Tuesday, November 19, 2024
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कद: 3 फीट 4 इंच, उम्र: 26 साल: 8 भाई-बहनों में सबसे छोटे पर सबसे ‘जहरीले’ रफीकुल इस्लाम मदनी से मिलिए

एक महीने से भी कम समय में यह दूसरी बार है जब मदनी को गिरफ्तार किया गया है। उसे मोदी की यात्रा का विरोध करने के लिए ढाका में 30 अन्य लोगों को 25 मार्च को गिरफ्तार किया था। उस समय मदनी को कुछ घंटों बाद ही रिहा कर दिया गया था।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मार्च 2021 के आखिरी हफ्ते में बांग्लादेश की यात्रा पर गए थे। इस यात्रा के विरोध में बांग्लादेश में कट्टरपंथियों ने जमकर हिंसा, आगजनी की थी। बवाल के पीछे जिस कट्टरपंथी संगठन का नाम प्रमुखता से आया था, वह है हिफाजत-ए-इस्लाम (Hefazat-e-Islam)। इसी संगठन से जुड़ा है रफीकुल इस्लाम मदनी।

खुद को इस्लामी उपदेशक बताने वाले मदनी को बांग्लादेश की पुलिस ने एक बार फिर गिरफ्तार किया है। उसे देश के विरुद्ध भाषण देने और व्यवस्था भंग करने के आरोप में डिजिटल सुरक्षा कानून (DSA) के तहत गिरफ्तार किया गया है।

मदनी की उम्र 26 साल है। पर वह ‘शिशु वक्ता (shishu bokta)’ के नाम से जाना जाता है। वजह उसकी हाइट है। भले ही वह 3 फीट 4 इंच का ही हो, लेकिन जहर जमकर उगलता है। सरकार, प्रधानमंत्री, मंत्रियों और नामचीन लोगों के खिलाफ देशभर में घूम-घूमकर जहर उगल उसने पहचान बनाई है। बांग्लादेश में इस्लामी शासन की वह पैरोकारी करता है।

रैपिड एक्शन बटालियन के निदेशक (कानून एवं मीडिया) कमांडर खानडाकेर अल मोइन ने बताया कि मदनी को उत्तरी बांग्लादेश के नेत्रकोना जिले में उसके पैतृक घर से पकड़ा गया। वह अपने आठ भाई-बहनों में सबसे छोटा है। गरीब परिवार से आने वाला मदनी अब दो मदरसों का निदेशक है।

हिफाजत-ए-इस्लाम बांग्लादेश ने उसको जल्द से जल्द रिहा करने की माँग की है। मदनी इस समूह की केंद्रीय समिति का सदस्य है। हिफाजत नेताओं ने कहा है कि अगर मदनी को रिहा नहीं किया गया तो वे जोरदार आंदोलन करेंगे।

एक महीने से भी कम समय में यह दूसरी बार है जब मदनी को गिरफ्तार किया गया है। उसे मोदी की यात्रा का विरोध करने के लिए ढाका में 30 अन्य लोगों को 25 मार्च को गिरफ्तार किया था। उस समय मदनी को कुछ घंटों बाद ही रिहा कर दिया गया था।

RAB ने कहा कि मदनी की गिरफ्तारी के बाद उसके फोन से आपत्तिजनक वीडियो क्लिप मिले हैं, जिनमें ‘एडल्ट कंटेंट’ भी शामिल है। यह साबित करता है कि मदनी फ्रॉड है। पुलिस के अनुसार, मदनी ने कहा कि उसने प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को ‘अस्वीकार’ कर दिया। उसने कथित तौर पर यूट्यूब पर भी इसी तरह की नफरत फैलाई थी।

विवादास्पद उपदेशक का जन्म जिले के पूर्बधला उपजिला के लेडरिकंडा गाँव में एक गरीब परिवार में हुआ था। हिफाजत-ए-इस्लाम की नेट्रोकोना इकाई के नेता मौलाना गाजी अब्दुर रहीम के अनुसार, वह अपने माता-पिता के आठ बच्चों में सबसे छोटा है। ढाका के बारिधारा इलाके में स्थित जामिया मदनी मदरसा से दावरा-ए-हदीस की डिग्री (मास्टर डिग्री के बराबर) हासिल कर वह ‘उपदेशक’ बना।

जानकारी के मुताबिक रफीकुल के पिता और भाई खेती करते हैं और आजीविका के लिए रफीकुल की कमाई पर निर्भर हैं। रफीकुल अब नेत्रोकोना और गाजीपुर में दो मदरसों का संचालन कर रहा है। 1995 में जन्मे रफीकुल ने अपनी पढ़ाई की शुरुआत एक स्थानीय प्राथमिक विद्यालय से की और बाद में जामिया हुसैनिया मालनी मदरसा में दाखिला लिया। तीन साल तक वहाँ अध्ययन करने के बाद, वह गाजीपुर के एक मदरसे में शिफ्ट हो गया। बाद में, 2019 में, उन्होंने ढाका के जामिया मदनी मदरसा में अपनी दावरा-ए-हदीस की डिग्री पूरी की।

उसके हमनाम और पूर्व मदरसा साथी रफीकुल इस्लाम ने ढाका ट्रिब्यून को बताया, “मैं हिफाज़त-ए-इस्लाम के पूर्व महासचिव नूर हुसैन कासेमी के करीब था। मैं भी नेत्रोकोना से आता हूँ और ने ही रफीकुल को बारिधारा के मदरसे में लाया था, जिसकी स्थापना नूर हुसैन कासेमी ने की थी।”

‘उपदेशक’ को मिलने वाले पैसे को लेकर रफीकुल ने कहा, “यह तय नहीं है। जहाँ तक मुझे पता है, यह 2,000 से 50,000 टका तक है। यह उन लोगों पर निर्भर करता है जो उसे (बोलने के लिए) आमंत्रित करते हैं।”

मदनी टाइटल के बारे में रफ़ीकुल ने बताया, “उसे मदनी मदरसे से अपनी दावरा-ए-हदीस की डिग्री मिली। यही वजह है कि कुछ लोग उसे मदनी कहते हैं। उन्हें हाल ही में उसे इस टाइटल का उपयोग बंद करने के लिए एक कानूनी नोटिस दिया गया था, क्योंकि वह सऊदी अरब में इस्लामिक विश्वविद्यालय मदीना से स्नातक नहीं था। जहाँ तक मुझे जानकारी है, रफीकुल ने खुद मदनी की उपाधि का इस्तेमाल नहीं किया। वह अपनी हाइट के लिए ‘शिशु वक्ता’ के रूप में जाना जाता है, भले ही वह 26 साल का है।”

गौरतललब है कि पाकिस्तान की कुख्यात खुफिया एजेंसी आईएसआई (ISI) के इशारे पर काम करने वाले हिफाजत-ए-इस्लाम को अपनी गतिविधि जारी रखने के लिए सऊदी अरब से काफी फंडिंग मिलती है। 2010 में इस कट्टरपंथी इस्लामी संगठन को बनाया गया था। इसे बनाने में बांग्लादेश के मदरसों के उलेमा और छात्रों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस संगठन पर आरोप लगते रहे हैं कि इनका संबंध जमात-ए-इस्लामी और तालिबान जैसे आतंकी संगठनों से हैं। हालाँकि, हिफाजत इन आरोपों को खारिज करता रहा है।

हिफाजत-ए-इस्लाम हमेशा से बांग्लादेश को इस्लामी देश बनाने की पैरवी करता रहा है। साल 2016 में जब सुप्रीम कोर्ट ने बांग्लादेश संविधान से इस्लाम शब्द हटाने की याचिका को स्वीकार किया था, तो इसका विरोध करते हुए धमकियाँ दी थीं। हिफाजत ने कहा था कि देश का राष्ट्र धर्म यदि इस्लाम होगा तो इससे अल्पसंख्यकों के धर्म पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। इसके अलावा इस संगठन के तमाम प्रमुख नेताओं पर हत्या, तोड़फोड़, आगजनी जैसे गंभीर आरोप हैं।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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