‘RBI की स्वायत्ता पर हमला’ का बोगस तर्क देकर मोदी सरकार के RBI से ₹1.76 लाख करोड़ लेने का विरोध कर रहे लोग वही हैं, जो चीखते हैं कि ‘मोदी सरकार संस्थानों की आज़ादी खत्म कर रही है’; “मोदी सरकार अपने लोगों को, संघियों को भरकर संस्थाओं की ‘क्वालिटी डाउन’ कर रही है।” लेकिन यह लोग इस मामले में या तो भूल गए हैं या लोगों से बात छिपा रहे हैं कि बिमल जालान को सरकार में लाने वाले मोदी नहीं, पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी हैं।
1970 के दशक में इंदिरा गाँधी ने 4-5 उभरते हुए आर्थिक और सार्वजनिक नीति (पब्लिक पॉलिसी) के विद्वानों को सरकारी तंत्र का हिस्सा बनाया था। बिमल जालान को लाने में उनके साथ काम कर चुके आर वेंकटरमन का बड़ा हाथ था। इसके अलावा इंदिरा गाँधी के समय के ताकतवर नौकरशाह पीएन हक्सर और डीपी धर भी जालान और उसी योजना के अंतर्गत आने वाले विजय केलकर, नितिन देसाई, अरुण शौरी आदि को लाने वालों में प्रमुख थे। यानी जालान के ‘मोदी का आदमी’ होने का मिथक गलत है।
इसके बाद अगर स्वायत्ता की बात करें तो जालान खुद रिजर्व बैंक की स्वायत्ता में कटौती न करने और उसे अक्षुण्ण रखने के पक्षधर रहे हैं- मोदी सरकार के दौरान भी। तो ऐसे आदमी के नेतृत्व में बनी कमिटी क्या RBI की स्वायत्ता पर कोई खतरा बन सकती है, यह सवाल इस फैसले पर सवाल उठाने वालों से पूछा जाना चाहिए।