मध्य प्रदेश में जारी सियासी उठापटक के बीच कॉन्ग्रेस के लिए कहीं से भी राहत की खबर नहीं आ रही। मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, और छत्तीसगढ़ के बाद अब झारखंड के कॉन्ग्रेसी विधायकों में असंतोष की खबर सामने आ रही है। इससे झारखंड में राज्यसभा की चुनाव रोचक हो गया है। कॉन्ग्रेस नेताओं की नाराजगी के बाद अब तक बीजेपी के खिलाफ वोटिंग करने वाले निर्दलीय भी इस पचड़े में नहीं पड़ना चाहते हैं।
दरअसल, राज्य के कॉन्ग्रेसी विधायक फुरकान अंसारी को राज्यसभा चुनाव के लिए उम्मीदवार नहीं बनाए जाने से नाराज हैं। नाराज कॉन्ग्रेस नेता शनिवार (मार्च 14, 2020) को अंसारी के आवास पर जुटे भी। इस बीच कॉन्ग्रेस पार्टी अध्यक्ष साेनिया गाँधी और पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी काे 4 मार्च लिखा गया एक पत्र भी सार्वजनिक हुआ। इसमें कई विधायकों ने अंसारी को उम्मीदवार बनाने की अनुशंसा की थी। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार राज्य के 18 कॉन्ग्रेस विधायकों में 17 ने फुरकान के टिकट का समर्थन किया था। पत्र पर पार्टी की एकमात्र विधायक दीपिका पांडेय का हस्ताक्षर नहीं हैं जो इस वक्त विदेश में हैं। बावजूद इसके आलाकमान ने शहजादा अनवर काे उम्मीदवार बना दिया। जिस पत्र पर विधायकों के हस्ताक्षर थे वह कोलेबिरा से कॉन्ग्रेस के विधायक नमन विक्सल कोगाड़ी ने लिखी थी। इस की पुष्टि स्वयं कोलेबिरा विधायक ने भी की है।
जिस पत्र पर विधायकों के हस्ताक्षर थे वह कोलेबिरा से कॉन्ग्रेस के विधायक नमन विक्सल कोगाड़ी ने लिखी थी। इस की पुष्टि स्वयं कोलेबिरा विधायक ने भी की है।
पत्र में जिक्र किया गया है कि लोकसभा में झारखंड राज्य से किसी भी अल्पसंख्यक को प्रत्याशी नहीं बनाया गया था। जबकि अल्पसंख्यकों की कुल आबादी 16.70% है और इस कारण इस समुदाय से ही एक कार्यकर्ता को राज्यसभा भेजा जाने की बात उठाई गई थी। हाईकमान को लिखे गए इस पत्र में स्पष्ट रूप से फुरकान अंसारी को राज्यसभा भेजे जाने का जिक्र किया गया है। तमाम नेताओं द्वारा प्राथमिकता के तौर पर फुरकान अंसारी का नाम आगे रखे जाने के बावजूद उनकी जगह अल्पसंख्यक कोटे से ही शहजादा अनवर को ही प्रत्याशी बनाया गया है।
चुनाव में झामुमो प्रमुख शिबू सोरेन की जीत पक्की मानी जा रही है। भाजपा और कॉन्ग्रेस के बीच कड़ी टक्कर होती दिख रही है। फिलहाल मुकाबले में भाजपा की स्थिति अपेक्षाकृत बेहतर है। झारखंड में राज्यसभा की एक सीट निकालने के लिए 27 विधायकों की आवश्यकता है। इस लिहाज से यूपीए को 54 विधायकों का समर्थन चाहिए। कॉन्ग्रेस, झामुमो व राजद का संयुक्त संख्या बल 49 है। भाजपा की बात करें तो बाबूलाल मरांडी के आने के बाद विधायकों की संख्या 26 हो जाती है। आजसू के दो विधायकों का साथ मिला तो संख्या बल 28 होगा।
ऐसे में कॉन्ग्रेस की नैया पार होने की उम्मीद नहीं दिखती। असल में कॉन्ग्रेस को झामुमो से दो प्रथम वरीयता के वोट की आस है। ऐसा होने पर सोरेन को 27 वोट मिलेंगे। इस सूरत में वे जीत तो जाएंगे लेकिन उस स्थिति में उनके वोट बीजेपी उम्मीदवार से कम हो सकते हैं। इससे सत्ताधारी झामुमो की फजीहत हो सकती है।