जेएनयू ने अपने संस्थान के नियम-क़ायदों के अनुसार 75 की उम्र पार कर चुके सभी एमेरिटस प्रोफेसरों की सीवी माँगी है। यह एक रूटीन प्रक्रिया है, जिसे वामपंथियों ने रोमिला थापर के ख़िलाफ़ साज़िश कह कर प्रचारित किया। हालाँकि, उनकी पोल तब खुल गई जब यह पता चला कि जेएनयू के नियमानुसार जो भी एमेरिटस प्रोफ़ेसर 75 वर्ष से अधिक उम्र के हो जाते हैं, उनकी मान्यता के सम्बन्ध में समीक्षा की जाती है। उनके स्वास्थ्य, उपस्थिति और क्रियाकलापों को देखते हुए यह निर्णय लिया जाता है। 87 वर्षीय थापर ऑटोमैटिक रूप से इस सूची में आ जाती हैं।
हालाँकि, रोमिला थापर ने यूनिवर्सिटी के नियम-क़ायदों को मानने से साफ़ इनकार कर दिया है। उन्होंने कहा है कि वह जेएनयू को अपनी सीवी नहीं देंगी। आजतक की एक रिपोर्ट के अनुसार, रोमिला थापर ने चैनल से कहा कि फिलहाल उनका जेएनयू के साथ अपना सीवी साझा करने का कोई इरादा नहीं है। बता दें कि उम्रदराज एमेरिटस प्रोफेसरों की समीक्षा वाले नियम कई अन्य अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय में भी मौजूद हैं।
रोमिला थापर ने कहा कि उनको मिली मान्यता जीवन भर के लिए है और जेएनयू उनकी सीवी माँग कर मूल्यों का उल्लंघन कर रहा है। वहीं कॉन्ग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआई ने रोमिला थापर का समर्थन करते हुए वीसी से कहा है कि वह उनसे माफ़ी माँगे। जेएनयू ने भी बयान जारी कर के यह साफ़ कर दिया है कि यूनिवर्सिटी को ऐसा क़दम उठाने का अधिकार है और सीवी माँगने का यह अर्थ नहीं है कि किसी एमेरिटस प्रोफेसर की मान्यता ख़त्म ही कर दी जाएगी।
Romila Thapar is so divine she cannot be asked to show her CV. We can add to this. Romila Thapar is so divine she cannot be asked for passport at the airports. Romila Thapar is so divine she cannot wait for her turn in a line.
— Sunanda Vashisht (@sunandavashisht) September 2, 2019
यह भी जानने लायक बात है कि अधिकतर एमेरिटस प्रोफेसरों ने पिछले 3 वर्षों में एक बार भी यूनिवर्सिटी में उपस्थिति दर्ज नहीं कराई है और न ही विश्वविद्यालय के अकादमिक कार्यों में कोई योगदान दिया है।