पाकिस्तान में पत्रकार गौहर वज़ीर को गिरफ्तार किए जाने पर अंतरराष्ट्रीय पत्रकार बिरादरी ने कड़ी प्रतिक्रिया जताई है। कमिटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट (Committee to Protect Journalists) नामक अंतरराष्ट्रीय गैर सरकारी संगठन ने पाकिस्तानी अधिकारियों से गौहर को रिहा करने को कहा है। CPJ ने कहा है कि गौहर को इसलिए गिरफ्तार नहीं किया जा सकता कि उन्होंने PTM जैसे विवादास्पद संगठन की रिपोर्टिंग की। दरअसल गौहर वज़ीर पाकिस्तान में पश्तूनों के हक़ के लिए लड़ने वाले संगठन ‘पश्तून तहफ़्फ़ुज़ मूवमेंट’ (PTM) के समर्थन में थे इसलिए पाकिस्तानी फौज के इशारे पर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया है।
गौहर वज़ीर को 21 अन्य लोगों के साथ खैबर पख्तूनख्वाह के बन्नू ज़िले से गिरफ्तार किया गया है। ‘खैबर न्यूज़’ अख़बार के रिपोर्टर गौहर पर आरोप है कि उन्होंने मोहसिन डावर का इंटरव्यू लिया था जिसने PTM मेम्बरों के साथ मिलकर पाकिस्तान सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लिया था। डॉन की खबर के अनुसार यह विरोध प्रदर्शन हिंसक हो गया था और इसमें 3 लोगों की जान चली गई थी, तथा 15 घायल हो गए थे।
पीटीएम का कहना है कि वो रविवार (26 मई) को शांतिपूर्ण तरीक़े से अपनी मांगों के लेकर प्रदर्शन कर रहे थे और पाकिस्तानी फ़ौज ने उनके निहत्थे प्रदर्शनकारियों पर फ़ायरिंग शुरू कर दी, जिसमें कई लोग घायल हो गए। हमले के बाद पाकिस्तान के ट्विटर पर #StateAttackedPTM ट्रेंड कर रहा था। हालाँकि पाकिस्तान के न्यूज़ चैनलों पर दूसरी ख़बरें दिखाई जा रही थीं। पाकिस्तानी फ़ौज यह बता रही थी कि कुछ हथियारबंद लोगों ने फ़ौज पर हमला किया।
बता दें कि पाकिस्तान की सरकार ने पश्तूनों को सारे अधिकारों से वंचित कर रखा है। लोगों को बिना किसी अपराध के उठा लिया जाता है और उनपर ज़ुल्म किए जाते हैं। पीटीएम की माँग रही है कि ट्राइबल बेल्ट में अनावश्यक चेक पोस्ट और जानलेवा लैंडमाइन हटाई जाएँ, और उन्हें वापस लौटाया जाए जिन्हें पाकिस्तानी फ़ौज जबरन उठा ले गई। गौरतलब है कि पश्तून क्षेत्रों में आज भी अंग्रेजों वाले कानून ही लागू हैं और वहाँ के लोगों की माँग है की उन्हें भी वही अधिकार दिए जाएँ जो कराची या इस्लामाबाद में रहने वाले नागरिकों को मिले हैं। पाकिस्तान की सरकार पश्तूनों की आवाज़ को दुनिया तक पहुँचने नहीं देना चाहती इसलिए वहाँ की प्रेस और मीडिया को दबा कर रखती है। इसी सिलसिले में गौहर वज़ीर को गिरफ्तार किया गया है जिसपर अब अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने आवाज़ बुलंद की है।
पश्तून पाकिस्तान के सबसे बड़े जनजातीय समूहों में से हैं और उनके आंदोलन की जड़ें पाकिस्तान के निर्माण से पहले से हैं। उनकी माँग रही है कि अफ़ग़ानिस्तान-पाकिस्तान बॉर्डर पर पश्तूनों का अलग देश बनाया जाए। पाकिस्तानी सरकार इस बात से डरती है कि कहीं पीटीएम उस आंदोलन से न जुड़ जाए। गत वर्ष जनवरी 2018 में वज़ीरिस्तान के एक 27 वर्षीय पश्तून मॉडल नक़ीबुल्लाह महसूद को पुलिस ने गोली मार दी थी जिसके बाद पश्तून आंदोलन और भड़क उठा था। नक़ीबुल्लाह एक उभरता हुए मॉडल था। उसकी मौत के ख़िलाफ़ लोगों ने प्रदर्शन शुरू कर दिया, जिसमें मंज़ूर पश्तीन शामिल हो गए। मंज़ूर पश्तीन की पहचान पाकिस्तान के पिछड़े और दबे-कुचले समाज की आवाज़ के रूप में की जाती है।
पश्तून तहफ़्फ़ुज़ मूवमेंट (PTM) जिसे 2014 में मंज़ूर पश्तीन ने बनाया था, नक़ीबुल्लाह की हत्या के बाद और मुखर हो उठा। नक़ीबुल्लाह की गैर क़ानूनी रूप से की गई हत्या के बाद पीटीएम की मुहिम का असर यह हुआ कि हत्या में शामिल सुपरिटेंडेंट ऑफ़ पुलिस राव अनवर अहमद खान को भागकर छिप जाना पड़ा। पीटीएम ने नारा दिया था– “यह जो दहशतगर्दी है, उसके पीछे वर्दी है।” इस नारे के कारण ही पाकिस्तानी फ़ौज पीटीएम को देशद्रोही कहती है।
पाकिस्तान में दूसरे सबसे बड़े जातीय समूह पश्तून लगातार अपनी सुरक्षा, नागरिक स्वतंत्रता और समान अधिकार के लिए संघर्ष कर रहे हैं। वास्तव में पश्तून समाज अपने लिए एक अलग देश की माँग तब से करता रहा है जब पाकिस्तान बना भी नहीं था। पीटीएम एक अहिंसक आंदोलन है और उसे किसी अन्य देश से किसी प्रकार का संसाधन नहीं मिलता। पाकिस्तान यह अफवाह फैलाता है कि पश्तून आंदोलन को भारत द्वारा फंडिंग की जा रही है लेकिन वास्विकता यह है कि पीटीएम अपने दम पर पाकिस्तानी ज़ुल्म से लड़ रहा है।