Sunday, November 17, 2024
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‘स्टैचू ऑफ यूनिटी या ताजमहल?’ – स्टैचू ऑफ लिबर्टी से भी ज्यादा पर्यटकों के आँकड़े चिढ़ा रहे ध्रुव राठी को

"अब आप ही सोचिए, लोग मुग़ल आर्किटेक्चर देखना पसंद करेंगे या स्टैचू ऑफ़ यूनिटी? इसमें यूनिकनेस नहीं, यह सुंदर नहीं। यह कोई ताजमहल तो है नहीं, जो..." - ध्रुव राठी अब अपने कहे पर पछता रहा होगा।

इस मुल्क में एक बौद्धिक जमात ऐसी है, जिसके ज्ञान का कोई अंत नहीं है। ऐसे ही एजेंडापरस्त जमात के स्थायी सदस्य का नाम है ध्रुव राठी। धर्म से लेकर राजनीति और राजनीति से लेकर तकनीक तक हर सम-सामयिक मुद्दे के स्वघोषित विशेषज्ञ हैं – ध्रुव राठी।

खुद को वैचारिक स्तर पर ‘इंटेलेक्चुअल’ सिद्ध करने की होड़ में तथ्यों और तर्कों को ‘टाटा-गुड बाय’ बोलते हुए इन्होंने ‘स्टैचू ऑफ़ यूनिटी’ पर जम कर मिथ्या प्रचार किया था। तमाम दलीलों की मदद से साबित करने का भरपूर प्रयास किया था कि ‘स्टैचू ऑफ़ यूनिटी’ कितनी असफल परियोजना है। 

अब एक रिपोर्ट सामने आई है। यह राठी के दावों को सिरे से ख़ारिज करती है। रिपोर्ट का शीर्षक ही यही है कि ‘स्टैचू ऑफ़ लिबर्टी’ की तुलना में ‘स्टैचू ऑफ़ यूनिटी’ को देखने के लिए ज़्यादा पर्यटक आ रहे हैं।

कोरोना वायरस के पहले तक इसे देखने के लिए लगभग 13 हज़ार पर्यटक हर महीने आ रहे थे जबकि पिछले महीने स्टैचू ऑफ़ लिबर्टी को देखने के लिए 10 हज़ार पर्यटक ही आए। इतना ही नहीं, इसकी मदद से 3000 स्थानीय दलित लड़के/लड़कियों को रोज़गार मिला है और लगभग 10000 अन्य लोगों को भी रोज़गार मिला है।।         

अफ़सोस ध्रुव राठी की कपोल कल्पना सही साबित हुई भी नहीं और स्टैचू ऑफ़ यूनिटी की उपयोगिता और प्रासंगिकता दोनों सफल हुई। वामपंथी ब्रिगेड के अहम सदस्य ध्रुव राठी ने 1 नवंबर 2018 को अपने यूट्यूब चैनल पर एक वीडियो साझा किया था।

वीडियो की शुरुआत में इस स्टैचू पर तंज कसने का सतही प्रयास करते हुए उसने कहा, “दुनिया का सबसे लंबा स्टैचू हमारे देश में होगा। हमारे लिए कितने गर्व की बात होगी, दुनिया हमें सम्मान की निगाह से देखेगी।” इसके बाद कई पहलुओं का उल्लेख करते हुए कहा कि आइए देखते हैं स्टैचू ऑफ़ यूनिटी की सच्चाई क्या होगी। 

ध्रुव राठी ने सबसे पहले स्टैचू ऑफ़ यूनिटी की तुलना चीन के बुद्ध स्टैचू, स्प्रिंग टेम्पल से कर दी। फिर बताया कि उसके प्रोजेक्ट में 55 मिलियन डॉलर खर्च हुए और प्रतिमा की लागत 18 मिलियन डॉलर थी, यानी यह कितनी कम कीमत में बन गया। इसके बाद ध्रुव राठी ने बताया कि सरदार पटेल की प्रतिमा पर कितने ‘ज़्यादा रुपए’ (180 मिलियन डॉलर) खर्च हुए। सबसे पहली बात, तुलना के लिए मिला क्या? चीन की प्रतिमा! और दूसरी बात, चीन स्थित बुद्ध की प्रतिमा की ऊँचाई 128 मीटर है उसकी तुलना सरदार पटेल की प्रतिमा 182 मीटर से क्यों? 

इन सबसे बड़ी बात बुद्ध स्टैचू बन कर तैयार हुआ था साल 2008 में यानी स्टैचू ऑफ़ यूनिटी से लगभग एक दशक पहले। खैर लिबरल गैंग का यही तो हुनर है, आम जनता के सामने आधे-अधूरे तथ्यों की ढपली बजाना।

इसके बाद ध्रुव राठी ने ताजमहल का उल्लेख करते हुए बताया कि ताजमहल में जितने पर्यटक आते हैं, उससे हर साल लगभग 25 करोड़ रुपए का ‘रेवेन्यू’ पैदा होता है। इसके बाद ध्रुव राठी ने कहा, “स्टैचू ऑफ़ यूनिटी कोई ताजमहल तो है नहीं, जो 1 मिलियन लोग (10 लाख) हर साल इसे देखने के लिए आएँगे।” सही बात है, इसके शुरू होने के 2 हफ्ते में 128000 लोग आए, वह ‘पर्यटक’ नहीं थे बल्कि वहाँ से गुज़र रहे थे या ताजमहल देखने निकले होंगे, रास्ता भूल कर यहाँ पहुँच गए होंगे।

ध्रुव राठी ने इसके बाद कहा कि स्टैचू ऑफ़ यूनिटी बहुत प्रसिद्ध पर्यटन स्थल नहीं बन पाएगा क्योंकि यह किसी बड़े शहर के आस-पास स्थित नहीं है। साफ़ शब्द थे, “यहाँ लोग आएँगे ही नहीं।” सही बात है, देश की सारी धरोहरें, स्मारक, प्राचीन इमारतें, स्थल, मंदिर और मस्जिद बड़े शहरों में ही स्थित है और देश का सबसे बड़ा शहर आगरा है क्योंकि वहाँ ताजमहल है (ध्रुव राठी के उपरोक्त अनुमान अनुसार)। उनकी ज्ञान गंगा यहीं पर समाप्त नहीं हुई, सस्ते इंटरनेट के माध्यम से कपोल कल्पना का प्रदर्शन करते हुए उन्होंने कहा, “इसमें यूनिकनेस नहीं है” और “यह सुंदर नहीं है।” 

सुंदर नहीं है! गजब का तर्क है। फिर भी इसे 2018 से 2019 के बीच 27 लाख लोग देखने आए। इसी बात के आगे वो पूछते हैं, “अब आप ही सोचिए, लोग मुग़ल आर्किटेक्चर देखना पसंद करेंगे या स्टैचू ऑफ़ यूनिटी?”

एकदम सही बात है ध्रुव राठी, ऐसे नहीं कहोगे तो पता कैसे चलेगा कि आप ‘सेक्यूलर समाज’ से हो। खुद को ‘सूडो सेक्यूलर’ दिखाने की ज़िम्मेदारी भी तो है। ऐसे ही तो तुलना की जाती है, 500 साल पहले बनाई गई चीज़ों (दूसरी चीज़ों को तोड़-फोड़ कर) की हाल ही में बनी चीज़ के समानांतर रख कर। 

वीडियो के अंत में ध्रुव राठी ने इसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की राजनीति का नमूना बता दिया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को भी लपेट लिया (पता नहीं क्यों)। क्योंकि ध्रुव राठी ‘प्रलाप’ नामक वायरस की बीमारी से ग्रसित हैं, इसलिए इन्होंने 21 नवंबर 2019 को इसी मुद्दे पर एक और वीडियो बनाया। क्योंकि पिछली वीडियो में ध्रुव राठी के अनुमान अनुसार स्टैचू ऑफ़ यूनिटी को देखने के लिए 10 लाख लोग आ जाते तो बड़ी बात होती, इस बार ज़्यादा कुछ कहने के लिए बचा ही नहीं था। एक साल में लगभग 27 लाख लोग इसे देखने आए थे, जिससे लगभग 80 करोड़ रुपए का रेवेन्यू पैदा हुआ। 

ध्रुव राठी का अनुमान गलत सिद्ध हुआ तो ऐसे में वह इन्फ्लेशन, बैंक में इतना पैसा रख देते तो कितना ब्याज मिल जाता, रिटर्न ऑन इन्वेस्टमेंट का गणित लगाने लगे। अंत में दोबारा ताजमहल से तुलना करते हुए कहा कि इसे देखने कोई नहीं आएगा और न ही इसकी लागत वसूल हो पाएगी।

लागत वाले प्रश्न का उत्तर तो वक्त ही देगा, ध्रुव राठी जैसे मौसमी जानकार सिर्फ अनुमान लगा सकते हैं (वह भी सलीके से नहीं)। यूट्यूब की जनता को एंगेज रखना है, खुद को वामपंथी ब्रिगेड की यूथ विंग का मुखिया साबित करना है तो यह सब करना ही पड़ेगा। सरकार को गाली दिए बिना (भले उसका कोई काम अच्छा ही क्यों न हो) पता कैसे चलेगा कि ‘ब्रो’ नवागंतुक बुद्धिजीवी हैं।                                                     

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