पाकिस्तान में गंभीर धार्मिक प्रताड़ना झेलने वाले हिंदुओं ने एक साहसिक निर्णय लिया है। उन्होंने इस्लामाबाद में कृष्ण मंदिर का निर्माण कार्य जारी रखने का फैसला किया है।
यह फैसला ऐसे वक्त में किया गया है जब वे पाकिस्तान की राजधानी में मंदिर निर्माण को लेकर इस्लामी कट्टरपंथियों के निशाने पर हैं। यहॉं तक कि इसके खिलाफ लाहौर का एक मुफ्ती फतवा भी जारी कर चुका है।
इस्लामिक देश की राजधानी में अल्पसंख्यक होने के बावजूद हिंदुओं ने 20,000 वर्गफुट में कृष्ण मंदिर बनाने का निश्चय कर लिया है। यह जमीन उन्हें पाकिस्तान सरकार से आवंटित हुई है।
इस्लामाबाद के हिंदुओं ने यह फैसला उन हालातों में लिया है, जब उन्हें कृष्ण मंदिर को लेकर कट्टरपंथियों की लगातार धमकियाँ मिल रही हैं और इस्लामिक उलेमाओं से लेकर इस्लामिक नेता तक पाकिस्तान सरकार के इस फैसले के विरोध में आवाज बुलंद कर रहे हैं।
पिछले दिनों इस संबंध में इस्लामी शिक्षा देने वाले संस्थान जामिया अशर्फिया के मुफ्ती जियाउद्दीन ने कहा था कि गैर मुस्लिमों के लिए मंदिर या अन्य धार्मिक स्थल बनाने के लिए सरकारी धन खर्च नहीं किया जा सकता। इसी संस्था ने मंदिर निर्माण को लेकर फतवा जारी करते हुए कहा था कि अल्पसंख्यकों (हिंदुओं) के लिए सरकारी धन से मंदिर निर्माण कई सवाल खड़े कर रहा है।
इस फतवे के अलावा इस्लामाबाद हाई कोर्ट में मंदिर निर्माण को लेकर एक याचिका भी डाली गई थी। याचिका में याचिकाकर्ता ने कहा था कि यह योजना राष्ट्रीय राजधानी इस्लामाबाद के लिए तैयार मास्टर प्लान के तहत नहीं आती है।
याचिका में आग्रह किया गया था कि इस्लामाबाद के सेक्टर एच 9 में मंदिर निर्माण के लिए आवंटित भूमि को वापस लिया जाना चाहिए और मंदिर के लिए निर्माण धन भी वापस लेना चाहिए। इस याचिका पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने कैपिटल डेवलपमेंट अथॉरिटी (सीडीए) को नोटिस जारी किया था।
गौरतलब हो कि वैसे तो श्रीकृष्ण मंदिर इस्लामाबाद में पहला हिंदू मंदिर होगा। लेकिन रिपोर्ट्स के मुताबिक इससे पहले वहाँ दो और मंदिर थे। लेकिन उनमें से एक को टूरिस्ट प्लेस बना दिया गया और दूसरा मुकदमेबाजी के चलते बंद पड़ा है।
अब इस श्रीकृष्ण मंदिर का निर्माण इस्लामाबाद के H-9 क्षेत्र में 20,000 वर्गफुट में किया जा रहा है। मंगलवार को पाकिस्तान के ह्यूमन राइट्स के संसदीय सचिव लाल चंद्र मल्ही ने ही इस मंदिर की आधारशिला रखी थी।
नींव रखे जाने के इस कार्यक्रम के दौरान वहाँ उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए मल्ही ने जानकारी दी थी कि भारत और पाकिस्तान की आज़ादी से पहले इस्लामाबाद और उससे सटे हुए क्षेत्रों में कई हिंदू मंदिर हुआ करते थे।
इनमें सैदपुर गाँव और रावल झील के पास स्थित मंदिर शामिल है। हालाँकि, उन्होंने बताया कि इन मंदिरों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया और कभी इस्तेमाल नहीं किया गया। वो पड़े रहे और प्रयोग में आए ही नहीं।