चीन की मीडिया में चर्चाओं का बाज़ार गरम है। भारत में हो रहे आम चुनाव पर शक्तिशाली चीन की पैनी नज़र है। वहाँ सरकार समर्थित मीडिया व विशेषज्ञ लगातार इस बात की चर्चा करने में लगे हुए हैं कि क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुनाव बाद फिर से जीत कर वापस आ पाएँगे? अगर हम चीनी विशेषज्ञों की राय को खंगालें तो पता चलता है कि चीनियों के मन में भी मोदी की वापसी को लेकर कोई शक नहीं है। चीन की प्रमुख मीडिया एजेंसियों में से एक ‘द ग्लोबल टाइम्स’ में सिंहुआ यूनिवर्सिटी के रिसर्च फेलो लू यांग ने एक लेख लिखा है, जिसमें उन्होंने नरेंद्र मोदी के बारे में चर्चा की है। आइए उनके लेख की पड़ताल करते हैं ताकि आपको पता चले की चीनी विशेषज्ञों के मन में मोदी के प्रति क्या राय है? उन्होंने अपने लेख में कहा है कि 23 मई के बाद भाजपा सत्ता में वापस लौटे, इसमें बहुत कम ही शक है।
लू यांग मानते हैं कि नरेंद्र मोदी का राजनितिक व्यक्तित्व काफ़ी आसानी से उनके सारे प्रतिद्वंद्वियों को मात दे देता है। वह भाजपा की फंडिंग और संगठनात्मक संरचना का भी जिक्र करते हैं। लू यांग ने अपने इस लेख में स्वीकारा है कि नरेंद्र मोदी एक और कार्यकाल के लिए तैयार हैं। उन्होंने लिखा कि मोदी के 2014 में सत्ता संभालने के साथ ही भारत की कूटनीति में बड़ा बदलाव आया, निवेश में बढ़ोतरी हुई और पड़ोसी देशों को महत्व दिया गया। पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को सुधारने की दिशा में मोदी द्वारा किए गए प्रयासों को गिनाते हुए उन्होंने कहा कि मोदी ने अपने शपथ ग्रहण समारोह में ही पड़ोसी राष्ट्राध्यक्षों को बुलाकर ये जता दिया था कि पड़ोस से सम्बन्ध सुधारना उनकी प्राथमिकता है। इस समारोह में पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ भी शामिल हुए थे।
प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी ने अपना पहला दौरा भूटान का किया। बांग्लादेश के साथ दशकों से चली आ रही सीमा समस्या का समाधान किया गया। लू यांग के अनुसार, मोदी को क्षेत्रीय सहयोग और स्थिरता का महत्व पता है। मोदी ने भले ही 2014 के चुनावों में पाकिस्तान को निशाने पर रखा लेकिन प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने पाक से सम्बन्ध सुधारने की भरपूर कोशिश की। लू यांग भारत में हुए आतंकी हमलों को भारत-पाक संबंधों में तनातनी का कारण मानते हैं। अपने लेख में वो याद दिलाते हैं कि सितम्बर 2014 में मोदी ने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को अपने गृह राज्य बुलाया और अपना 64वाँ जन्मदिन उनके साथ ही मनाया। चीन के ‘बेल्ट एंड रोड’ को जवाब देने के लिए भारत ने ट्रम्प प्रशासन के ‘इंडो-पैसिफिक’ नीति को अपनाया।
लू यांग मानते हैं कि डोकलाम के बाद भारत-चीन रिश्तों में सुधार आया है और दोनों देश एक-दूसरे के प्रति अपने व्यवहार में बदलाव ला रहे हैं। चीनी राष्ट्रपति के गृहक्षेत्र वुहान में मोदी-जिनपिंग के बीच हुई बैठक ने भारत-चीन रिश्ता को सुधारने में अहम भूमिका निभाई। बता दें कि डोकलाम में ढाई महीने से भी अधिक समय तक चले तनाव के बाद हुई उस बैठक के बाद माहौल में नरमी आई थी और भारतीय कूटनीतिक प्रयासों के कारण चीन को पीछे हटने को मज़बूर होना पड़ा था। चीनी मीडिया में चल रही बातों से लगता है कि चीन भी अब भारत के प्रभाव को स्वीकार कर रहा है।
प्रमुख चीनी न्यूज़ एजेंसी सिन्हुआ ने गुजरात में जातिवादी आन्दोलनों के कारण राज्य में भाजपा द्वारा 2014 में जीती गई लोकसभा सीटों की संख्या में कमी आने की बात कही है। लेकिन, सिन्हुआ ने कहा है कि मोदी ने वैश्विक स्तर पर भारत की छवि को विस्तार देने के लिए ‘स्वच्छ भारत’, ‘मेक इन इंडिया’ और ‘डिजिटल इंडिया’ जैसी योजनाओं की घोषणा की। वेबसाइट यह भी मानता है कि नरेंद्र मोदी को विपक्ष से कड़ी चुनौती मिल रही है। चीनी मीडिया द्वारा भारत में चल रहे विकास योजनाओं की चर्चा करना सुखद संकेत है क्योंकि देश और दुनिया को अब लग रहा है कि भारत विकास को लेकर सचमुच गंभीर है।
एक अन्य चीनी वेबसाइट ‘चाइना डेली’ ने भारत में चल रहे आम चुनावों के बारे में लिखा कि भले ही मोदी की कुछ योजनाएँ पूरी तरह से ज़मीन पर नहीं उतर पाईं लेकिन उन्होंने विदेशी कंपनियों को देश में व्यापार करने के लिए एक आसान माहौल दिया है। जीएसटी को चाइना डेली ने आज़ादी के बाद का अब तक का सबसे बड़ा टैक्स सुधार माना है। चाइना डेली ने एक अन्य लेख में विश्लेषकों के हवाले से कहा कि मोदी के ख़िलाफ़ अगर थोड़ा-मोड़ा रोष था भी तो पुलवामा हमले का करारा जवाब देने और पाकिस्तान स्थित आतंकी ठिकानों पर कार्रवाई करने के कारण उनकी लोकप्रियता में बढ़ोतरी हुई है और देश में राष्ट्रवाद का उदय हुआ है।
चीन की प्रमुख वेबसाइट में से एक “साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट” में विशेषज्ञ रिचर्ड हेडेरियन लिखते हैं कि कुलीन नेहरू-गाँधी परिवार से आने वाले राहुल गाँधी एक वंशवादी राजनीति के प्रोडक्ट हैं न कि किसी बदलाव लाने वाले सामाजिक आंदोलन के। इसी वेबसाइट पर प्रकाशित एक अन्य लेख में कहा गया है कि पिछले वर्ष मोदी और जिनपिंग की 4 बार मुलाक़ात हुई, जिसकी वजह से भारत-चीन के रिश्तों में सुधार आया है। चीनी मीडिया में राहुल गाँधी की तुलना अन्य देशों के वंशवादी नेताओं के साथ की गई, वहीं लोकप्रियता में नरेंद्र मोदी को बड़े वैश्विक नेताओं के साथ रखा गया। राहुल गाँधी के उस बयान की भी चर्चा चीनी मीडिया में हुई, जिसमें उन्होंने कहा था कि मोदी जिनपिंग से डर गए हैं।
एक अन्य चीनी न्यूज़ मीडिया CGTN में विशेषज्ञ ये हेलिन ने भविष्यवाणी करते हुए कहा कि नरेंद्र मोदी आसानी से दूसरा कार्यकाल जीत लेंगे। हालाँकि, उन्होंने कहा कि भाजपा को थोड़ी परेशानियाँ भी होंगी क्योंकि जनता को उनसे बहुत सारी उम्मीदें हैं। चीन में प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति जिनपिंग के बीच वुहान में हुई मुलाक़ात की एनिवर्सरी भी मनाई जा रही है। भारत-चीन रिश्तों में सुधार का संकेत देते हुए भारतीय एवं चीनी एम्बेसी द्वारा वहाँ आर्ट्स और फ़िल्म फेस्टिवल्स आयोजित किए जा रहे हैं। चीनी मीडिया जिस तरह से भारतीय चुनावों के बारे में चर्चा कर रही है, उससे साफ़ दिखता है कि उनके अनुसार नरेंद्र मोदी ने भारत को ग्लोबल स्टेज पर चमकाने का कार्य किया है।