भारत को लगातार पड़ोसी देशों के बहाने घेरने का प्रयास करने वाला चीन, नेपाल में अपना एजेंडा पूरा नहीं कर पा रहा है। नेपाल के भीतर चीन का बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) रफ़्तार नहीं पकड़ पा रहा है। नेपाल और भारत के संबंध इस मामले में सबसे बड़ी रुकावट हैं। इसके अलावा चीन का विदेशों में दिए जाने वाले कर्जे के प्रति रवैया भी इसकी चाल धीमी कर रहा है।
नेपाल, चीन के इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट में 7 साल पहले ही शामिल हो चुका है लेकिन इस पर असल प्रगति अभी नहीं हो पाई है। दोनों देशों के बीच कई मामलों पर तल्खी भी सामने आ चुकी है। चीन ने नेपाल में बनाए गए कुछ प्रोजेक्ट को BRI का नाम दिया है, इसे नेपाल ने नकार दिया है।
क्या है BRI, नेपाल में क्यों घुसना चाहता है चीन?
BRI चीन का एक बड़ा प्रोजेक्ट है। चीन इसके अंतर्गत ऐसे देशों में रोड, रेलवे, एयरपोर्ट और समुद्री बंदरगाहों का निर्माण या विकास करता है, जो कि काफी गरीब हैं और खुद यह करने में सक्षम नहीं है। BRI को चीन नए रेशम मार्ग की संज्ञा देता है। चीन पाकिस्तान और बांग्लादेश को पहले ही BRI का सदस्य बना चुका है। 2017 में नेपाल भी चीन के BRI का सदस्य बन गया था। उस समय नेपाल की सरकारों ने चीन से नजदीकी बढ़ाना चालू की थीं।
हालाँकि, इस समझौते में आने के 7 सालों के बाद भी नेपाल में चीन का यह प्रोजेक्ट रफ़्तार नहीं पकड़ पाया है। चीन, नेपाल में भारत का प्रभाव कम करने के कारण घुसना चाहता है। नेपाल, पारंपरिक रूप से भारत का सहयोगी रहा है। नेपाल अपनी लगभग 70% जरूरतों के लिए भारत पर निर्भर है। उसका विदेशों से होने वाला कारोबार भी भारत के जरिए होता है। खाद्य सामग्रियों से लेकर ईंधन तक भारत नेपाल को देता है। आर्थिक पहलू के अलावा भारत का नेपाल के साथ सांस्कृतिक संबंध भी है।
चीन भारत और नेपाल के इसी सहयोग को खत्म करना चाहता है। चीन नेपाल में भारत का प्रभाव कम करके भारत को दूसरी तरफ से घेरना चाहता है। चीन, नेपाल को इन्फ्रा प्रोजेक्ट के सपने दिखा रहा है ताकि वह उसे कर्ज दे सके और जब नेपाल यह कर्जे वापस करने में असफल हो तब वह नेपाल में अपने लिए रणनीतिक बेस तैयार कर सके। हालाँकि, अभी तक उसे इस काम में सफलता नहीं मिली है। उसका BRI नेपाल में आकार नहीं ले पा रहा।
समझौता अब तक क्यों नहीं हो पाया फाइनल?
नेपाल और चीन के बीच BRI के लिए समझौता 2017 में ही हो चुका है लेकिन इस पार काम कुछ चिंताओं के चलते नहीं बढ़ पा रहा। दरअसल, नेपाल ने अभी तक BRI के तहत विकसित किए जाने वाले कोई भी प्रोजेक्ट नहीं चुने हैं। BRI ,किस तरीके से नेपाल में लागू किया जाए इसको लेकर चीन और नेपाल के बीच सहमति नहीं बन पाई है। नेपाल का कहना है कि वह अपने देश में बनने वाले BRI प्रोजेक्ट के लिए 1% से अधिक के ब्याज पर कर्ज नहीं ले सकता।
नेपाल ने चीन से यह भी कहा है कि वह BRI प्रोजेक्ट के लिए कर्जे की बजाय अनुदान लेना ज्यादा पसंद करेगा। नेपाल का कहना है कि इससे उनकी अर्थव्यवस्था पर दबाव पड़ेगा। इसके अलावा नेपाल को BRI लागू करने वाले दस्तावेज के कुछ उपबंधों से समस्या है। इसीलिए इस पर हस्ताक्षर नहीं हो रहे। इसके अलावा नेपाल ने चीन को समझौते के तहत विकसित किए जाने वाले प्रोजेक्ट की लिस्ट भी पूर्व में सौंपी थी, इसमें 30 से अधिक प्रोजेक्ट के नाम थे। बाद में चीन ने काट कर इन प्रोजेक्ट की सँख्या 9 कर चुका है।
BRI को लेकर जहाँ पिछले 7 सालों में कोई प्रगति नहीं हो पाई है, वहीं आगे भी इसके कोई आसार नहीं दिखते। इसके पीछे चीन की नीतियाँ और उसके BRI की छवि एक बड़ा कारण है। नेपाल की आंतरिक राजनीति भी इसमें एक बड़ा कारण है। नेपाल की पार्टियों ने कहा है कि चीन के BRI को लागू करने से पहले सबके बीच सहमति होनी चाहिए।
नेपाल में दखल के लिए महिला का राजदूत का चीन ने किया था इस्तेमाल
चीन, नेपाल में अपने हित साधने के लिए सभी प्रकार के हथकंडे अपनाता आया है। 2020 में चीन की नेपाल में राजदूत होऊ यांगी नेपाल के तत्कालीन प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को हनी ट्रैप में फँसाने की खबरें सामने आई थी।
कहा गया था कि यांकी कहने पर ही ओली ने एक नक्शा पास करवाया था, जिसमें उत्तराखंड के तीन जगह कालापानी, लिम्पियाधुरा और लिपुलेख को अपना हिस्सा बताया था। इसके अलावा नेपाल के कुछ इलाकों पर चीन द्वारा अतिक्रमण करने की भी खबरें आई थी। कहा गया था कि ‘सेक्स टेप‘ की वजह से ओली इस अतिक्रमण को लेकर चुप हैं। बताया गया था कि होऊ यांगी को नेपाली सेना के प्रमुख जनरल पूर्णचंद्र थापा का दफ्तर हो या पीएम ओली का कार्यालय, चीनी राजदूत नेपाल के किसी भी क्षेत्र में बेरोकटोक आ-जा सकती थी।
नेपाल-चीन में होती रही है खींचतान
नेपाल और चीन में बीते कुछ समय में खींचतान भी होती आई है। नेपाल ने चीन से सहायता लेकर पोखरा एयरपोर्ट बनाया था। इसके लिए फंडिंग चीन की बैंकों ने की थी जबकि इसका निर्माण भी चीन की ही कम्पनियों ने किया था। नेपाल का कहना था कि यह प्रोजेक्ट BRI के तहत नहीं बना है और उससे अलग है। इसके उलट जब इसका उद्घाटन अक्टूबर 2023 में हुआ तब चीन ने इसे BRI के तहत बना हुआ बताया। नेपाल ने इससे इनकार किया। इसको लेकर नेपाल के भीतर चिंताएँ भी जाहिर की गईं।
भारत को घेरने की रणनीति हुई फेल
नेपाल के जरिए भारत को घेरने की रणनीति फेल हो गई है। भारत और नेपाल संबंधों में बीच में कुछ तल्खी आ गई थी जिसका चीन फायदा उठाना चाहता था। दोनों देशों पर BRI के लिए समझौता भी इसी दौरान हुआ था। हालाँकि, भारत से नेपाल के संबंध फिर से प्रगाढ़ हो गए। भारत वर्तमान में नेपाल के कई हाइड्रो और इन्फ्रा प्रोजेक्ट में भी मदद कर रहा है। बीते वर्ष 2023 में नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड भारत के दौरे पर आए थे।
इस दौरे में भारत ने नेपाल से 10,000 मेगावाट बिजली खरीदने का समझौता किया था। भारत ने इस दौरान नेपाल के कई बिजली प्रोजेक्ट बनाने को लेकर भी सहमति दी थी। इसके अलावा रेलवे लाइन और माल की आवाजाही को लेकर भी दोनों देशों में समझौते हुए थे। ऐसे में चीन की दाल नेपाल में गलना फिर से बंद हो गई है।