लोकसभा चुनाव 2024 में नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाले एनडीए के सामने अपने अस्तित्व बचाने की लड़ाई लड़ रही कॉन्ग्रेस की अगुवाई वाली इंडी गठबंधन तमाम अंतर्विरोधों से जूझ रही है। केरल में कॉन्ग्रेस और वामदलों की आपसी लड़ाई चल रही है, तो पंजाब में आम आदमी पार्टी और कॉन्ग्रेस की। गुजरात में उसके कैंडिडेट का नामांकन खारिज हो गया, तो मध्य प्रदेश की खजुराहो सीट पर उसकी सहयोगी सपा के कैंडिडेट का।
बात राजस्थान में पहुँची, तो यहाँ तीन पार्टियों के साथ गठबंधन करने के बाद भी उसके सामने नई मुसीबत खड़ी हो गई है। एक तो कॉन्ग्रेस पार्टी को हर सीट पर दमदार कैंडिडेट नहीं मिल रहे और कहीं कैंडिडेट आखिरी समय में मिल गए, और उन्होंने नामांकन दाखिल कर भी दिया, तो अब कॉन्ग्रेस की कार्यकर्ताओं की ड्यूटी लगानी पड़ रही है अपने ही कैंडिडेट को हराने के लिए।
जी हाँ, राजस्थान की बाँसवाड़ा-डूंगरपुर लोकसभा सीट पर कॉन्ग्रेस की यही हालत है। इस लोकसभा सीट पर कॉग्रेस पार्टी और भारत आदिवासी पार्टी (बीएपी) के बीच चुनावी गठबंधन को लेकर बातचीत 2023 के विधानसभा चुनाव के पहले से चल रही थी। लेकिन गठबंधन फाइनल नहीं हो पाया। आखिर में भारत आदिवासी पार्टी ने अपने विधायक राज कुमार रोत को उम्मीदवार घोषित कर दिया। राज कुमार रोत ने नामांकन दाखिल कर दिया और तभी कॉन्ग्रेस ने अरविंद डमोर को टिकट दे दिया। उन्होंने भी नामांकन दाखिल कर दिया। फिर दोनों दलों में समझौता हो गया। नामांकन वापसी के दिन जब समझौता हुआ, तो कॉन्ग्रेस पार्टी ने अपने उम्मीदवार अरविंद डमोर को नामांकन वापस लेने के लिए ढूँढना शुरू कर दिया।
समय बीत गया, अरविंद डमोर ने नामांकन वापस नहीं लिया। यहाँ से बीजेपी के टिकट पर महेंद्रजीत सिंह मालवीय मैदान में हैं। वो अबतक कॉन्ग्रेस में थे। चार बार के विधायक रहे थे और अभी विधायकी और कॉन्ग्रेस पार्टी छोड़कर बीजेपी में आए हैं। बड़े नेता माने जाते हैं। उन्हें हराने के लिए कॉन्ग्रेस और बीएपी ने हाथ तो मिला लिया, लेकिन अब रास्ते में आ गए खुद कॉन्ग्रेस के ही उम्मीदवार अरविंद डमोर
अरविंद डमोर ने कह दिया है कि वो नाम वापस नहीं लेंगे। चूँकि बीएपी पार्टी के साथ कॉन्ग्रेस के वरिष्ठ लोग कोई गठबंधन नहीं चाहते, ऐसे में वो राहुल गाँधी की इज्जत बचाने के लिए चुनाव लड़ रहे हैं। लेकिन दोराहे पर खड़े हो गए हैं कॉन्ग्रेस के नेता। पार्टी के नेताओं को प्रचार करना पड़ रहा है कि वो अरविंद डमोर को वोट न दें, भले ही वो कॉन्ग्रेस के अधिकृत प्रत्याशी हैं। क्योंकि अब कॉन्ग्रेस और बीएपी के बीच समझौता हो गया है, ऐसे में कॉन्ग्रेस के लोग बीएपी को वोट करें। हालाँकि अरविंद डमोर कह रहे हैं कि वो पूरी ताकत से चुनाव लड़ रहे हैं। अरविंद का कहना है कि बीएपी से गठबंधन के विरोधी कॉन्ग्रेसी खेमे का उन्हें पूरा समर्थन हासिल है। वो चुनाव में जीत दर्ज करेंगे।
अब चुनाव परिणाम कुछ भी हों, लेकिन ये साफ है कि बाँसवाड़ा-डूँगरपुर लोकसभा सीट पर कॉन्ग्रेस कार्यकर्ता अपनी ही पार्टी के सिंबल पर चुनाव लड़ रहे प्रत्याशी के खिलाफ चुनाव प्रचार कर रहे हैं। बीएपी ने भी पूरा जोर लगाया हुआ है और ये कोशिश कर रही है कि कॉन्ग्रेस के वोट उसे मिले। वहीं, बीजेपी के प्रत्याशी महेंद्रजीत मालवीय कॉन्ग्रेस के पुराने नेता रहे हैं। ऐसे में अपने प्रभाव वाले कॉन्ग्रेसी वोटों को तो वो अपने पास खींच ही रहे हैं, साथ ही उनके विरोध के वोट भी बीएपी और कॉन्ग्रेस में बंट रहे हैं। इस सीट पर 26 अप्रैल को मतदान किया जाएगा। ऐसे में चुनावी जीत किसे मिलती दिख रही है, ये अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। हालाँकि आखिरी नतीजों के बारे में पता तो 4 जून को ही लग पाएगा।
लोकसभा ही नहीं, विधानसभा उप-चुनाव में भी यही हाल
बाँसवाड़ा-डूँगरपुर लोकसभा सीट से बीजेपी के उम्मीदवार महेंद्रजीत सिंह मालवीय चुनाव लड़ रहे हैं। वो अभी तक बागीदौरा विधानसभा से विधायक थे। उन्होंने विधानसभा से भी इस्तीफा दे दिया। ऐसे में यहाँ उपचुनाव हो रहे हैं। कॉन्ग्रेस में कन्फ्यूजन सिर्फ लोकसभा सीट को लेकर ही नहीं है, बल्कि बागीदौरा विधानसभा सीट पर उप-चुनाव को लेकर भी है। यहाँ से कॉन्ग्रेस ने पहले टिकट दिया कमल कांत कटारा को, लेकिन किसी कारणों से वो नामांकन ही दाखिल नहीं कर पाए। उनकी जगह पर कॉन्ग्रेस के सिंबल पर कपूर सिंह ने पर्चा दाखिल कर दिया।
लेकिन लोकसभा सीट जैसा मामला यहाँ भी फंस गया, क्योंकि इस उप-चुनाव को लेकर भी कॉन्ग्रेस और बीएपी में सहमति बन गई। अब यहाँ से कॉन्ग्रेस छोड़कर बीजेपी में आए सुभाष तंबोलिया बीजेपी के उम्मीदवार हैं। उनके मुकाबले बीएपी ने विधानसभा चुनाव में हारे जयकृष्ण पटेल को फिर से मैदान में उतारा है। वहीं, कॉन्ग्रेस के सिंबल पर कपूर सिंह दावेदारी पेश कर रहे हैं। उन्हें भी कॉन्ग्रेस ने नाम वापस लेने के लिए कहा, लेकिन उन्होंने भी नामांकन वापस नहीं लिया और अब पूरी ताकत से चुनाव लड़ रहे हैं। ऐसे में अब कॉन्ग्रेस के कार्यकर्ता उप-चुनाव में भी यही दुहाई दे रहे हैं कि कॉन्ग्रेस के समर्थक वोटर कॉन्ग्रेस को वोट न देकर बीएपी को अपना वोट दें। खैर, यहाँ भी 26 अप्रैल को मतदान होगा और नतीजे 4 जून को सामने आएँगे।