Sunday, December 22, 2024
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NEET परीक्षा बिन डॉक्टरी की पढ़ाई: तमिलनाडु के बिल में क्या है, विधानसभा से बिल पारित होते ही छात्रा ने क्यों की सुसाइड

2013 से पहले के संदर्भ में बात करें तो इस NEET परीक्षा को शुरू करने का उद्देश्य था कि छात्रों के भीतर से 7-8 एग्जाम देने का स्ट्रेस कम किया जा सके। नीट से पहले उनको हर संस्थान के एग्जाम के लिए अलग परीक्षा देनी पड़ती थी।

तमिलनाडु में NEET की परीक्षा के विरोध में विधानसभा में सोमवार (13 सितंबर 2021) को एक विधेयक पारित किया गया। ये विधेयक एक 19 साल के नीट अभ्यार्थी (धनुष) द्वारा आत्महत्या कर लेने के बाद आया। इस बिल के पेश होने के बाद भी राज्य में सुसाइड का सिलसिला रुका नहीं। खबर है कि अरियालुर जिले में एक छात्रा ने परीक्षा ठीक न होने के कारण आत्महत्या की।

मेडिकल फील्ड में अपना करियर बनाने का सपना देखने वाले छात्र 12 वीं के बाद से NEET परीक्षा को पास करना अपना सबसे बड़ा लक्ष्य मानते हैं। ये NEET की परीक्षा यानी राष्ट्रीय पात्रता प्रवेश परीक्षा चिकित्सा क्षेत्र में जाने के लिए उत्तीर्ण करनी अनिवार्य होती है। साल 2013 से इसकी आधिकारिक तौर पर शुरुआत हुई थी। इसी के नतीजे देख छात्रों को केंद्र सरकार द्वारा संचालित तमाम मेडिकल संस्थानों में प्रवेश दिए जाने का प्रावधान किया गया।

अब तमिलनाडु विधानसभा में इसी NEET की परीक्षा पर एक विधेयक पारित किया गया है जिसके बनने से राज्य में NEET एग्जाम को ही आयोजित नहीं किया जाएगा। राज्य के मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस और बीडीएस की डिग्री के लिए 12वीं के मार्क्स के आधार पर एडमिशन दिया जाएगा। सरकारी स्कूलों के स्टूडेंट्स को 7.5% हॉरिजेंटल आरक्षण का लाभ भी दिया जाएगा। 

उल्लेखनीय है कि तमिलनाडु विधानसभा में मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने इस बिल को पेश किया जिसका कॉन्ग्रेस AIADMK, PMK और अन्य दलों ने समर्थन किया। हालाँकि भारतीय जनता पार्टी इस दौरान विरोध में रही और सदन से वॉकआउट कर लिया। विपक्ष के लोग इस दौरान काले बिल्ले लगाए दिखाई पड़े। सबने मौजूदा सरकार के फैसले की आलोचना की।

मालूम हो कि नीट परीक्षा के आधिकारिक तौर पर लागू होने के बाद से इसके नुकसान और फायदे दोनों अक्सर गिनाए जाते रहे हैं। 2013 से पहले के संदर्भ में बात करें तो इस NEET परीक्षा को शुरू करने का उद्देश्य था कि छात्रों के भीतर से 7-8 एग्जाम देने का स्ट्रेस कम किया जा सके। नीट से पहले उनको हर संस्थान के लिए अलग परीक्षा देनी पड़ती थी।

मगर, इस परीक्षा ने ये परेशानी को खत्म किया और एक एग्जाम में अर्जित अंकों के बदौलत तय किया जाने लगा कि किस छात्र को कहाँ एडमिशन मिलेगा। इन नंबरों के आधार पर छात्रों को राज्य के मेडिकल कॉलेज में भी एडमिशन लेने की बात है। ये परीक्षा करीबन 10 क्षेत्रीय भाषाओं में होती है। इसका आयोजन सीबीएसई करवाता है और सिलेबस भी उसी आधार पर होता है। लोग इन बातों को पॉजिटिवली भी लेते हैं और कुछ इसके नकारात्मक पक्ष पर बात करते हैं।

अब इस परीक्षा का विरोध देखें तो पता चलता है कि कई राज्यों के कई स्कूलों में सीबीएसई पाठ्यक्रम लागू नहीं होता लेकिन उन्हें मेडिकल एग्जाम उत्तीर्ण करने की इच्छा होती है। ऐसे में उन्हें अलग से तैयारी करनी पड़ती है। उसके लिए फीस भी देनी पड़ती है। हालाँकि, नीट परीक्षा ने छात्रों की सारी मेहनत एक एग्जाम के लिए केंद्रित कर दी। तमिलनाडु जैसे राज्य में नीट का विरोध शुरुआती दौर में भी हुआ था। कहते हैं कि वहाँ पहले भी 12वीं परीक्षा के आधार पर मेडिकल कॉलेजों में दाखिला दिया जाता था। लेकिन नीट के बाद ये चलन खत्म हो गया और छात्र व अभिभावक इस कदम से नाराज हो गए। कुछ सुसाइड के मामले भी सामने आए और इसी मुद्दे पर डीएमके ने चुनावी वायदा भी किया।

राज्य चुनावों के दौरान  DMK ने नीट (NEET) को ‘रद्द’ करने का वायदा किया था। लेकिन हाल में जब ऐसा नहीं हुआ तो एक छात्र ने आत्महत्या तक कर ली। इस घटना के बाद मौजूदा सरकार के विरोध में आवाजें उठीं। नतीजन विधानसभा में नीट परीक्षा न आयोजित कराने को लेकर बिल पास हो गया। अब सोशल मीडिया पर एक धड़ा इस कदम पर चलने के लिए बाकी राज्यों को भी कह रहा है। वहीं दूसरा धड़ा कह रहा है कि तमिलनाडु को ऐसा फैसला नहीं लेना चाहिए क्योंकि कई बार 12वीं के नंबर ये तय नहीं करते कि छात्र मेडिकल फील्ड में कैसा पर्फॉर्म करेगा।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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