पाकिस्तान की बलूच कार्यकर्ता करीमा बलूच की कनाडा की राजधानी टोरंटो में संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई। लेकशोर में हार्बरफ्रंट में उनकी लाश मिली। वो रविवार (दिसंबर 20, 2020) को दोपहर 3 बजे से ही लापता थीं। इसके बाद टोरंटो पुलिस ने उन्हें खोजने के लिए जनता की मदद माँगी थी। करीमा बलूच की लाश एक द्वीप पर मिली। उनके शौहर हम्माल हैदर और भाई ने मृत शरीर की पहचान की।
पुलिस शव को अपने कब्जे में लेकर जाँच कर रही है। लोगों का कहना है कि कनाडा की पुलिस और सुरक्षा एजेंसी CSIS को इस मामले में पाकिस्तान का हाथ होने की जाँच ज़रूर करनी चाहिए। कनाडा में पाकिस्तान के ISI एजेंट्स की सक्रियता बढ़ने की ख़बरें आ रही हैं और वहाँ के मानवाधिकार कार्यकर्ता प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो से अपील कर रहे हैं कि वो कार्रवाई करें। ‘बलूच नेशनल मूवमेंट’ ने करीमा की मौत पर 40 दिनों का शोक घोषित किया है।
करीमा ‘बलूच स्टूडेंट्स ऑर्गेनाईजेशन (आज़ाद)’ के नेता के रूप में लोकप्रिय हुई थीं और क्षेत्र को पाकिस्तान से स्वतंत्रता दिलाने के लिए आंदोलन चलाया था। वो पाकिस्तान की फ़ौज और सरकार के खिलाफ खासी मुखर थीं और महिला व मानव अधिकार के लिए आवाज़ उठाती रहती थीं। वो BSO की पहली महिला अध्यक्ष भी थीं। 2014 में संगठन के तत्कालीन अध्यक्ष ज़ाहिद बलूच के अचानक गायब होने के बाद उन्होंने ये पद सँभाला था।
पाकिस्तान की सरकार ने BSO को एक आतंकी संगठन घोषित कर रखा है और मार्च 15, 2013 को ही इसे प्रतिबंधित संगठनों की श्रेणी में डाल दिया गया था। बलूचिस्तान में पाकिस्तानी फ़ौज द्वारा किए जा रहे अत्याचारों की तरफ अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान दिलाने के लिए प्रयासरत रहीं करीमा 2016 में पाकिस्तान से किसी तरह निकलने में कामयाब हो गई थीं और उन्होंने कनाडा में शरण ली थी। उन्हें कई धमकियाँ मिली थीं।
उन्होंने बताया था कि पाकिस्तान की फ़ौज ने उन पर हमला कर दिया था, जिसमें वो किसी तरह बच निकलीं और 1 वर्ष तक अंडरग्राउंड रहने के बाद अपने कुछ दोस्तों की मदद से पाकिस्तान से बाहर निकलने में कामयाब रहीं। वर्ष 2016 में ही BBC ने उन्हें विश्व की शीर्ष 100 सबसे ‘प्रेरक और प्रभावशाली’ महिलाओं की सूची में रखा था। उनका कथन कि ‘कोई भी राष्ट्रीय आज़ादी का अभियान महिलाओं के बिना अपूर्ण है’, को BBC ने मेंशन किया था।
वर्ष 2016 में करीमा बलूच ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए एक रक्षाबंधन संदेश भेजा था। उन्होंने अपने वीडियो मैसेज में कहा था कि बलूचिस्तान की महिलाएँ पीएम मोदी को अपने भाई के रूप में देखती हैं। बलूचिस्तान में चल रहे युद्ध अपराध, मानवाधिकार उल्लंघन, नरसंहार के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आवाज़ बनने की उन्होंने पीएम मोदी से दरख्वास्त की थी। उन्होंने कहा था, “आप उन बहनों की आवाज़ बनें, जिनके भाई गायब कर दिए गए हैं।”
Dear Minister @BillBlair, the deceased #KarimaBaloch was one of your constituents and met you in your office once.
— Tarek Fatah (@TarekFatah) December 21, 2020
Please ensure her death is not pushed under the rug because she was a refugee here with no family.
मई 2019 में उन्होंने आरोप लगाया था कि पाकिस्तान बलूचिस्तान के संसाधनों का दोहन कर रहा है और यहाँ की जनता गरीब होती जा रही है। उन्होंने स्विट्जरलैंड में आयोजित संयुक्त राष्ट्र के एक सेशन में भी ये मुद्दा उठाया था। बलूच नेशनल मूवमेंट (BNM) ने उनकी मौत को आंदोलन के लिए बड़ी क्षति बताया है। संगठन ने कहा कि वो एक दूरद्रष्टा नेता थीं, राष्ट्रीय प्रतीक थीं- जिनकी भरपाई सदियों में भी नहीं हो सकती।
बलूचिस्तान में लोगों की नाराज़गी और आंदोलन के लिए भी पाकिस्तान हमेशा भारत को ही जिम्मेदार ठहराता है। पाकिस्तानी अख़बार ‘द एक्सप्रेस ट्रिब्यून’ में मुल्क के रिटायर्ड एयर मार्शल और पूर्व एम्बेस्डर शहजाद चौधरी ने एक लेख में दावा किया था कि अजीत डोभाल ‘गंदे हथकंडे’ अपना रहे हैं और 2014 में नरेंद्र मोदी के पीएम बनने के साथ NSA बनाए गए अजीत डोभाल ख़ुफ़िया विभाग के दक्ष व अनुभवी व्यक्ति हैं और 90 के दशक में 6 वर्षों तक पाकिस्तान में रहे हैं।