पश्चिम बंगाल में हिंसा और राजनीति एक-दूसरे के पूरक हैं। जब भी पश्चिम बंगाल में राजनीति की बात होती है तो वहाँ की सियासी हिंसा की चर्चा होती है। चुनाव के नजदीकी दिनों में हिंसा अपने चरम पर पहुँच जाती हैं। पिछले कई दशकों से हिंसक घटनाएँ एक ही पैटर्न से घटित होती आई हैं। हाल ही में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के कई कार्यकर्ताओं को क्रूरता से मौत के घाट उतारा गया है।
मेनस्ट्रीम मीडिया अक्सर उन घटनाओं पर पर्दा डालने और अनदेखा करने का काम किया है जो इनके तथाकथित एजेंडे को आगे नहीं बढ़ाते हैं। इन घटनाओं में ज्यादातर हमले बीजेपी कार्यकर्ताओं पर हुए हैं। ज्यादातर मीडिया बीजेपी कार्यकर्ताओं पर हुए हमले को या तो इग्नोर कर देती है या उन्हें मामूली से एक रिपोर्ट के रूप में दिखा देती है।
वहीं पश्चिम बंगाल की राजनीति के बारे में जानने वाले लोग अच्छी तरह से हमलों और उनके पीछे ममता सरकार के लोगों के रवैए को जानते हैं। बता दें कि बंगाल में राजनीतिक हिंसा अभूतपूर्व स्तर पर पहुँच गई है।
इसीलिए तमाम लोगों द्वारा राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने कि माँग करना आश्चर्यजनक नहीं होना चाहिए। बता दें यह माँग ज्यादातर भाजपा कार्यकर्ताओं द्वारा की जा रही है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष पर कथित रूप से गोरखा जनमुक्ति मोर्चा द्वारा हमला किए जाने के बाद से यह माँग और भी तेज हो गई है।
भाजपा नेता काफी समय से राज्य में राष्ट्रपति शासन की चेतावनी दे रहे हैं। बिष्णुपुर के सांसद सौमित्र खान ने अक्टूबर में कहा, “जिस तरह से टीएमसी पश्चिम बंगाल में अपराध और अत्याचार कर रही है, उसे देखते हुए राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया जाए।”
इसी तरह आसनसोल के सांसद बाबुल सुप्रियो ने टिप्पणी की थी, “हाल में जिस तरह सिख समुदाय के सदस्य पर हमले हुए, मनीष शुक्ला सहित अन्य राजनीतिक विरोधियों की हत्या की गई, अल कायदा से जुड़े लोग गिरफ्तार किए गए हैं, यह बताता है कि पश्चिम बंगाल में आर्टिकल 365 का इस्तेमाल किया जाना उचित है।”
भाजपा के महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने अक्टूबर के अंत मे कहा था कि ममता बनर्जी सरकार के रहते स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव की बहुत कम संभावना है। उन्होंने कहा था, “यह मेरा व्यक्तिगत विचार है कि राष्ट्रपति शासन लागू किए बिना स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव (पश्चिम बंगाल) संभव नहीं है क्योंकि राज्य में नौकरशाही का राजनीतिकरण हो चुका है। यहाँ तक मामला ठीक है, लेकिन अब नौकरशाही का अपराधीकरण भी हुआ है।”
पश्चिम बंगाल भाजपा के प्रभारी विजयवर्गीय ने यह भी कहा कि राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने के लिए ममता बनर्जी खुद जिम्मेदार होंगी। गौरतलब है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी यह कहा था कि राज्य में बिगड़ती कानून-व्यवस्था को देखते हुए, विपक्षी दलों को राष्ट्रपति शासन लगाने की माँग करने का पूरा अधिकार है।
उसके बाद से राष्ट्रपति शासन लागू करने के बारे में भाजपा अपना रुख बदलती दिख रही है। दिलीप घोष ने कहा है कि ममता बनर्जी खुद चाहती हैं कि राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया जाए। एक टीवी चैनल से बात करते हुए उन्होंने कहा, “ममता बनर्जी खुद चाहती हैं राज्य में 356 लागू किया जाए। वह चुनावों के दौरान विक्टिम कार्ड खेलने के लिए केंद्र सरकार को मजबूर कर रही हैं।”
अनुच्छेद 356 राष्ट्रपति द्वारा लागू किया जाता है। घोष ने आगे कहा कि यदि बंगाल राष्ट्रपति शासन के अधीन होगा तो यह सीएम ममता बनर्जी को आम लोगों की सहानुभूति देगा और विधानसभा चुनाव में इसका लाभ उन्हें मिलेगा। वर्तमान में बंगाल में भाजपा के सामने एक बड़ी चुनौती है। उन्होंने आगे कहा,”एंटी-इनकंबेंसी फैक्टर से लोगों को सहानुभूति मिलने पर ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा।”
वहीं अमित शाह ने भी हाल ही में कहा था, “अनुच्छेद 356 एक सार्वजनिक मुद्दा नहीं है। यह एक संवैधानिक मामला है। केंद्र सरकार राज्यपाल की रिपोर्ट के आधार पर इस पर निर्णय लेती है। यहाँ अनुच्छेद 356 को लागू करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि सरकार केवल अप्रैल में बदल जाएगी। तो यह किस पर किया जाएगा?” इस प्रकार भाजपा समय समय पर राष्ट्रपति शासन को लेकर अपना रुख बदलती दिख रही है।
बंगाल में राजनीतिक हिंसा अभूतपूर्व स्तर पर है। हाल के वर्षों में भाजपा के कई कार्यकर्ताओं की मौतें हुई हैं। इन हत्याओं से यह साबित हुआ है कि पश्चिम बंगाल में निर्वाचित विधायक भी सुरक्षित नहीं हैं।
बता दें पश्चिम बंगाल में हाल ही में भाजपा के एक विधायक संदिग्ध परिस्थितियों में मृत पाए गए थे। इस प्रकार यदि राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया जाना था तो भाजपा को दोष देने के लिए कोई मान्य आधार नहीं हैं। यह एक राजनीतिक निर्णय है और राजनीतिक निर्णय राजनीतिक परिणामों को ध्यान में रखते हुए लिए जाते हैं।
गौरतलब है कि अगर देख जाए तो दिलीप घोष कहीं न कहीं अपनी बात पर सही हैं। ममता बनर्जी जान-बूझकर कर राजनीतिक फायदे के लिए राष्ट्रपति शासन राज्य में लगाना चाहती हैं। यह निश्चित रूप से उन्हें विक्टिम कार्ड खेलने का अवसर प्रदान करेगा।
अमित शाह का मानना है कि अगले साल होने वाले राज्य चुनावों में जीत दर्ज करने में सक्षम भाजपा के लिए सत्ता विरोधी कारक काफी मजबूत है। ऐसी परिस्थितियों में, यह संभावना नहीं है कि राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया जाएगा। लेकिन चीजें बहुत जल्दी बदल सकती हैं। यदि राज्यपाल को यह विश्वास है कि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव राज्य में वर्तमान सत्तारूढ़ सरकार के रहते करना असंभव होगा तो वह जरूर राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश करेंगे।