यूरोपियन कोर्ट ऑफ़ जस्टिस ने एक अहम फैसला सुनाया है जिसके तहत प्रशासन/अधिकारी आदेश दे सकते हैं कि जानवरों का वध करने से पहले उनकी स्टनिंग (Stunning) की जाए। दरअसल, बेल्जियम के फ्लेमिश (Flemish) क्षेत्र में एक नियम लागू किया गया था, जिसके अंतर्गत पशुओं की हत्या करने के लिए उनकी स्टनिंग (बेहोश/बेसुध) अनिवार्य होगी। पशु अधिकारों के आधार पर स्टनिंग के बिना पशुओं की हत्या पर पाबंदी होगी। गुरुवार (17 दिसंबर 2020) को यूरोपियन यूनियन की सबसे बड़ी अदालत ने इस नियम का समर्थन किया।
इस आदेश में न्यायालय ने कहा, “अदालत इस नतीजे पर आई है कि फैसले में निहित उपायों से पशु कल्याण के महत्व और यहूदी-मुस्लिम समुदाय की स्वतंत्रता के बीच संतुलन बनाए रखने में सहजता होती है।” बेल्जियम स्थित फ्लैंडर की संसद ने 2017 में यह आदेश जारी किया था, जिसे पिछले साल 2019 जनवरी में लागू किया गया था। इसमें स्पष्ट रूप से कहा गया था कि बूचड़खानों को पशुओं का क़त्ल करने से पहले उन्हें बेसुध करना चाहिए। आदेश के समर्थन में यह दलील दी गई थी कि इसकी मदद से जानवरों की पीड़ा कम की जा सकती है।
इस आदेश पर नेशनलिस्ट एनिमल वेलफेयर मिनिस्टर बेन वेट्स (Ben Weyts) ने कहा, “हम इतिहास बनाने जा रहे हैं।” इसके अलावा पशु मानवाधिकार संगठन ‘गाइया’ (Gaia) के मुताबिक़, “यह एक ऐतिहासिक दिन है। पूरे 25 साल के संघर्ष के बाद हमें इतनी बड़ी जीत हासिल हुई है।” इसके पहले तक यूरोपियन यूनियन और यूके के नियमों के अनुसार पशुओं की हत्या के पहले उनकी स्टनिंग अनिवार्य थी बशर्ते वह मुस्लिम या यहूदी समुदाय के लिए नहीं हों। यह एक बड़ा कारण था कि तमाम मुस्लिम संगठनों ने भी इस आदेश का जम कर विरोध किया था।
इस आदेश से दो प्रक्रियाएँ सीधे तौर पर प्रभावित होती हैं, मुस्लिमों की हलाल और यहूदियों की कोशर (Kosher)। पशु मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने इस प्रतिबंध को बढ़ावा दिया था जिससे इन दो प्रक्रियाओं को रोका जा सके, जिनमें पशुओं का गला काटने के दौरान वह होश में रहते हैं। यहूदी और मुस्लिम समुदाय के लोगों का कहना है कि यह आदेश उनके रीति रिवाजों पर हमला है।
उनका कहना था कि यह उनके धर्म से जुड़ा हुआ है और अदालत को उनकी धार्मिक प्राथमिकता का पूरा ध्यान रखना चाहिए। इस मुद्दे पर बेल्जियम स्थित यहूदियों के संगठन (बेल्जियम फेडरेशन ऑफ़ ज्यूस आर्गेनाईजेशन) ने कहा कि यह लोकतंत्र को अस्वीकार करने के बराबर है। इस तरह के फैसलों से यह पता चलता है कि अल्पसंख्यकों के अधिकारों को बिलकुल महत्व नहीं दिया जाता है।