लोकसभा चुनाव 2019 को ध्यान में रखते हुए बुआ और भतीजे की राजनीतिक जोड़ी ने उत्तर प्रदेश में सीटों के बंटवारे का ऐलान कर दिया है। 12 जनवरी 2019 को अपने प्रेस कॉन्फ्रेस के दौरान अखिलेश यादव व मायावती ने 38-38 सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कही। इस तरह यदि दोनों ही राजनीतिक पार्टियाँ 38 सीटों पर चुनाव लड़ती हैं, तो महज 2 सीट ही गठबंधन के दलों के लिए बच जाएगा। ऐसा इसलिए क्योंकि मायावती ने अमेठी और रायबरेली की संसदीय सीट को कॉन्ग्रेस के लिए छोड़ने का ऐलान किया है।
राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) ने उत्तर प्रदेश के 5 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने का दावा पेश किया था। अब गठबंधन में अखिलेश व मायावती के इस फ़ैसले के बाद अजित सिंह की पार्टी रालोद का गठबंधन में शामिल होने की गुंजाइश लगभग खत्म हो चुकी है या उन्हें कम सीटों पर संतुष्ट करना होगा। कुछ दिनों पहले मीडिया द्वारा सीटों के बंटवारे पर पूछे गए सवाल को टालते हुए जयंत चौधरी ने कहा, “सीटों के बंटवारे की बेचैनी मीडिया को है। सारी बातें साफ़ होंगी, सस्पेंस बनाए रखें।”
इस बयान से भले ही जयंत ने सवाल को टाल दिया हो, लेकिन इस सवाल के मायने और मीडिया की बेचैनी को जयंत सपा-बसपा द्वारा सीटों के बँटवारे की घोषणा के बाद अच्छी तरह से समझ रहे होंगे।
Varanasi: Bahujan Samaj Party (BSP) & Samajwadi Party (SP) party workers celebrate after BSP Chief Mayawati and Samajwadi Party Chief Akhilesh Yadav announce to contest upcoming Lok Sabha elections together. pic.twitter.com/j27dEbd3m9
— ANI UP (@ANINewsUP) January 12, 2019
रालोद ने पाँच सीटों पर दावा पेश किया था
अजित सिंह की पार्टी राष्ट्रीय लोक दल ने उत्तर प्रदेश के पाँच लोकसभा सीटों पर दावा पेश किया था। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इन पाँच लोकसभा सीट में बागपत, अमरोहा, हाथरस, मुजफ्फरनगर और मथुरा है। मायावती पहले भी रालोद को दो से ज्यादा सीट देने के मूड में नहीं थी। लेकिन अब जब सपा-बसपा ने सीटों के बंटवारा कर लिया है, तो शायद रालोद को इस गठबंधन का हिस्सा बनना मंजूर न हो।
उत्तर प्रदेश में गेस्ट हाउस कांड के बाद दोनों ही दलों (सपा-बसपा) में दूरी पैदा हो गई थी। 25 साल बाद एक बार फ़िर से यूपी में सपा-बसपा ने गठबंधन किया है।
कॉन्ग्रेस-रालोद का साथ पुराना है
कॉन्ग्रेस-रालोद उत्तर प्रदेश में पहले भी गठबंधन करके चुनाव लड़ चुके हैं। वर्तमान समय में राजस्थान की कांग्रेस सरकार का रालोद हिस्सा है। ऐसे में इन दोनों दलो को साथ आने में कोई समस्या नहीं होगी। पिछले लोकसभा चुनाव में रालोद खाता तक नहीं खोल पाई थी। हालाँकि, बाद में कैराना में हुए उपचुनाव में सपा और बसपा के समर्थन से आरएलडी उम्मीदवार की जीत हुई।