लोकसभा में सोमवार (दिसंबर 9, 2019) को जेडीयू द्वारा नागरिकता संशोधन विधेयक का समर्थन किए जाने के बाद पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर ने अपनी पार्टी के प्रति निराशा जाहिर की। उन्होंने कहा कि ये विधेयक धर्म के आधार पर भेदभाव करता है। साथ ही उन्होंने कहा कि यह उनकी पार्टी के संविधान से मेल नहीं खाता है।
देर रात विधेयक पारित होने के बाद उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा, “JDU द्वारा कैब को समर्थन देता देख निराश हुआ। यह विधेयक धर्म के आधार पर नागरिकता के अधिकार में भेदभाव करता है। यह हमारी पार्टी के संविधान से मेल नहीं खाता, जिसमें पहले पन्ने पर ही धर्मनिरपेक्ष शब्द तीन बार आता है। पार्टी का नेतृत्व गाँधी के सिद्धांतों को मानने वाला है।”
Disappointed to see JDU supporting #CAB that discriminates right of citizenship on the basis of religion.
— Prashant Kishor (@PrashantKishor) December 9, 2019
It’s incongruous with the party’s constitution that carries the word secular thrice on the very first page and the leadership that is supposedly guided by Gandhian ideals.
बता दें कि जिस विधेयक को JDU के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर द्वारा धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ बताया जा रहा है, उसको लोकसभा में अपना समर्थन देते हुए उनकी पार्टी के ही नेता राजीव रंजन उर्फ़ ललन सिंह कह चुके हैं कि जदयू विधेयक का समर्थन इसलिए कर रही है क्योंकि यह धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ नहीं है।
उन्होंने कहा कि सदन में कुछ लोग अपने हिसाब से धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा गढ़ रहे हैं। उनके अनुसार यह विधेयक किसी भी तरह से धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ नहीं है। सिंह ने यह भी कहा कि इस विधेयक को लेकर पूर्वोत्तर के लोगों को कुछ शंकाएं थीं, लेकिन अब इन शंकाओं को भी दूर कर दिया गया है। उन्होंने कहा कि जो लोग इतने समय से न्याय की आस लगाए हुए थे, उन्हें यह बड़ी राहत प्रदान करेगा।
उल्लेखनीय है कि जदयू नेता इससे पहले असम में एनआरसी लागू करने पर भी अपना बयान देते हुए उसे कारगर समाधान के बजाय ढुलमुल रवैया बता चुके हैं। वे कह चुके हैं कि 15 से अधिक राज्यों में गैर-बीजेपी मुख्यमंत्री हैं और ये ऐसे राज्य हैं, जहाँ देश की 55 फ़ीसदी से अधिक जनसंख्या है। ऐसे में आश्चर्य यह है कि उनमें से कितने लोगों से NRC पर विमर्श किया गया और कितने अपने-अपने राज्यों में इसे लागू करने के लिए तैयार हैं!
15 plus states with more than 55% of India’s population have non-BJP Chief Ministers. Wonder how many of them are consulted and are on-board for NRC in their respective states!!
— Prashant Kishor (@PrashantKishor) November 20, 2019
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