अमेरिका के नव-निर्वाचित राष्ट्रपति जो बायडेन का शपथग्रहण समारोह बुधवार (जनवरी 20, 2021) को प्रस्तावित है। कई संगठन, प्राइवेट कंपनियाँ और लोग हैं, जिन्होंने 200 डॉलर (14,676 रुपए) से अधिक का डोनेशन इस समारोह के लिए दिया है। इस समारोह का आयोजन कर रही समिति ने इसकी सूची जारी की है। डोनेशन देने वाली कंपनियों में गूगल और माइक्रोसॉफ्ट भी शामिल है, जिन पर राजनीतिक पक्षपात के आरोप लगते रहे हैं।
हालाँकि, समिति ने अतिरिक्त डिटेल्स जारी नहीं किए हैं और ये नहीं बताया कि किसने कितनी रकम डोनेशन के रूप में दी। क्वालकॉम, केबल प्रोवाइडर कॉम्कास्ट, चार्टर कम्युनिकेशंस, बोईंग और इन्स्युरर एंथम वो कंपनियाँ हैं, जिन्होंने जो बायडेन के शपथग्रहण समारोह के लिए डोनेशन दिया है। अमेरिकन फेडरेशन ऑफ टीचर्स और यूनाइटेड फ़ूड एंड कमर्शियल वर्कर्स ने भी समारोह के लिए दान दिया है।
पूर्व सीनेटर बार्बरा बोक्सेरोफ़ और गायिका बारब्रा स्ट्रेसैंड भी उन हस्तियों में शामिल हैं, जिन्होंने डोनेशन दिया। अप्रैल 15 को फ़ेडरल कमीशन के सामने इन सभी की सूची सौंपी जाएगी। कैपिटल हिल हिंसा के बाद इस शपथग्रहण समारोह के लिए सुरक्षा बढ़ा दी गई है। जो बायडेन और कमला हैरिस ने कहा है कि लोग इस दिन घर में ही रहें और इस आयोजन को टीवी पर देखें। बायडेन के सम्बोधन को लेकर भी तैयारियाँ की जा रही हैं।
गूगल और माइक्रोसॉफ्ट के डोनेशन देने को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। जहाँ एक तरफ गूगल ने ‘Parler’ एप को अपने प्ले स्टोर से हटा दिया है और उसे ‘हिंसा को बढ़ावा देने वाले कंटेंट्स’ हटाने को कहा है क्योंकि ट्विटर-फेसबुक पर प्रतिबंधित होने के बाद डोनाल्ड ट्रम्प ने वहाँ अकाउंट बनाया था और उनके समर्थक भी वहाँ बड़ी संख्या में हैं, वहीं दूसरी तरफ जो बायडेन के शपथग्रहण समारोह में उसने डोनेशन दिया है।
The Biden Inaugural Committee on Saturday released its list of donors, which included Google, Microsoft, Boeing and several other major corporations https://t.co/D5XtZLCzqV
— POLITICO (@politico) January 10, 2021
एक तरफ ये कंपनियाँ अपने प्लेटफॉर्म्स पर विचारधारा के आधार पर ये तय करने में लगी हैं कि किसके हैंडल को प्रतिबंधित किया जाएगा और किसके नहीं, वहीं दूसरी तरफ वो एक खास राजनीतिक विचारधारा और उस पक्ष के नेताओं के प्रति अपनी वफादारी दिखाने में भी कोई कसर नहीं छोड़ रहीं। भारत-अमेरिका सहित कई देशों में दक्षिणपंथियों ने सोशल मीडिया पर भेदभाव की शिकायत की है और ‘शैडो बैन’ किए जाने की बात कही।
ये शुरू भी हो गया है। विदेशी तकनीकी कंपनियाँ अब भारत में ये तय करने लगी हैं कि किसी दंगे में पीड़ित हिन्दुओं को उनका पक्ष रखने की अनुमति देना है या नहीं, या फिर जम्मू कश्मीर को लेकर भारतीय राष्ट्रवादियों को जगह देनी है या नहीं। आज आम लोगों और छोटे सेलेब्स के साथ खेल रहा ट्विटर या फेसबुक कल को बड़े नेताओं तक पहुँच सकता है और चुनाव से पहले कंटेंट्स के माध्यम से इसे प्रभावित कर सकता है।