शुक्रवार (1 फरवरी 2019) को विधानसभा में आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम पर चर्चा के दौरान मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने अपना आपा खो दिया और बीजेपी विधायकों को धमकी तक दे डाली। जानकारी के मुताबिक़ चंद्रबाबू नायडू ने बीजेपी विधायकों को धमकी दी और कहा कि अगर वो राज्य के साथ हुए अन्याय में केंद्र सरकार का साथ देंगे तो आंध्र प्रदेश में उन्हें ‘स्वतंत्र रूप से’ आगे नहीं बढ़ने दिया जाएगा।
चंद्रबाबू नायडू की नाराज़गी बीजेपी नेता पी विष्णु कुमार राजू से है जब वो राज्य में स्वीकृत विभिन्न केंद्रीय संस्थानों की सूची बना रहे थे। नायडू का आरोप है कि बीजेपी नेता ने उन सभी संस्थानों को सूची से बाहर कर दिया था जिन्हें केंद्र सरकार द्वारा आंध्र प्रदेश के लिए मंज़ूरी मिल गई थी।
नायडू ने तल्ख अंदाज़ में कहा कि भगवा पार्टी के सदस्यों को शर्म नहीं आ रही है और केंद्र को समर्थन देने के बावजूद राज्य के साथ घोर अन्याय हो रहा है। राज्य के विकास के लिए उनकी कोई प्रतिबद्धता नज़र नहीं आती। नायडू ने पी विष्णु कुमार पर निशाना साधते हुए कहा कि वो जन प्रतिनिधि होने के लिए अयोग्य हैं। नायडू ने पूछा, ”आख़िर वो पैसा किसका है? एक नए राज्य के लिए, केंद्र को सभी संस्थानों को पैसा देना चाहिए। मुझे बताएँ कि हैदराबाद, दिल्ली, तमिलनाडु और गुजरात में कितने संस्थान हैं। उनकी तुलना करो। क्या आप तमाशा कर रहे हैं? इसके बाद नायडू ने कहा कि मेरा ख़ून उबल रहा है।”
कथित तौर पर, जब बीजेपी विधायकों ने उनकी टिप्पणी पर आपत्तियाँ जताईं, तो नायडू ने कहा, “आपकी आपत्तियों की परवाह कौन करता है?”
इसके बाद एक अनोखे अंदाज़ में नायडू ने कहा कि वह अमेरिकी नेताओं बिल क्लिंटन और हिलेरी क्लिंटन को नाम से बुलाते हैं, लेकिन उन्होंने पीएम मोदी को ‘सर’ कहकर संबोधित किया, बावजूद इसके कि प्रधानमंत्री उनसे उम्र में छोटे हैं।
उन्होंने कहा कि वह राज्य के लिए न्याय की माँग करेंगे और इसके लिए वो आगामी 11 फरवरी को एक ‘दीक्षा’ आयोजित करेंगे।
यह ध्यान रखना दिलचस्प है कि चंद्रबाबू नायडू का यह रूप तब सामने आया जब उन्हें लोकतंत्र के संरक्षण और फासीवादी ताक़तों को हराने से संबंधित बताया गया। पश्चिम बंगाल में आयोजित, यूनाइटेड इंडिया की रैली के दौरान नायडू ने दावा किया था कि नरेंद्र मोदी देश की लोकतांत्रिक भावना को नष्ट कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री मोदी पर “फासीवादी” आरोप लगाने वाले ख़ुद फासीवादी हैं, इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है। यहाँ तक कि ममता बनर्जी जिनके शासनकाल में पश्चिम बंगाल राज्य में लोकतंत्र के संरक्षण को लेकर बीजेपी कार्यकर्ताओं की बड़े स्तर पर राजनीतिक हत्याएँ हुई हैं।