Tuesday, December 10, 2024
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माता सीता, द्रौपदी, राजा प्रियवद… छठी मैया की उपासना की पौराणिक कथाओं के बारे में जानिए: जीवन में संयम, शुद्धता और आत्म-नियंत्रण की भावना भी जागृत करता है लोकपर्व

आइए, हम इस पर्व की महिमा को सहेजें और इसे पूरे विश्व में फैलाकर मानवता के कल्याण के लिए प्रेरणा स्रोत बनाएँ। छठ पूजा हमें यह सिखाती है कि सामूहिकता और श्रद्धा में एक अद्वितीय शक्ति होती है, जो हमारे जीवन को नई दिशा और ऊर्जा प्रदान करती है।

भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत में एक ऐसा पर्व है जो न केवल आस्था और भक्ति का प्रतीक है, बल्कि सामुदायिक एकता और सामाजिक समरसता का भी अद्वितीय उदाहरण है। यह पर्व है – छठ पूजा। भोजपुरी क्षेत्र में इस पर्व की जड़ें इतनी गहरी हैं कि इसे ‘लोक आस्था का पर्व’ कहा जाता है। यह पर्व सूर्य देव और छठी मईया की आराधना के रूप में मनाया जाता है और 15 करोड़ से अधिक विश्व भर में फैले मैथली, मगध, बंगाली, भोजपुरी, भारतीय प्रवासी और नेपाली समाज के लिए यह आस्था का मुख्य केंद्र है।

छठ पर्व, जिसे छठी पूजा या षष्ठी पूजा भी कहा जाता है, कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाने वाला एक प्रमुख हिंदू पर्व है। सूर्य की आराधना के इस अनोखे लोकपर्व का विशेष रूप से बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में व्यापक आयोजन होता है। इनके अलावा भारत के विभिन्न क्षेत्रों में और नेपाल, मॉरीशस, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, साउथ अफ़्रीका और फ़िजी जैसे देशों में भी मनाया जाता है।

यह पर्व एकमात्र ऐसा त्योहार है जो वैदिक काल से निरंतर प्रचलित है और अब यह बिहार की संस्कृति का अभिन्न अंग बन चुका है। यह पर्व बिहार की वैदिक आर्य संस्कृति की झलक प्रस्तुत करता है और ऋग्वेद में वर्णित सूर्य एवं उषा पूजन की आर्य परंपरा के अनुरूप मनाया जाता है। छठ पूजा सूर्य देवता, प्रकृति, जल, वायु और उनकी बहन छठी मईया को समर्पित है, जिन्हें देवी पार्वती के छठे रूप और भगवान सूर्य की बहन के रूप में पूजा जाता है।

पर्यावरणविदों का भी मानना है कि अन्य कई सनातनी त्योहारों पर पर्यावरण विरोधी होने का आरोप लगाया जाता है, लेकिन छठ पर्व सबसे अधिक पर्यावरण-अनुकूल हिंदू त्योहारों में से एक है। जहाँ आज अधिकांश त्योहारों का व्यवसायीकरण हो चुका है, वहीं छठ पर्व में मौसमी फलों और घर पर बनी मिठाइयों, विशेष रूप से ठेकुआ, का प्रयोग होता है, न कि मिष्ठान भंडार की मिठाइयों या चॉकलेट का।

छठ पूजा का ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व

छठ पूजा की जड़ें प्राचीन वैदिक काल से जुड़ी हुई हैं। सूर्य उपासना का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है, जिसमें सूर्य को जीवनदायिनी ऊर्जा का स्रोत माना गया है। कहते हैं कि इस पूजा की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। एक कथा के अनुसार, जब पांडवों ने अपना राज्य खो दिया था, तब द्रौपदी ने सूर्य देव की उपासना की थी ताकि उनके परिवार को कठिनाइयों से मुक्ति मिले। इसके परिणामस्वरूप पांडवों को समृद्धि और विजय प्राप्त हुई।

पुराणों की कथा: एक कथा के अनुसार, राजा प्रियवद संतान सुख से वंचित थे। महर्षि कश्यप ने उनकी यह व्यथा सुनकर पुत्र प्राप्ति के लिए एक यज्ञ करवाया और यज्ञ की आहुति से प्राप्त खीर राजा की पत्नी मालिनी को दी। खीर के प्रभाव से उन्हें पुत्र प्राप्त हुआ, लेकिन वह मृत जन्मा। पुत्र के वियोग में दुखी होकर राजा प्रियवद श्मशान में अपने प्राण त्यागने का संकल्प लेने लगे। तभी ब्रह्माजी की मानस कन्या, देवी देवसेना, प्रकट हुईं और उन्होंने कहा, “हे राजन्, मैं सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हूं, इसलिए मुझे षष्ठी कहा जाता है। आप मेरी पूजा करें और अन्य लोगों को भी इस पूजा के लिए प्रेरित करें।” राजा ने पुत्र प्राप्ति की कामना से देवी षष्ठी का व्रत किया, जिसके फलस्वरूप उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन संपन्न हुई थी।

राम-सीता की कथा: एक और प्रसिद्ध कथा के अनुसार, जब भगवान राम और माता सीता 14 वर्षों के वनवास के बाद अयोध्या लौटे, तब उन्होंने कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन सूर्य देव और छठी मईया की पूजा की। इस पूजा के परिणामस्वरूप अयोध्या के लोग सुखी और समृद्ध हुए। यह परंपरा तब से आज तक चली आ रही है।

कर्ण की कथा: महाभारत के महान योद्धा कर्ण, जिन्हें सूर्य पुत्र के रूप में जाना जाता था, अपनी शक्ति और पराक्रम के लिए प्रतिदिन सूर्य देव की आराधना करते थे। उनका यह तप और सूर्य के प्रति समर्पण छठ पूजा के महत्व को और भी गहराई से दर्शाता है।

भोजपुरी समाज में छठ पूजा का महत्व

भोजपुरी भाषी समाज के लिए छठ पूजा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह उनके जीवन और संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। भारत के बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, और झारखंड के साथ-साथ नेपाल के तराई क्षेत्रों में भी इस पर्व की धूम रहती है। यही नहीं, विश्व के विभिन्न हिस्सों में बसे भोजपुरिया समुदाय – चाहे वह अमेरिका हो, ब्रिटेन हो, या खाड़ी देश – अपने परंपरागत ढंग से इस पर्व को उसी श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाते हैं।

छठ पूजा के दौरान समाज के सभी वर्गों के लोग एक साथ आकर इस पर्व को मनाते हैं। इस पर्व की सबसे खास बात यह है कि इसमें किसी भी प्रकार की धार्मिक असमानता नहीं होती। सभी एक समान श्रद्धा के साथ गंगा, कोसी, गंडक, या अन्य किसी नदी या जलाशय के किनारे एकत्र होकर सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करते हैं।

छठ पूजा के अनुष्ठान और विधियाँ

छठ पूजा चार दिनों का पर्व है, जिसमें व्रती (व्रत रखने वाले व्यक्ति) अत्यंत कठोर नियमों का पालन करते हैं। प्रत्येक अनुष्ठान का अपना एक विशेष महत्व होता है और ये सभी अनुष्ठान आत्मशुद्धि, संयम और तपस्या का प्रतीक माने जाते हैं।

पहला दिन – नहाय-खाय: छठ पूजा की शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को नहाय-खाय से होती है। व्रती इस दिन गंगा या किसी पवित्र नदी में स्नान करते हैं और शुद्ध शाकाहारी भोजन करते हैं। इस भोजन में आमतौर पर कद्दू-भात और चने की दाल होती है, जिसे मिट्टी के चूल्हे पर पकाया जाता है।

दूसरा दिन – खरना: पंचमी के दिन व्रती पूरे दिन निर्जला उपवास रखते हैं और शाम को पूजा कर प्रसाद के रूप में गुड़ की खीर, रोटी और फल ग्रहण करते हैं। खरना का प्रसाद व्रती के लिए अत्यंत पवित्र माना जाता है और इसे ग्रहण करने के बाद 36 घंटे का निर्जला व्रत आरंभ होता है।

तीसरा दिन – संध्या अर्घ्य: छठ के तीसरे दिन, यानी षष्ठी के दिन, व्रती डूबते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। व्रती अपने परिवार और समुदाय के लोगों के साथ जल में खड़े होकर सूर्य को प्रसाद और अर्घ्य अर्पित करते हैं। इस समय घाटों पर छठ के पारंपरिक गीत गाए जाते हैं, जो इस पूजा के सौंदर्य को और भी बढ़ा देते हैं।

चौथा दिन – उषा अर्घ्य: छठ पूजा के अंतिम दिन सप्तमी को उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। यह अर्घ्य जीवन में नए सवेरे, आशा और नई ऊर्जा का प्रतीक है। अर्घ्य देने के बाद व्रती अपना उपवास तोड़ते हैं और प्रसाद का वितरण करते हैं।

सामाजिक और सांस्कृतिक योगदान

छठ पूजा का महत्व सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी अतुलनीय है। यह पर्व समाज में सामूहिकता और एकता का प्रतीक है। घाटों की सफाई, प्रसाद का वितरण और पूरी पूजा प्रक्रिया में सामूहिक सहयोग समाज के हर वर्ग को एक साथ जोड़ता है। छठ पूजा के दौरान गाए जाने वाले पारंपरिक गीत भोजपुरी संस्कृति के धरोहर हैं। ये गीत न केवल भक्ति भावना को जागृत करते हैं, बल्कि छठ पूजा के महत्व और मूल्यों को भी दर्शाते हैं।

छठ पूजा और आधुनिकता

समय के साथ आधुनिकता ने हमारे जीवन में प्रवेश किया है, परंतु छठ पूजा की पवित्रता और परंपराओं में कोई कमी नहीं आई है। आज भी शहरों में, चाहे वह दिल्ली हो, मुंबई हो या कोई अन्य महानगर, छठ पूजा उसी श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाई जाती है। लोग कृत्रिम तालाब और जलाशयों का निर्माण करते हैं ताकि शहरों में भी इस पूजा का आयोजन हो सके।

छठ पूजा का महत्व

छठ पूजा एक ऐसा पर्व है जो जीवन में संयम, शुद्धता, और आत्म-नियंत्रण की भावना को जागृत करता है। यह हमें प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने और सामाजिक एकता को बढ़ावा देने का संदेश देता है। यह पर्व भोजपुरिया समाज की सांस्कृतिक समृद्धि और गौरव का प्रतीक है।

छठ पूजा सूर्य देवता, प्रकृति, जल, वायु और उनकी बहन छठी मईया को समर्पित है, जिन्हें देवी पार्वती के छठे रूप और भगवान सूर्य की बहन के रूप में पूजा जाता है। पर्यावरणविदों का भी मानना है कि अन्य कई सनातनी त्योहारों पर पर्यावरण विरोधी होने का आरोप लगाया जाता है, लेकिन छठ पर्व सबसे अधिक पर्यावरण-अनुकूल हिंदू त्योहारों में से एक है। जहां आज अधिकांश त्योहारों का व्यवसायीकरण हो चुका है, वहीं छठ पर्व में मौसमी फलों और घर पर बनी मिठाइयों, विशेष रूप से ठेकुआ, का प्रयोग होता है, न कि मिष्ठान भंडार की मिठाइयों या चॉकलेट का।

आइए, हम इस पर्व की महिमा को सहेजें और इसे पूरे विश्व में फैलाकर मानवता के कल्याण के लिए प्रेरणा स्रोत बनाएं। छठ पूजा हमें यह सिखाती है कि सामूहिकता और श्रद्धा में एक अद्वितीय शक्ति होती है, जो हमारे जीवन को नई दिशा और ऊर्जा प्रदान करती है।

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Shashi Prakash Singh
Shashi Prakash Singh
Shashi Prakash Singh is a known educationist who guided more than 20 thousand students to pursue their dreams in the medical & engineering field over the last 18 years. He mentored NEET All India toppers in 2018. actively involved in social work which supports the education of underprivileged children through Blossom India Foundation.

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