Sunday, November 24, 2024
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‘हिजाब पहनने पर मुस्लिमों को देना होगा जुर्माना’: जानें कौन है वह महिला नेता जो फ्रांस के राष्ट्रपति चुनाव में मैक्रों को दे रहीं हैं कड़ी टक्कर, इस्लाम के प्रति है सख्त रवैया

ले पेन ने कहा, "जैसे कारों में सीटबेल्ट पहनना अनिवार्य होता है। उसी तरह मुस्लिम सार्वजनिक स्थानों पर हिजाब न पहनें।"

फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की नींद उड़ा देने वाली फ्रांस में राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार मरीन ले पेन (Marine Le Pen) इन दिनों दुनिया भर में चर्चा में हैं। सत्ता पर काबिज होने से पहले ले पेन जनता की नब्ज पकड़ने की कोशिश कर रही हैं, उन्होंने गुरुवार (7 अप्रैल 2022) को कहा, ”सार्वजनिक स्थानों पर हिजाब पहनने वाली मुस्लिम महिलाओं को जुर्माना देना होगा।” आरटीएल रेडियो (RTL Radio) से बात करते हुए ले पेन ने कहा, “जैसे कारों में सीटबेल्ट पहनना अनिवार्य होता है। उसी तरह मुस्लिम सार्वजनिक स्थानों पर हिजाब न पहनें।” उन्होंने कहा कि जैसे सीटबेल्ट नहीं पहनने पर लोगों को जुर्माना देना पड़ता है, ठीक उसी तरह हिजाब पहनने पर जुर्माना देना होगा। पुलिस इस नियम को लागू करने में सक्षम है।

सबसे अधिक अप्रवासियों का मुद्दा उठाने वाली पेन इस साल घरेलू मुद्दों पर फोकस कर रही है। चुनावी मैदान में मैक्रों को कड़ी टक्कर देने वाली पेन ने यह भी कहा है कि उनके कानूनों को भेदभावपूर्ण और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का उल्लंघन बताकर संवैधानिक चुनौती दी जा सकती है, लेकिन इस तरह की चुनौतियों से बचने के लिए वो जनमत संग्रह का रास्ता निकालेंगी।

दरअसल, फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों (President Emmanuel Macron) का 5 साल का कार्यकाल पूरा होने वाला है। अब फ्रांस के लोग अपना नया राष्ट्रपति चुनने वाले हैं। राष्ट्रपति चुनाव के पहले राउंड की वोटिंग रविवार (10 अप्रैल 2022) को होनी है। इस बीच, पक्ष-विपक्ष के नेता कैंपेन कर रहे हैं। इमैनुएल मैक्रों जो फ्रांस में काफी पॉपुलर हैं, वह एक महिला प्रतिद्वंदी से चुनावी चुनौती का सामना कर रहे हैं। ओपिनियन पोल्स में मैक्रों को उनसे कड़ी टक्कर मिल रही है। इसमें मैक्रों मामूली बढ़त बनाए हुए हैं। दिनों-दिन यह फासला कम होकर महिला उम्मीदवार के पक्ष में जा रहा है।

कौन ​हैं मरीन पेन

मरीन पेन का जन्म 1968 में हुआ था। 53 साल की मरीन पेन फ्रांस की विपक्षी और दक्षिणपंथी पार्टी ‘नेशनल फ्रंट’ की सबसे बड़ी नेता हैं। वह राष्ट्रपति मैक्रों की नीतियों की मुखर विरोधी हैं। फ्रांस में पेन की पहचान एक कट्टर राष्ट्रवादी और प्रवासी विरोधी की है। उन्होंने अपने भाषणों से युवाओं के बीच खासा लोकप्रियता हासिल की है। यही नहीं पेन फ्रांस में फैले ‘इस्लामिक कट्टरता’ पर नरम रुख के लिए हमेशा से राष्ट्रपति मैक्रों की आलोचना करती रही हैं।

पेन फिलहाल नेशनल असेंबली की मेंबर हैं। इन दिनों वह जमीनी मुद्दों को भांपते हुए कई ऐसे फैसले लेने की घोषणा कर रही है, जिससे लोगों में उनके प्रति विश्वास और बढ़ सके। उनके पास 24 अप्रैल को रन-ऑफ जीतने का एक बेहतरीन मौका है। बताया जाता है कि उनके पिता जिन मैरी ले पेन भी फ्रांस के बड़े दक्षिण-पंथी नेता थे। कई साल तक बतौर वकील काम करने के बाद 2011 में पेन अपने पिता की बनाई राइट विंग विपक्षी पार्टी ‘नेशनल फ्रंट’ में आ गईं।

फ्रांस ने इस्लामी कट्टरपंथ के खिलाफ ये कदम उठाए

गौरतलब है कि फ्रांस लंबे समय से इस्लामी कट्टरपंथियों से लड़ने की कोशिशों में लगा हुआ है। पिछले महीने फ्रांस सरकार ने ‘कट्टरपंथी इस्लाम’ को पनाह देने और ‘आतंकवादी हमलों को वैध ठहराने’ के लिए ले मैंस के पास एलोनेस में एक मस्जिद को बंद करने का आदेश दिया था। गृह मंत्री डारमैनिन ने तब मस्जिद बंद का समर्थन करते हुए ट्विटर पर लिखा था, “इस मस्जिद में फ़्रांस के प्रति घृणा पैदा करने वाले संदेशों के भड़काया गया।” 

इससे पहले फ्रांसीसी सरकार ने कट्टरपंथ से लड़ने के लिए इस्लाम को लेकर बड़ा फैसला किया। इस साल 5 फरवरी वहाँ की सरकार ने इस्लाम को अपने मुताबिक ढालने के लिए एक निकाय को पेश किया जिसमें इमाम, कुछ सामान्य जन और महिलाएँ होंगी। इस नए निकाय का नाम ‘फोरम ऑफ इस्लाम इन फ्रांस’ है।

जानकारी के मुताबिक, मुस्लिमों और मस्जिदों क खिलाफ चल रहे अभियान के बीच, फ्रांस ने नवंबर 2020 से 89 निरीक्षण की गई मस्जिदों में से एक-तिहाई को बंद कर दिया है। इससे पहले खबर आई थी कि फ्रांसीसी सरकार ने एक साल से भी कम समय में लगभग 30 मस्जिदों को बंद कर दिया था। सार्थे गवर्नरेट ने 25 अक्टूबर को एक बयान जारी कर कहा कि एलोन्स में 300 लोगों की क्षमता वाली मस्जिद को इस आधार पर छह महीने के लिए बंद कर दिया था कि यह ‘कट्टरपंथी इस्लाम का बचाव करती है।’ यह एक अभियान का हिस्सा था, जिसकी अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों के साथ-साथ वैश्विक नेताओं, विशेष रूप से मुस्लिम-बहुल देशों में दुनिया भर में आलोचना की गई थी।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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