यूके स्थित वामपंथी मीडिया आउटलेट ‘द गार्जियन’ की पत्रकार आइना खान (Aina Khan) ने अब दावा किया है कि लेस्टर में ‘अच्छे ईमान वाले’ लोग हिंदू मंदिर (Hindu temple in Leicester) की रखवाली कर रहे थे, जबकि सच्चाई ये है कि हिंदुओं के समूह पर इस्लामी कट्टरपंथियों ने हमला किया। खान अपनी खुद की रिपोर्ट का हवाला देती हैं, जिसमें उन्होंने धर्मेश लखानी का नाम बताया है, जिसे किसी ऐसे व्यक्ति के रूप में संदर्भित किया गया है जो लेस्टर में हिंदू मंदिरों का प्रतिनिधित्व करता है और उनके साथ काम करता है’। उनकी रिपोर्ट के मुताबिक, धर्मेश लखानी मस्जिदों और स्थानीय मुस्लिम नेताओं के साथ भी काम करता है।
कथित तौर पर हिंदू मंदिरों और मस्जिदों में काम करने वाले धर्मेश लखानी के साथ अपनी बातचीत के हिस्से को खान ने ट्वीट भी किया है। धर्मेश लखानी ने इस बात की पुष्टि की है कि हिंदू मंदिर के बाहर इस्लामी भीड़ ने झंडा तोड़ कर फेंक दिया था और एक झंडे को जला दिया गया था। हालाँकि, खान हिंदू मंदिरों पर हमला करने वालों का जिक्र करने से बचती नजर आईं। ये सभी को पता है कि इस्लाम में मूर्ति पूजा को सबसे बड़ा पाप माना गया है। भारत में मुगल शासन के दौरान सैकड़ों हिंदू मंदिरों को नष्ट कर दिया गया और उनके ऊपर विवादित ढाँचे (मस्जिद) बना दिए गए।
‘बाबरी मस्जिद’ और ‘ज्ञानवापी मस्जिद’ नामक विवादित ढाँचे ऐसे ही कुछ उदाहरण हैं, जिन्हें हिंदुओं की भावनाओं को आहत करके बनाया गया है।
आइना खान की थ्योरी की मानें तो धर्मेश लखानी ने उनसे एक इमाम (मौलवी) को भी मिलाया, जो लेस्टर में हिंदू मंदिर के बाहर खड़ा हुआ था। जब इस्लामी भीड़ ने इस पर हमला किया था, तब पत्रकार की थोड़ी के हिसाब से इमाम यहाँ की रखवाली कर रहा था। उल्लेखनीय है कि भारत में ‘ईशनिंदा’ पर हत्या के कई मामलों के साथ-साथ जबरन धर्म परिवर्तन, यौन शोषण में मौलानाओं ने बड़ी भूमिका निभाई है। बेशक, ‘अच्छे इमाम’, देवी-देवताओं की कृपा से हिंदू मंदिर को बचाने के लिए वहाँ मौजूद थे।
‘अच्छा इमाम’ इस्लामी टूलकिट का ही हिस्सा है, अपने पक्ष में अच्छा नैरेटिव बनाने के लिए। भारतीय इस्लामवादी अक्सर यह दिखाने की कोशिश करते हैं कि कैसे अपने ही कट्टरपंथियों द्वारा की गई हिंसा के बीच ‘अच्छे लोग’ अभी भी मंदिरों की रक्षा करने के लिए उसके बाहर खड़े हैं। जबकि, इतिहास कुछ और ही है। भारत के विभिन्न न्यायालयों में दी गई दलीलों पर एक सरसरी नजर डालने से आपको यह पता चल जाएगा कि इतिहास में कैसे मंदिरों को हमेशा कट्टरपंथियों द्वारा ध्वस्त किया गया है।
जब कट्टरपंथी हिंसा करते हैं तो उसके बाद ‘अच्छे मुस्लिम’ का कार्ड खेला जाता है। अगस्त 2020 में इस्लामी भीड़ बेंगलुरु में ईशनिंदा को लेकर सड़कों पर उतरी थी। इस्लामी भीड़ ने कॉन्ग्रेस विधायक का घर तहस-नहस किया, कुछ समय बाद शहर के दो पुलिस थाने भी तबाह कर दिए। इसके अलावा उन्होंने आसपास मौजूद गाड़ियों को भी जला दिया था। दिल्ली में हिंदू विरोधी दंगों के बाद भी ऐसा ही हुआ था।
सच यह है कि एक इस्लामी भीड़ ‘अल्लाह-हु-अकबर’ का नारा लगाते हुए हमला करती है। ये लोग भूल जाते हैं कि ‘अच्छे मुस्लिमों’ ने इनसे बचाने के लिए ‘हयूमन सीरीज’ बनाई है। इसी तरह इस्लामवादी भीड़ द्वारा लेस्टर में झंडा तोड़ने और उसे जलाने को ‘अच्छा इमाम’ कहकर क्लीन चिट देने का काम किया गया है। इसे संयोग ही कहेंगे कि ‘मंदिर की रक्षा’ के दौरान ये सब कुछ हुआ। हमें इस पर विश्वास करना होगा कि जिस भीड़ ने मंदिर पर हमला किया, उसका कोई मजहब नहीं था, लेकिन एक व्यक्ति मंदिर की रक्षा के लिए चमत्कारिक रूप से प्रकट हुआ और उसका एक खास मजहब भी है।