अफगानिस्तान में तालिबान ने जब से अपना शासन शुरू किया है, तब से वहाँ पर अराजकता और भय माहौल है। हालात ये हैं कि देश के लाखों लोग भुखमरी का शिकार हैं, उनके सामने रोजी-रोटी का संकट है। इसका असर यह हो रहा है कि देश के करीब 2.28 करोड़ लोग भुखमरी का सामना कर रहे हैं। इसके अलावा करीब 1.4 करोड़ बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित हैं। इसी को देखते हुए साल बच्चों के लिए काम करने वाली संयुक्त राष्ट्र की शाखा यूनिसेफ ने अंतरराष्ट्रीय ‘बाल दिवस’ नहीं मनाया।
इस मामले में यूनिसेफ अफगानिस्तान के चीफ सामंथा मोर्ट ने संयुक्त राष्ट्र समाचार को बताया कि खाद्य असुरक्षा देश के करीब 1.4 करोड़ बच्चों को प्रभावित कर रही है। उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान में हालात इतने बुरे हैं कि वहाँ पर बचपन जैसी कोई चीज बची ही नहीं है। लोगों को मुल्क में तीन समय का खाना तक नसीब नहीं हो रहा है। लोगों का वक्त यह सोचने में गुजर रहा है कि अगली बार उन्हें खाना कैसे मिलेगा। यूनिसेफ के अधिकारी ने यूएन को बताया कि देश में खाद्य असुरक्षा चरम पर है।
मोर्ट का कहना है कि सूखे, खराब फसल और बढ़ती उत्पादन लागत ने देश में आपदा के संकट को और अधिक बढ़ा दिया है। यूनिसेफ अधिकारी ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि देश में 32 लाख बच्चे बहुत अधिक कुपोषित हैं और 11 लाख बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित होने के कारण मौत के संकट का सामना कर रहे हैं। अधिकारी के मुताबिक, अगर इन बच्चों का तुरंत इलाज नहीं हुआ तो इनपर ये खतरा मंडराता रहेगा।
हालाँकि, मोर्ट का मानना है कि अफगानिस्तान में भुखमरी कोई तालिबान के आनेभर से शुरू नहीं शुरू हुई। देश में यह समस्या बीते 40 वर्षों से लगातार रही है।
स्थिति इतनी बुरी है कि यहाँ बच्चों को काम करके अपने परिवार का भरण-पोषण करना पड़ रहा है। टोलो न्यूज के मुताबिक, हज़ारों अफगान बच्चों को खतरनाक काम करने के लिए मजबूर किया जाता है।
9 साल की सोनिया काबुल की एक गली में जूते पॉलिश करने का काम करती है। वो कहती हैं कि हमें पैसा लाने वाला कोई और नहीं है। हमारा कोई रिश्तेदार हमारी मदद नहीं कर सकता। मैं अकेली हूँ जो काम करती है।
इसी तरह से 10 साल के अब्दुल रहमान ने अफगानिस्तान में 20 साल के संघर्ष में अपने पिता को खो दिया। वह सात सदस्यों के अपने परिवार के लिए इकलौते कमाने वाले है।