भीमा-कोरेगॉंव हिंसा और नक्सलियों से संपर्क रखने के आरोप में कथित सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा के खिलाफ मुकदमा चलेगा। बॉम्बे हाई कोर्ट ने उसकी याचिका खारिज कर दी है। नवलखा ने अदालत से अपने खिलाफ दर्ज मामला खत्म करने की गुहार लगाई थी।
अदालत ने पहली नजर में मामले में तथ्य पाए जाने की बात कहते हुए याचिका खारिज की। जस्टिस रंजीत मोरे और भारती डांगरे की पीठ ने कहा, “मामला भीमा-कोरेगॉंव की हिंसा तक ही सीमित नहीं है। इसमें कई और पहलू हैं। मामले की गंभीरता को देखते हुए हमें लगता है कि पूरी छानबीन जरूरी है।” पीठ ने कहा कि यह बिना आधार और सबूत वाला मामला नहीं है।
इस मामले में नवलखा के खिलाफ पुणे पुलिस ने जनवरी 2018 में प्राथमिकी दर्ज की थी। उस पर नक्सलियों से संबंध रखने, भीमा-कोरेगॉंव में हिंसा भड़काने और केंद्र सरकार का तख्तापलट करने की साजिश रचने के आरोप हैं। पुलिस ने अदालत को बताया कि मामले के सह अभियुक्त रोना विल्सन और सुरेंद्र गाडलिंग के लैपटॉप से बरामद कुछ दस्तावेजों से पता चलता है कि नवलखा और उससे जुड़े समूहों की हिज्बुल नेताओं से बातचीत हुई थी। नवलखा के खिलाफ यूएपीए कानून के तहत मामला दर्ज है। उसके अलावा वरवरा राव, अरुण फरेरा, वर्नोन गोंजाल्विस और सुधा भारद्वाज भी आरोपी हैं।
याचिका खारिज होने के बाद नवलखा के वकील युग चौधरी ने गिरफ्तारी से अंतरिम राहत देने की अपील अदालत से की। अदालत ने इससे सहमति जताते हुए तीन हफ्ते के लिए गिरफ्तारी से छूट प्रदान की। चौधरी ने अदालत में नवलखा का पक्ष रखते हुए कहा कि उनके मुक्विल सामाजिक कार्यकर्ता और लेखक है। हिंसा प्रभावित क्षेत्रों के विशेषज्ञ हैं।
उन्होंने कहा, “पूर्व में नक्सलियों ने जब छह पुलिसकर्मियों को अगवा कर लिया था तो भारत सरकार ने उन्हें मध्यस्थ नियुक्त किया था। वह नक्सलियों से संपर्क में थे, लेकिन केवल अपने किताब और तथ्यान्वेषी शोध के लिए। इस तरह के संपर्क के लिए यूएपीए के तहत कैसे मामला दर्ज किया जा सकता है।”