। क्योंकि उन्हें डर था कि छात्र नाराज हैं और उस वीडियो पर अपना गुस्सा व्यक्त कर सकते हैं।
हालाँकि, मालूम हो कि सच्चाई यह नहीं है। मन की बात प्रोग्राम शुरू होने के समय से ही वीडियोज पर कमेंट की सुविधा हमेशा बंद रहती है। ऐसा इसलिए क्योंकि ये वीडियोज यूट्यूब के उस सेक्शन में जाती है, जहाँ इन्हें ‘बच्चों के लिए’ चिह्नित किया जाता है और यूट्यूब की नीति ऐसी है कि इस सेक्शन के लिए कमेंट बंद ही होते हैं।
मगर, भाजपा विरोधियों को फैक्ट से क्या सरोकार। उनके लिए तो जब एक हथकंडा काम नहीं आया, तो उन्होंने छात्रों की नाराजगी को अपना हथियार बना लिया। इसी बाबत बीजेपी के आईटी इंचार्ज अमित मालवीय ने सोमवार को ट्वीट किया।
अपने ट्वीट में उन्होंने बताया कि एक संयोजित अभियान के तहत अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क को गठित करके इस वीडियो को डिस्लाइक करवाया गया। ट्विटर पर उन्होंने बताया कि कॉन्ग्रेस लगातार पीएम मोदी के ‘मन की बात’ वीडियो को यूट्यूब पर डिस्लाइक करवाने के प्रयास कर रही थी।
अमित मालवीय ने यह भी बताया कि यूट्यूब वीडियो पर कुल 2% डिस्लाइक भारत से आया है। जबकि 98% डिस्लाइक करने वाले अकॉउंट बाहर के हैं। इनमें अधिकांश तुर्की के सोशल मीडिया अकॉउंट हैं। यूट्यूब का स्टैटिक्स और एनालिटिकल पेज ने भी डिस्लाइक करने वाले यूजर्स का डेमोग्राफिक डेटा एडमिन को अलग-अलग जगहों का दर्शाया है।
Over the last 24hrs, there has been a concerted effort to dislike Mann Ki Baat video on YouTube… So low is the Congress on confidence that it has been celebrating it as some sort of conquest!
— Amit Malviya (@amitmalviya) August 31, 2020
However, data from YouTube suggests that only 2% of those dislikes are from India…
इसके अलावा ऑपइंडिया को कई सूत्रों से पता चला है कि अंतरराष्ट्रीय सोशल मीडिया नेटवर्क के जरिए पीएम मोदी के मन की बात वाली वीडियो को डिस्लाइक करना एक पूर्व योजना का नतीजा थी।
मालवीय ने भी अपने ट्वीट में लिखा कि सोशल मीडिया वेबसाइटों पर कॉन्ग्रेस के Anti-JEE-NEET अभियान में विदेशी लोगों की भागीदारी देखी गई है। खासकर तुर्की के लोगों की। एक दिलचस्प बात यह भी देखने वाली है कि तुर्की के राष्ट्रपति द्वारा पाकिस्तान को कश्मीर मुद्दे पर समर्थन दिए जाने के कुछ दिन बाद नवंबर 2019 में कॉन्ग्रेस ने इंस्तांबुल में अपना ऑफिस खोला था।
यहाँ बता दें कि मालवीय के दावों की पुष्टि करते ट्विटर पर बड़ी तादाद में कई ऐसे लोगों के ट्वीट सामने आए हैं, जिन्होंने भारत में होने जा रहे JEE-NEET की परीक्षाओं पर केंद्र सरकार का विरोध किया, लेकिन उनका अक़ॉउंट बताता है कि वह तुर्की के हैं। इनमें से अधिकांश अकॉउंट हाल में बनाए गए हैं और इनमें प्राइवेसी भी लगाई गई है।
खास बात यह है कि ट्विटर पर मोदी विरोध में अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क ने केवल जेईई-नीट पर ही पहली बार नहीं बोला। बल्कि श्रीलंका में चुनाव के मद्देनजर भी भारत-श्रीलंका के संबंधों पर ट्वीट देखने को मिल रहे हैं।
ट्विटर पर एक तुर्की के यूजर ने श्रीलंका चुनावों के नजदीक होने पर स्वराज की एक रिपोर्ट को शेयर किया। जिसमें श्रीलंका और भारत के रिश्तों पर बात थी। इस ट्वीट के साथ यूजर ने कई हैशटैग इस्तेमाल किया। शायद ऐसा इसलिए क्योंकि वह मोदी सरकार के ख़िलाफ़ श्रीलंका के नेटवर्क को उकसाना चाहता हो।
ऐसे ही तुर्की का एक अन्य सोशल मीडिया अकॉउंट भी भारत के आंतरिक मामलों में दिलचस्पी ले रहा है। जिसे देखकर पता चलता है कि उन लोगों का जेईई-नीट से भले ही कोई लेना-देना नहीं है, मगर उन्हें ट्विटर पर मोदी सरकार के ख़िलाफ़ ट्वीट्स का प्रोपगेंडा चलाने के लिए रखा गया है।
गौरतलब है कि यह भी पहली बार नहीं है जब कॉन्ग्रेस पर अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क की मदद लेने के आरोप लगे हैं। इससे पहले साल 2017 में राहुल गाँधी की अचानक प्रसिद्धि में वृद्धि देखने को मिली थी। लेकिन यह लोग भारत से नहीं बल्कि रूस, कजाख और इंडोनेशिया के थे, जिनका साथ पाकर राहुल गाँधी की सोशल मीडिया गतिविधियों में काफी उछाल देखने को मिला था।
हालाँकि, बाद में पड़ताल में पता चला था कि राहुल गाँधी का ट्वीट ऐसे लोगों द्वारा रीट्वीट किया जा रहा था, जिनके 10 से भी कम फॉलोवर थे और वह दुनिया के किसी भी मुद्दे पर ट्वीट कर रहे थे। इस मामले में और पिछले मामलों में बस यही समानता है कि इस बार भले ही अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क तुर्की से ज्यादा जुड़ा हुआ दिखाई दे रहा है, लेकिन ये सभी बाहरी लोग वही हैं, जिनका मोदी सरकार से कोई लेना-देना नहीं है। मगर फिर भी वह जेईई-नीट पर फैसले के अलावा अन्य नीतियों पर भी रीट्वीट कर रहे हैं।