कर्नाटक में कॉन्ग्रेस और बीजेपी के बीच सियासी बयानबाजी तेज़ हो गई है। कॉन्ग्रेस विधायक रविकुमार गनिगा ने दावा किया कि बीजेपी ने कॉन्ग्रेस विधायकों को खरीदने के लिए ₹100 करोड़ का ऑफर दिया है। वहीं, इस दावे को उनके ही पार्टी के विधायकों ने खारिज कर दिया।
कॉन्ग्रेस विधायक ने लगाए गंभीर आरोप
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, मांड्या से कॉन्ग्रेस विधायक रविकुमार गनिगा ने कहा कि बीजेपी ने सरकार गिराने के लिए कॉन्ग्रेस विधायकों को ₹100 करोड़ का ऑफर दिया। उन्होंने बताया कि यह ऑफर चिक्कमगलुरु के विधायक थम्मैया और किट्टूर के विधायक बाबासाहेब पाटिल जैसे नेताओं को दिया गया। उन्होंने कहा, “होटल, गेस्ट हाउस और एयरपोर्ट पर मीटिंग्स हुई हैं। हमारे पास ऑडियो, वीडियो, सीडी, पेन ड्राइव और आईक्लाउड में सबूत हैं, जिन्हें जल्द मीडिया के सामने रखा जाएगा।”
गनिगा ने आगे कहा कि पहले ₹50 करोड़ का ऑफर दिया गया था, लेकिन कॉन्ग्रेस विधायकों ने उसे ठुकरा दिया। इसके बाद ₹100 करोड़ का ऑफर आया। उन्होंने बीजेपी पर आरोप लगाया कि यह पैसा पिछली सरकार में हुए भ्रष्टाचार से जुटाया गया है।
थम्मैया ने किया दावे का खंडन
गनिगा के आरोपों पर चिक्कमगलुरु से कॉन्ग्रेस विधायक एचडी थम्मैया ने साफ कहा कि उन्हें किसी ने संपर्क नहीं किया। थम्मैया ने कहा, “मुझे बीजेपी से कोई कॉल या ऑफर नहीं आया। मुझे नहीं पता कि गनिगा ने मेरा नाम क्यों लिया। आप उनसे ही पूछें। मैं पहले बीजेपी में था, लेकिन अब कॉन्ग्रेस का वफादार विधायक हूँ।”
कडूर के विधायक केएस आनंद ने भी कहा कि बीजेपी ने उनसे कोई संपर्क नहीं किया। उन्होंने कहा, “मैं कॉन्ग्रेस का वफादार नेता हूं और पार्टी के छात्र संगठन एनएसयूआई से जुड़कर राजनीति में आया हूँ। बीजेपी के नेताओं की मुझसे बात करने की हिम्मत भी नहीं हुई।”
किट्टूर के विधायक बाबासाहेब पाटिल ने यह माना कि कॉन्ग्रेस सरकार बनने के बाद बीजेपी ने उनसे संपर्क किया था, लेकिन हाल-फिलहाल में ऐसा कोई ऑफर नहीं आया। उन्होंने कहा, “बीजेपी पिछले एक साल से कॉन्ग्रेस विधायकों को तोड़ने की कोशिश कर रही है, लेकिन वे नाकाम रहे हैं। हमारी पार्टी एकजुट है।”
जहाँ एक तरफ गनिगा अपने आरोपों पर अडिग हैं, वहीं उनके पार्टी के ही विधायकों का कहना है कि ऐसा कोई ऑफर नहीं आया। बीजेपी पर आरोपों का जवाब फिलहाल बाकी है, लेकिन कॉन्ग्रेस के भीतर भी इन बयानों को लेकर सवाल उठ रहे हैं। सियासी हलचल के बीच यह देखना दिलचस्प होगा कि इस मुद्दे पर क्या सबूत सामने आते हैं और कर्नाटक की राजनीति में क्या नया मोड़ आता है।