‘टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (TISS)’ हैदराबाद की एक थीसिस में जम्मू कश्मीर में हिन्दुओं पर हुए अत्याचार पर चुप्पी साध ली गई है और पाकिस्तान का प्रोपेगंडा फैलाया गया है। इस थीसिस को TISS से ‘वीमेंस स्टडीज’ में MA करने वाली अनन्या कुंडू ने तैयार किया है। वहीं ‘स्कूल और जेंडर स्टडीज’ की अस्सिस्टेंट प्रोफेसर डॉक्टर नीलांजना रे ने इसे तैयार करने में उनका मार्गदर्शन किया है।
इस रिसर्च के कुछ पहलुओं के बारे में जानना ज़रूरी है। इस रिसर्च में ‘भारत के कब्जे वाले जम्मू कश्मीर में सैन्यीकरण, संघर्ष और लॉकडाउन के दौरान घरेलू हिंसा’ पर बातें की गई हैं। इसमें भारत पर भी कश्मीरियों की आवाज़ दबाने का आरोप लगाया गया है। कश्मीरी महिलाओं को ‘पितृसत्तात्मक स्टेट और सोसाइटी’ से पीड़ित बताया गया है। साथ ही लिखा है कि आज़ादी के समय बड़ी संख्या में कश्मीरी पाकिस्तान में जाना चाहते थे।
इस थीसिस के अनुसार, जम्मू कश्मीर को भारतीय सोच ने ‘नेशनलिस्ट प्राइड’ और गर्मी की छुट्टियों का पर्यटन स्थल का विषय बना दिया है। 2019 में अनुच्छेद-370 के प्रावधानों को निरस्त किए जाने के दौरान लगे कर्फ्यू की बात करते हुए इसके असर पर बात करने का दावा किया गया है। थीसिस के अनुसार, उस समय जम्मू कश्मीर में अब तक का सबसे बड़ा ‘कम्युनिकेशन ब्लैकआउट’ हुआ था। लेकिन, गौर करने वाली बात ये है कि कश्मीर के इतिहास की बात करते समय वहाँ के हिन्दुओं को एकदम से भुला दिया गया है।
सिख और डोगरा राजाओं को भी विदेशी ही बताया गया है। डोगरा राजाओं पर कश्मीरियों की चिंता न करते हुए जनता से ज्यादा टैक्स लेने के आरोप लगाए गए हैं। राजा हरि सिंह को निरंकुश बताते हुए अनन्या कुंडू ने पाकिस्तान की मदद से जम्मू कश्मीर को भारत से अलग करने की कोशिश करने वालों को ‘स्वतंत्रता सेनानी’ बताया है। POK को पाकिस्तान द्वारा किए गए नाम ‘आज़ाद कश्मीर’ को अनन्या कुंडू ने ‘विदेशी सत्ता के खिलाफ जनता की लड़ाई का प्रतीक’ करार दिया है।
जरा भाषा पर गौर कीजिए, “एक ऐसे राजा ने, जो खुद हार कर भाग रहा था, उसने एक पूरे क्षेत्र और वहाँ की जनता का विलय एक ऐसे देश में कर दिया जिसका उस पर कोई अधिकार ही नहीं था। भारतीय सेना ने पाकिस्तानी फौज और स्वतंत्रता सेनानियों के साथ युद्ध कर के एक बड़े क्षेत्र लिया पर कब्ज़ा कर लिया। जम्मू कश्मीर की स्वायत्तता को सुरक्षित रखने का भारत का कोई इरादा ही नहीं था, क्योंकि इसने जनमत संग्रह का वादा पूरा नहीं किया।”
यहाँ ध्यान देने वाली बात है कि जनमत संग्रह से भारत नहीं, पाकिस्तान भागा था। भारत को कश्मीर का ‘कॉलोनाइजर’ बताया गया है। यानी, ब्रिटिश आक्रांताओं से भारत की तुलना की गई है। थीसिस में लिखा है, “भारत ने चुनाव परिणाम में गड़बड़ी की, क्रूर हिंसा का प्रयोग किया और क्षेत्र पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए विरोधी आवाज़ों को दबा दिया। 1986 के बाद से इस आंदोलन को समर्थन मिलने लगा। 1987 में कॉन्ग्रेस ने चुनाव में गड़बड़ी की, जिससे कश्मीरी नाराज़ हुए।”
जम्मू कश्मीर में हजारों लोगों का खून बहाने वाला पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद अनन्या कुंडू के लिए एक ‘हथियारों से विद्रोह’ भर है। वहाँ नागरिकों की हत्या, रेप, शोषण और अवैध गिरफ़्तारी की बात करते हुए भारतीय सेना पर इन सबका आरोप मढ़ा गया। मानवाधिकार उल्लंघन के आरोप लगाए गए हैं। भारतीय सेना पर कुछ तत्वों को प्रशिक्षण देकर उनसे कश्मीरियों पर अत्याचार कराने का आरोप लगाया गया है।
प्रदेश में लोगों की सुरक्षा के साथ-साथ जन-कल्याणकारी अभियान चलाने वाली भारतीय सेना के खिलाफ ऐसे शब्दों का प्रयोग किया गया है, जो शायद पाकिस्तान भी न करता हो। लिखा है कि न्यायपालिका के अभाव में ऐसे वारदात छिपे रह गए। भारत के नागरिकों तक को नहीं बख्शा गया है और उन पर कश्मीरियों के खिलाफ ‘मानवाधिकार हनन’ पर चुप्पी साधने का जिम्मेदार ठहराया गया है। थीसिस में लिखा है,
“भारत ने कश्मीर पर कब्जा करने के लिए यहाँ के आवाजों को दबाया और नैरेटिव को नियंत्रित किया। कश्मीर की कहानी कश्मीर नहीं, भारत ने लिखी। आज जिस कश्मीर को हम जानते हैं, वो भारतीय सोच के हिसाब से ही। महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा हुई। पितृसत्तात्मक भारतीय सेना कश्मीरी समाज को तोड़ने के लिए महिलाओं के शरीर को निशाना बनाती है। ये सैन्यीकरण और युद्ध का परिणाम ही है कि महिलाओं के खिलाफ यौन और शारीरिक हिंसा आम हो गई। भारत ने अगस्त 2019 में अनुच्छेद-370 हटा कर उसका विशेष राज्य का दर्ज छीन लिया। फिर लंबा कम्यूनिकेशन ब्लैकआउट हुआ। फिर कोरोना आपदा आई और वहाँ की महिलाओं के हालात और भी बदतर हो गए।”
थीसिस मे भारतीय सेना पर ‘आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पॉवर्स ऐक्ट ऑफ 1958’ का उल्लंघन करने का आरोप लगाते हुए लिखा है कि जिसने भी भारत के खिलाफ बोलने की कोशिश की, उसके यहाँ अवैध सैन्य छापेमारी हुई, यौन हिंसा हुई, गिरफ़्तारी हुई, हत्या हुई और उन्हें प्रताड़ित किया गया। वहाँ आतंकियों के खिलाफ सुरक्षा बलों को मिले विशेषाधिकार का भी विरोध किया गया है। लॉकडाउन के दौरान घरेलू हिंसा बढ़ने की बात करते हुए इसे भी भारत सरकार के मत्थे ही मढ़ दिया गया है।
कुल मिला कर बात करें तो इस रिसर्च को महिलाओं की दुर्दशा और उनके साथ होने वाली घरेलू हिंसा के नाम पर तैयार किया गया है, लेकिन इसमें वो सब कुछ है जो पाकिस्तानी कश्मीर और भारतीय सेना के बारे में सोचता है। जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल अरुंधती रॉय जैसे ‘टुकड़े-टुकड़े’ गैंग के लोग करते हैं, इसमें उसी का दस्तावेजी रूप परोसा गया है। लोगों के मन में भारत विरोधी भवन बैठाने की कोशिश की जा रही है।
TISS के बारे में बता दें कि इसका मुख्य कैम्पस मुंबई में है। इसकी स्थापना 1936 में ‘सर दोराबजी टाटा स्कूल ऑफ सोशल वर्क’ के रूप में हुई थी। इसे 1964 में भारत सरकार ने ‘डीम्ड यूनिवर्सिटी’ का दर्जा दिया। सामाजिक कार्य के लिए स्थापित ये भारत का पहला प्रीमियर शैक्षिक संस्थान है। हाल ही में इसके मुंबई कैम्पस में CAA और NRC विरोधी आंदोलन के दौरान जम कर प्रोपेगंडा फैलाया गया था।