आरक्षण के खिलाफ सड़कों पर उतरे छात्रों की हिंसा के कारण बांग्लादेश के हालात बिगड़ते जा रहे हैं। स्थिति को नियंत्रित करने के लिए सेना को उतारा गया है। इसके साथ ही उपद्रवियों को देखते ही गोली मारने के भी आदेश जारी किए गए हैं। वहाँ हिंसा में अब तक 115 लोगों की जान जा चुकी है और 1500 से अधिक लोग घायल हैं।
बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार ने रविवार (21 जुलाई) और सोमवार (22 जुलाई) को सार्वजनिक अवकाश घोषित किया है। सिर्फ आपातकालीन सेवाओं को ही चालू रखने की अनुमति दी गई है। वहीं, पूरे देश में कर्फ्यू लगा दिया गया है। इंटरनेट सेवा और रेल सेवा को बंद कर सेना पर तैनात किया गया है। राजधानी ढाका की सड़कों पर सैनिक और पुलिस गश्त कर रहे हैं।
वहाँ के कई टेलीविजन समाचार चैनलों ने न्यूज का प्रसारण बंद कर दिया है। वहीं, ज़्यादातर स्थानीय अख़बारों की वेबसाइटें बंद हो गई हैं। इस बीच, बांग्लादेश के केंद्रीय बैंक और प्रधानमंत्री कार्यालय सहित कुछ प्रमुख सरकारी वेबसाइटों को हैक कर लिया। इसके साथ ही 19 जुलाई को ढाका के नरसिंगडी जेल पर हमला करके उसमें बंद 800 कैदियों को भगा दिया गया और जेल को आग लगा दी गई।
हालात का समाधान निकालने के लिए शुक्रवार (19 जुलाई) की देर रात दोनों पक्षों के प्रतिनिधियों ने बैठक की। इस दौरान कम-से-कम तीन छात्र नेता मौजूद थे। उन्होंने सरकार के प्रतिनिधि कानून मंत्री अनीसुल हक से मौजूदा कोटा प्रणाली में सुधार, झड़पों के बाद पुलिस द्वारा बंद किए गए छात्र छात्रावासों को फिर से खोलने और कुछ विश्वविद्यालय को अधिकारियों को पद से हटाने की माँग की।
बांग्लादेश की हालात को देखते हुए भारत सरकार ने वहाँ फँसे अपने नागरिकों को सुरक्षित वापसी का रास्ता तैयार कर लिया है। विदेश मंत्रालय के अनुसार, शनिवार (20 जुलाई) तक 978 भारतीय स्वदेश लौट आए हैं। इनमें से 778 लोग भूमि सीमा के माध्यम से और 200 से अधिक विमान के माध्यम से वापस लौटे। भारत ने बांग्लादेश की हालत को ‘आंतरिक मामला’ बताते हुए टिप्पणी से परहेज किया है।
पीएम हसीना ने 14 जुलाई को कहा, “अगर स्वतंत्रता सेनानियों के पोते-पोतियों को कोटा का लाभ नहीं मिलता तो क्या रजाकारों के पोते-पोतियों को इसका लाभ मिलना चाहिए?” हसीना ने कोटा प्रणाली का बचाव करते हुए कहा है कि पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध में अपने योगदान के लिए दिग्गजों को सर्वोच्च सम्मान मिलना चाहिए, चाहे उनकी राजनीतिक संबद्धता कुछ भी हो।
इस बयान के बाद बांग्लादेश के छात्र कोटा प्रणाली को समाप्त करने की माँग करते हुए सड़कों पर उतर आए। दरअसल, 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ़ आजादी की लड़ाई लड़ने वाले सेनानियों के परिजनों को 30% आरक्षण दिया जाता है। प्रदर्शनकारियों को बांग्लादेश की विपक्षी और कट्टर इस्लामी खालीदा जिया का समर्थन हासिल है।
हिंसा का कारण
दरअसल, बांग्लादेश में सरकारी नौकरियों में कुछ समूहों के लिए 2018 तक 56% आरक्षण का प्रावधान था। इन्हें बांग्लादेश में बेहद आकर्षक माना जाता है। इन समूहों में विकलांग व्यक्ति (1%), स्वदेशी समुदाय (5%), महिलाएँ (10%), अविकसित जिलों के लोग (10%) और 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के स्वतंत्रता सेनानियों के परिवार (30%) शामिल हैं।
इससे योग्यता के आधार पर चयन के लिए केवल 44% सीटें बचीं। साल 2018 में छात्र समूहों द्वारा बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए, जिसके कारण हसीना सरकार ने कोटा पूरी तरह से खत्म कर दिया। फिर जून 2024 में हाई कोर्ट फिर बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के फैसले को पलट दिया और स्वतंत्रता सेनानियों के परिवारों के लिए 30% आरक्षण को खत्म करने को अवैध ठहराया।