गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपाणी ने शनिवार (11 सितंबर, 2021) को राज्यपाल आचार्य देवव्रत को अपना इस्तीफा सौंप दिया। अचानक हुई इस राजनीतिक हलचल से भाजपा को अंदरखाने से जानने वाले भी हैरान रह गए। इसके ठीक एक दिन पहले केंद्रीय गृह मंत्री व पूर्व भाजपा अध्यक्ष अमित शाह अहमदाबाद में थे, लेकिन इस दौरान उनका कोई कार्यक्रम नहीं हुआ और न ही किसी से मुलाकात की खबर सामने आई।
गुजरात में भाजपा के प्रभारी व केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव का कहना है कि पार्टी के नियमों के हिसाब से नए मुख्यमंत्री का ऐलान किया जाएगा। उनके बयान से ये आशंका मिट जाती है कि भाजपा समय-पूर्व चुनाव चाहती है। गुजरात में एक वर्ष बाद चुनाव हैं और विजय रुपाणी को बतौर सीएम भी 5 साल हो गए थे। बीच में 2017 का विधानसभा चुनाव भी आया, जिसमें पार्टी ने जीत दर्ज की।
भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) बीएल संतोष फ़िलहाल अहमदाबाद में ही हैं और पार्टी के विधायकों से मुलाकात कर रहे हैं। मंगलवार को राज्य में पार्टी के सभी विधायकों की बैठक भी बुलाई गई है, जिसमें नए नेता के नाम पर मुहर लगेगी। जब गुजरात में सारी हलचल तेज़ थी, उस वक़्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से अहमदाबाद के सरदारधाम भवन के भूमिपूजन कार्यक्रम में हिस्सा ले रहे थे।
जो दो नाम सबसे ज्यादा सामने आ रहे हैं, उनमें से एक केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया का है। दूसरा नाम उप-मुख्यमंत्री नितिन पटेल का है। गुजरात मोदी-शाह का गृह राज्य है, ऐसे में यहाँ भाजपा का प्रदर्शन आलाकमान के साख से भी जुड़ा हुआ है। मनसुख मंडाविया की उम्र अभी 50 साल भी नहीं हुई है, ऐसे में भाजपा में युवाओं को तरजीह देने वाली नीति के तहत उनके पक्ष में पलड़ा झुका हुआ लग रहा है।
लेकिन, सवाल ये है कि पार्टी को अचानक नेतृत्व परिवर्तन की ज़रूरत क्यों पड़ गई? याद किया जाए तो पिछले कुछ महीनों में उत्तराखंड में 2 बार और कर्नाटक में भी नेतृत्व बदला जा चुका है। उत्तराखंड में त्रिवेंद्र सिंह रावत की जगह तीर्थ सिंह रावत को बिठाया गया, लेकिन समस्याएँ कम नहीं हुईं तो 6 महीने बाद फिर नेतृत्व परिवर्तन कर पुष्कर सिंह धामी पर भरोसा जताया गया। कर्नाटक में भाजपा के सबसे वरिष्ठ नेता येदियुरप्पा का इस्तीफा लेकर उनके ही शिष्य कहे जाने वाले बसवराज बोम्मई को चुना गया।
उत्तराखंड में मंदिरों पर सरकारी एकाधिकार व कई अन्य फैसलों से संत समाज नाराज़ था। कुंभ को लेकर लगाए गए प्रतिबंधों के कारण भी संत समाज की नाराज़गी सामने आई थी। इसी तरह बेंगलुरु में लिंगायत मठों ने एकजुट होकर येदियुरप्पा का समर्थन किया। हालाँकि, भाजपा ने लिंगायत चेहरा ही चुना और उन्होंने सभी मठाधीशों का आशीर्वाद लेने में कामयाबी पाई। कहीं गाँधीनगर के घटनाक्रम में भी कोई धार्मिक एंगल तो नहीं?
सूरत में नगरपालिका द्वारा कई वर्षों पुराने एक मंदिर को ढहाए जाने के कारण श्रद्धालुओं में आक्रोश का माहौल है। राज्य में AAP की एंट्री हुई है, जिसने इस मुद्दे को उठाया है। कापोद्रा इलाके में रामदेवपीर मंदिर को ध्वस्त किया गया। सूरत नगरपालिका पर भी भाजपा का ही शासन है। बड़ी संख्या में पुलिस बल के साथ हुई इस कार्रवाई का स्थानीय लोगों ने विरोध किया। वाल्मीकि समाज की इस मंदिर में विशेष आस्था थी।
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— India TV Hindi (@IndiaTVHindi) September 11, 2021
इस दौरा कई लोग रोते-बिलखते भी दिखे। लेकिन, मंदिर को जमींदोज कर दिया। लोग सवाल उठा रहे थे कि अगर किसी अन्य सरकार ने ये कार्रवाई की होती तो भाजपा बड़ा आंदोलन करती, लेकिन उसकी ही सरकार में ये सब हो रहा है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सीआर पाटिल के साथ भी उनके मतभेद सामने आए थे। पिछले 4 चुनावों से वहाँ भाजपा-कॉन्ग्रेस के वोट शेयर का अंतर बी घट रहा है – 10.04%, 9.49%, 9% और फिर 7.7%।
भाजपा ने ‘जन आशीर्वाद यात्रा’ के जरिए कई राज्यों में जनसंपर्क शुरू किया है। गुजरात में मनसुख मंडाविया और केंद्रीय पशुपालन मंत्री पुरुषोत्तम रुपाला को भेजा गया। दोनों ने पाटीदार समुदाय को रिझाने की कोशिश की है। 2017 में हार्दिक पटेल के नेतृत्व वाले पाटीदार आंदोलन ने भाजपा को खासा नुकसान पहुँचाया था। AAP और AIMIM अबकी मैदान में है और TMC भी भाजपा विरोधी मोर्चा बनाने में लगी गई।