केंद्र सरकार ने मजदूरों को वापस घर ले जाने के लिए स्पेशल ट्रेनों की व्यवस्था की है। भाजपा ने स्पष्ट किया है कि केंद्र सरकार उनके किराए का 85% वहन करेगी और बाकी राज्य सरकार को वहन करना है। श्रमिक एक्सप्रेस से केरल से झारखण्ड लौटे मजदूरों ने बताया कि उनसे 875 रुपए बतौर किराया वसूले गए। मजदूरों ने बताया कि उनके रूम पर जाकर किराया वसूला गया। ये मजदूर केरल से गिरिडीह पहुँचे थे।
भारतीय रेलवे ने अपनी नोटिस में स्पष्ट कहा है कि रेलवे टिकट नहीं बेच रही है और कोई भी आकर टिकट ख़रीद नहीं सकता। हर राज्य द्वारा दूसरे राज्य में तैनात नोडल अधिकारी की ये जिम्मेदारी है कि वो तय करे कि किन यात्रियों को लेकर जाना है और फिर अधिकारी ही उन्हें स्टेशन तक लाने की व्यवस्था करेंगे। मजदूरों ने कहा कि उनके कमरे पर जाकर किराया वसूला गया। जब रेलवे टिकट ही नहीं काट रही तो उसके अधिकारी मजदूरों के कमरे पर तो जाएँगे ही नहीं। तो फिर गया कौन? किसने लिया किराया?
केरल से झारखण्ड गए यात्रियों के मामले में भी वहाँ झारखण्ड के नोडल अधिकारी ने उन 1129 मजदूरों की सूची बनाई होगी, जो झारखण्ड के 22 जिलों के थे। फिर उन्हें दोनों राज्यों के अधिकारियों की मदद से स्टेशन लाया गया होगा। रेलवे को तो सिर्फ़ इससे मतलब है कि आने वाले यात्री राज्य सरकारों द्वारा लाए गए हैं या नहीं, फिर केंद्र सरकार के स्पष्टीकरण के बावजूद किराए के रूप में इतने रकम किस ने वसूल लिए? जाहिर है, राज्य सरकार के अधिकारियों या स्थानीय लालची नेताओं ने ही ऐसा किया होगा। इसकी जाँच होनी चाहिए।
केंद्रीय गृह मंत्रालय के दिशा-निर्देशों में भी स्पष्ट लिखा हुआ है कि किसी भी रेलवे स्टेशन पर किसी प्रकार का टिकट नहीं बेचा जाएगा। नियमानुसार, रेलवे टिकट प्रिंट करेगा और इसके लिए वो राज्य उसे बताएगा, जहाँ से ट्रेन चालू हो रही है। उस राज्य को ये सूची वो राज्य देगा, जहाँ ये मजदूर जाने वाले हैं। इसके बाद स्थानीय राज्य सरकार ही टिकट को मजदूरों में बाँटेगी। स्पष्ट है कि जो भी हुआ है, वो राज्य सरकार के अधिकारियों या स्थानीय नेताओं की मिलीभगत से हुआ है।
Only Rajasthan , Maharashtra , Kerala made migrant labourers pay ₹1000 charge for journey . @INCIndia which runs the first , partner in second , promoter of third wakes up early in the morning & issues a statement telling Party will pay for it .., #MigrantLabourers
— B L Santhosh (@blsanthosh) May 4, 2020
कॉन्ग्रेस पार्टी इस मामले में केंद्र सरकार पर हमलावर है और मीडिया में कहा जा रहा है कि ये ‘कॉन्ग्रेस का हाथ, आम आदमी के साथ’ 2.0 है, जिसके तहत सोनिया गाँधी ने इस मामले को उठाया है। लेकिन झारखण्ड में हेमंत सोरेन के नेतृत्व में कॉन्ग्रेस भी गठबंधन सरकार का हिस्सा है, केरल में वामपंथियों की सरकार है। ऐसे में पार्टी को इन दोनों सरकारों से पूछ कर स्पष्ट करना चाहिए कि मजदूरों से किराया किसने वसूला?
केंद्र सरकार ने कहा है कि हर एक श्रमिक एक्सप्रेस ट्रेन के लिए रेलवे द्वारा राज्य सरकारों को 1200 टिकट दिए जा रहे हैं, इसके बाद ये उनकी जिम्मेदारी है कि वो अपने हिस्से की रकम का भुगतान करें और यात्रियों को चिह्नित कर उन्हें स्टेशन तक लेकर आएँ।
केरल के मुख्यमंत्री पिनराई वियजन प्रेस कॉन्फ्रेंस कर के स्पष्ट कह चुके हैं कि उनकी सरकार मजदूरों का किराया वहन नहीं कर रही है। महाराष्ट्र, राजस्थान और केरल की सरकारें इन मजदूरों का किराया नहीं दे रही है। एक जगह कॉन्ग्रेस की सरकार है तो एक जगह सीपीआई-सीपीएम की। राजस्थान में तो कॉन्ग्रेस की पूर्ण बहुमत की सरकार है। ऐसे में कॉन्ग्रेस केंद्र को जिस काम के लिए कह रही है (और जो हो चुका है), वही बात अपनी ही सरकारों से क्यों नहीं मनवा पा रही है? क्या नियम अलग-अलग हैं?