संसद का मॉनसून सत्र भी जारी है। गुरुवार (20 जुलाई, 2023) से शुरू हुआ ताज़ा सत्र लगातार विपक्ष के हंगामे का शिकार बन रहा है। हालाँकि, इस दौरान कई बिल भी पेश किए जा रहे हैं। अब आपके मन में ये सवाल ज़रूर उठ रहा होगा कि जब 28 मई, 2023 को नए संसद भवन का उद्घाटन को चुका है, फिर भी संसद का मॉनसून सत्र पुरानी वाली इमारत में ही क्यों चल रहा है? ‘सेंगोल’ की स्थापना के कारण नए संसद भवन का उद्घाटन समारोह काफी चर्चा का विषय बना था।
संसद के पुराने वाले भवन का निर्माण ब्रिटिश सरकार ने सन् 1927 में करवाया था। वहीं नए वाले संसद भवन का निर्माण दिसंबर 2020 में शुरू हुआ था। उम्मीद थी कि नया सत्र भी इसी में आयोजित किया जाएगा। हालाँकि, इसके तुरंत पहले केंद्र सरकार ने ऐलान किया कि मॉनसून सत्र 2023 पुरानी वाली इमारत में ही होगा और नए वाले में तब शिफ्ट किया जाएगा जब वहाँ ज़रूरी तैयारियाँ कर ली जाएँगी।
‘इंडियन एक्सप्रेस’ की एक रिपोर्ट में जानकारी दी गई थी कि साउंड और AC से लेकर ऑटोमेटेड सिक्योरिटी तक, नई वाली इमारत में सभी व्यवस्थाओं की जाँच अच्छे से कर ली गई थी। लोकसभा और राज्यसभा में ऑडियो-वीडियो सिस्टम की अच्छी तरह से जाँच की गई। नए संसद भवन में मॉनसून सत्र शिफ्ट नहीं हो पाया, इसके 2 कारण हैं। पहला कारण है – कुछ अंतिम काम हैं जो अभी चल रहे हैं और उन्हें फिनिशिंग टच दिया जा रहा है।
दूसरा कारण है – ज़रूरी चीजों को पुराने संसद भवन से नए संसद भवन में स्थानांतरित करने में पेचीदगियाँ। इस प्रक्रिया में काफी समय और मेहनत लगनी है, ऐसे में निर्णय लिया गया कि मॉनसून सत्र पुरानी वाली बिल्डिंग में ही चलेगा। विपक्षी दलों ने भी इस देरी का इस्तेमाल अपने प्रोपेगंडा के लिए किया। ‘राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (RLP)’ के अध्यक्ष हनुमान बेनीवाल ने दावा कर डाला कि नए संसद भवन में बाढ़ का पानी घुस गया है, इसीलिए वहाँ सत्र का आयोजन नहीं हो पाया।
संसदीय मामलों के केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी ने इन दावों को नकार दिया है। उन्होंने इन दावों को पूर्णरूपेण गलत और तथ्यहीन करार दिया। उन्होंने बताया कि लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने ही निर्णय लिया कि संसद का मॉनसून सत्र पुरानी इमारत में ही आयोजित किया जाएगा। 11 अगस्त तक चलने वाले मौजूदा सत्र में 23 दिनों में 17 बैठकें होंगी। जल्द ही केंद्र सरकार इसकी घोषणा करेगी कि कब से नई इमारत में संसद सत्र चलेगा।
नए संसद भवन के उद्घाटन का कार्यक्रम खासा चर्चा का विषय बना था। तमिल राजचिह्न ‘सेंगोल’ को लोकसभा अध्यक्ष के आसन के पास स्थापित करने से पहले प्रधानमंत्री मोदी ने राजदंड को सांष्टांग प्रणाम किया था। तमिल अधीनम पुरोहितों की मौजूदगी में प्रक्रियाएँ पूरी की गई थीं। कार्यक्रम स्थल पर हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध सहित विभिन्न धर्मों के आचार्य मौजूद थे। नए संसद भवन के लिए नागपुर से सागौन की लकड़ी, राजस्थान के सरमथुरा से सैंडस्टोन, उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर से कालीन, अगरतला से बाँस की लकड़ी और महाराष्ट्र के औरंगाबाद और जयपुर से अशोक प्रतीक को मँगवाया गया था।