महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने उस समय अपना आपा खो दिया जब रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने ‘अस्सलामु अलैकुम’ के साथ उनका अभिवादन किया। महाराष्ट्र टाइम्स में प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया है कि राजनाथ सिंह ने ऐसा तब किया जब वे जब एनडीए के राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू के लिए समर्थन माँगने के लिए उन्हें फोन किया था।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, उद्धव ठाकरे ने मातोश्री स्थित अपने आवास पर शिवसेना के शेष विधायकों के साथ बैठक के दौरान इस घटना के बारे में बात की। उद्धव ने बैठक में राजनाथ सिंह के साथ अपने फोन कॉल को याद करते हुए कहा, “हम महा विकास अघाड़ी गठबंधन का हिस्सा हो सकते हैं, लेकिन हमने हिंदुत्व को नहीं छोड़ा है।”
बता दें कि उद्धव ठाकरे ने मंगलवार (12 जुलाई, 2022) को शिवसेना के उन विधायकों के साथ अपने आवास मातोश्री में एक बैठक बुलाई थी जो अभी भी उनके प्रति वफादार हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि बैठक में 30 से 35 सदस्यों ने भाग लिया, हालाँकि इसमें ठाकरे आवास पर बैठक में मौजूद सदस्यों के नामों का खुलासा नहीं किया गया है। बैठक के दौरान, उद्धव ने कहा कि उन्हें केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह का फोन आया, जिन्हें एनडीए के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के लिए विपक्षी दलों के बीच आम सहमति बनाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है।
हालाँकि, राजनाथ सिंह के अभिवादन ‘अस्सलामु अलैकुम’ ने महाराष्ट्र के पूर्व सीएम का पारा हाई कर दिया, जो कथित तौर पर केंद्रीय मंत्री द्वारा उन्हें बधाई देने के लिए अरबी अभिवादन के इस्तेमाल से भौचक रह गए थे।
बता दें कि ‘अस्सलामु अलैकुम’ अरबी शब्द हैं जिसका इस्तेमाल मुस्लिम एक-दूसरे को दुआ-सलाम करने के लिए करते हैं। वहीं केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह की बातें सुनकर, उद्धव ठाकरे का गुस्सा भड़क गया और उन्होंने कथित तौर पर कहा, “भले ही हम महा विकास अघाड़ी गठबंधन का हिस्सा थे, पर हमने हिंदुत्व को नहीं छोड़ा है। आपको इसे ध्यान में रखना चाहिए।”
रिपोर्ट के अनुसार, ठाकरे की अस्वीकृति के बाद, राजनाथ सिंह ने उन्हें “जय श्री राम” के साथ शुभकामनाएँ दी।
उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना पर हिंदुत्व को धोखा देने का आरोप
गौरतलब है कि 2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद जब से शिवसेना ने उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों कॉन्ग्रेस और एनसीपी के साथ सरकार बनाने के लिए गठबंधन किया है, तभी से मुख्यमंत्री पद की खातिर हिंदुत्व का त्याग करने का आरोप लगता रहा है।
वहीं शिवसेना के हिंदुत्व के मुद्दे को छोड़ने का पहला संकेत तब सामने आया जब महा विकास अघाड़ी सरकार के सहयोगियों के बीच एक न्यूनतम साझा कार्यक्रम (सीएमपी) तैयार किया गया था। उसको देखकर ऐसा लगा था कि सत्ता की भूख में शिवसेना ने हिंदुत्व का त्याग कर दिया था। दरअसल, ऐसी अटकलें थीं कि कॉन्ग्रेस और एनसीपी शिवसेना से आश्वासन चाहते थे कि सरकार बनने के बाद उनका हिंदुत्व का एजेंडा पीछे रहने वाला है।
गौरतलब है कि एनसीपी और कॉन्ग्रेस के साथ सरकार बनाने के बाद, शिवसेना ने हिंदुत्व के विचारक और स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर के लिए भारत रत्न की अपनी माँग को पीछे छोड़ दिया था। यह दर्शाता है कि शिवसेना अब हिंदुत्व को उतनी तीव्रता से आगे नहीं बढ़ाएगी, जितनी पहले कभी किया करती थी। महाराष्ट्र में मुस्लिमों के लिए 5 प्रतिशत तक का आरक्षण एक और ऐसी घटना थी जिसने यह और साफ़ कर दिया था कि शिवसेना ने हिंदुत्व के अपने अजेंडे को छोड़ दिया है।
वहीं हाल ही में, महाराष्ट्र में सरकार चलाने के ढाई साल बाद, शिवसेना के वरिष्ठ नेता एकनाथ शिंदे नेतृत्व में पार्टी के कई विधायकों ने हिंदुत्व के साथ विश्वासघात का ही हवाला देते हुए उद्धव ठाकरे के खिलाफ बगावत कर दी थी। इस विद्रोह के परिणामस्वरूप ही महा विकास अघाड़ी सरकार का पतन हुआ, जिसके बाद एकनाथ शिंदे भाजपा के समर्थन से महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने।