महज एक कार्टून शेयर करने को लेकर शिवसेना कार्यकर्ताओं के हमले का शिकार बने पूर्व नौसेना अधिकारी मदन शर्मा ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से इस्तीफे की माँग की थी। इसी को लेकर शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ में मदन शर्मा पर निशाना साधा गया है। बता दें कि सामना के संस्थापक संपादक बाल ठाकरे और संपादक रश्मि उद्धव ठाकरे हैं। रश्मि मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की पत्नी हैं।
सामना के संपादकीय में कहा गया है कि मुंबई में मदन शर्मा नामक सेवानिवृत्त नौसेना अधिकारी पर संतप्त शिवसैनिकों ने हमला किया। इसका समर्थन कोई नहीं करेगा। इसका निषेध ही होना चाहिए। लेकिन यह जो कोई सेवानिवृत्त अधिकारी महोदय हैं, उन्होंने राज्य की जनता द्वारा नियुक्त मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के संदर्भ में आपत्तिजनक व्यंग्य चित्र सोशल मीडिया पर साझा करके क्या हासिल किया?
संपादकीय में आगे कहा गया है, “संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति का सम्मान करो, ऐसा इन महोदय को नौसेना में रहते कोई सिखाया नहीं था क्या? आप जिस राज्य में रहते हो, कमाते हो, सुख से जीते हो उस राज्य के नेताओं के बारे में कुछ भी व्यर्थ बोलना और उस पर संतप्त होकर कोई तुम्हारा मुँह फोड़ दे तो उसे अन्याय, अत्याचार, आजादी पर हमला आदि व्यर्थ विशेषण इस्तेमाल करके राजनीति करना।”
तंज कसते हुए लिखा गया है, “कटु सत्य कहा जाए तो आज आपने महाराष्ट्र का खाया और उसी थाली में छेद कर दिया है। मुख्यमंत्री का अपमान किया है। कल मन में आ ही गया तो राज्यपाल, राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, उपराष्ट्रपति, वर्तमान सेना प्रमुख, नौसेना प्रमुख का उपहास उड़ाओगे तो भी चिंता मत करना। आपको इस महान कार्य के लिए ‘पद्म’ पुरस्कार अथवा विशिष्ट सेवा पदक देकर सम्मानित किया जाएगा।”
संपादकीय में कहा गया है कि जब एलएसी पर चीन के साथ हिंसक झड़प में हमारे 20 जवान वीरगति को प्राप्त हो गए, तब मदन शर्मा ने प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के इस्तीफ़े की माँग क्यों नहीं की? तब भी उनके अंदर के सैनिक को जागना चाहिए था। 20 सैनिकों की हत्या के जिम्मेदार राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और रक्षामंत्री से इस्तीफे की माँग करनी चाहिए थी, परंतु फिलहाल देश में जो कुछ अनाप-शनाप हरकतें हो रही है, उसे देखते हुए ओलंपिक में बच्चों के खेल का कोई स्वर्ण पदक अवश्य ही मिल जाएगा।
संपादकीय में आरोप लगाते हुए कहा गया है कि पिछले 24 घंटों में कर्नाटक में तीन पुजारियों की पत्थर से कूँचकर हत्या कर दी गई। वहीं उत्तर प्रदेश के मंदिर में जा रहे पुजारी की चाकू घोंपकर हत्या कर दी गई। पालघर की दुर्भाग्यपूर्ण घटना में राजनीतिक निवेश करनेवाले और उनके मीडिया के ‘सहयोगी’ इन साधुओं की हत्या के मामले में चुप हैं। भाजपा के लोग सड़क पर उतरकर इन घटनाओं का निषेध करते हुए गलती से भी नहीं दिखे, क्योंकि यह सब व्यर्थ कारोबार उन्होंने सिर्फ महाराष्ट्र के लिए ही सुरक्षित रखा है।