उत्तराखंड (UttaraKhand) के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी (Pushkar Singh Dhami) शुक्रवार (12 अगस्त 2022) को माँ वाराही के धाम देवीधुरा पहुँचे। वहाँ उन्होंने खोलीखांड दुबाचौड़ में बगवाल मनाई। इसके साथ ही सीएम धामी ने कुमाऊँ के प्राचीन मंदिरों को भव्य बनाने और उन्हें आपस में जोड़ने के लिये मानसखण्ड मंदिर माला मिशन की शुरुआत की।
मुख्यमंत्री धामी ने कहा, “मुख्यमंत्री कुमाऊँ के प्राचीन मंदिरों को भव्य बनाने के लिये मानसखण्ड मंदिर माला मिशन की शुरुआत की गई है, इस मिशन के अन्तर्गत ही माँ वाराही धाम देवीधुरा को भी जोड़ा जाएगा।”
मुख्यमंत्री श्री धामी ने कहा कि कुमाऊँ के प्राचीन मंदिरों को भव्य बनाने के लिये मानसखण्ड मंदिर माला मिशन की शुरूआत की गई है, इस मिशन के अन्तर्गत ही माँ वाराही धाम देवीधुरा को भी जोड़ा जाएगा। pic.twitter.com/F6r8PSWHRn
— CM Office Uttarakhand (@ukcmo) August 12, 2022
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी शुक्रवार को चंपावत दौरे पर थे। सबसे पहले वे खटीमा में आजादी के अमृत महोत्सव पर ‘हर घर तिरंगा’ यात्रा में शामिल हुए। इसके बाद वे माँ वाराही के धाम देवीधुरा पहुँचे। वहाँ उन्होंने माँ वाराही के मंदिर में पूजा-अर्चना की और राज्य की खुशहाली के लिए प्रार्थना की।
इस दौरान उन्होंने देवीधुरा में पुलिस चौकी बनाने की भी घोषणा की। बता दें कि देवीधुरा के खोलीखांड दुबाचौड़ में बगवाल मनाई जा रही है। खोलीखांड दुबाचौड़ मैदान में बगवाल फल और फूलों से खेली जाती है। इस दौरान गहड़वाल खाम के योद्धा केसरिया, चम्याल खाम के योद्धा गुलाबी, वालिग खाम के सफेद और लमगड़िया खाम के योद्धा पीले रंग के साफे बाँधकर बगवाल में शामिल हुए।
क्या है बगवाल
चार प्रमुख खाम- चम्याल, वालिग, गहड़वाल और लमगड़िया के लोग पूर्णिमा के दिन पूजा-अर्चना कर एक-दूसरे को बगवाल का निमंत्रण देते हैं। कहा जाता है कि पूर्व में यहाँ माँ वाराही को नरबलि देने की प्रथा थी। किवदंतियों के अनुसार, एक बार नरबलि देने की बारी चम्याल खाम की आई। जिस लड़के की बलि दी जानी थी, वह एक वृद्धा का इकलौता पौत्र था। वंश के नाश होने के डर से वृद्ध महिला ने माँ वाराही की घनघोर तपस्या की।
कहा जाता है कि तपस्या से प्रसन्न होकर माँ वाराही ने वृद्धा से उसकी मनोकामना पूछी। इस पर वृद्धा ने नरबलि लेने की जगह एक सलाह दिया। इसके तहत चारों खामों के मुखिया आपस में युद्ध कर एक मानव बलि के बराबर रक्त बहाएँगे और उसी से पूजा करेंगे। माँ वाराही ने वृद्धा की बात स्वीकार कर ली। तभी से बगवाल की शुरू हुई है।