Sunday, September 8, 2024
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समतल कर दिया पैगंबर मुहम्मद की अम्मी-अब्बू का कब्र, बीवी खदीजा का घर बना डाला शौचालय, वो मस्जिद भी बंद… जहाँ पढ़ते थे नमाज: मक्का, मदीना पर वहाबी इस्लाम की पकड़

वहाबियों और सऊद की जोड़ी ने पैगम्बर मुहम्मद की पत्नी खदीजा का घर भी तोड़ दिया गया। पैगम्बर मुहम्मद की पहली पत्नी खदीजा का घर शौचालयों के एक ब्लॉक में बदल दिया गया है।

इस्लाम मजहब के सबसे पाक जगहों मक्का और मदीना सऊदी अरब का हिस्सा है। सऊदी अरब में हर साल लाखों लोग हज यात्रा के लिए पहुँचते हैं। आम तौर पर इस्लाम में मूर्ति पूजा की मनाही है, लेकिन जितनी कट्टरता से वहाबी और सऊद घराना मूर्तिपूजा से नफरत करता है, उतना शायद ही कोई करता हो। सऊदी अरब में कई ऐसे इस्लामिक केंद्र रहे थे, जो मूर्ति पूजा को बढ़ावा दे सकते थे, सऊदी अरब की सरकार और वहाबियों ने उन्हें जब से ही तबाह कर दिया या फिर उनके इस्तेमाल के तरीके को ही बदल दिया।

इससे पहले कि हम इस बात पर को बताएँ कि ‘मूर्ति पूजा’ का दमन करने के लिए किस तरह से ऐतिहासिक ढाँचों को बर्बाद किया जा रहा है, उससे पहले ये जानना जरूरी है कि वहाबी कौन हैं और सऊद घराने का अस्तित्व किस बात से जुड़ा है।

वहाबी सुन्नी इस्लाम का सबसे रूढ़िवादी शाखा है। इस्लाम की इस कट्टरपंथी शाखा को वहाबिज्म कहा जाता है, जिसकी स्थापना 18वीं शताब्दी में मुहम्मद इब्न अब्द अल-वहाब ने की थी। वहाबी पैगंबर मुहम्मद द्वारा प्रचलित और प्रचारित इस्लाम के “शुद्ध” रूप की ओर ‘वापस लौटने’ का प्रयास करते हैं। वहाबीवाद सख्त एकेश्वरवाद पर जोर देता है और मूर्ति पूजा जैसी प्रथाओं का कड़ा विरोध करता है क्योंकि यह उसे शिर्क ‘पाप’ बताता है। यही नहीं, वहाबी तो संतों/सूफियों और इस्लाम से जुड़े प्रतीकों को भी मानने से इन्कार करता है। यानी वहाबियों के हिसाब से दरगाहों पर जाकर अपने पुरखों को भी याद करना ‘शिर्क’ है।

इस्लाम की कट्टर वहाबी शाखा की शुरुआत करने वाले मुहम्मद इब्न अब्द अल-वहाब ने दिरियाह में पनाह ली थी, जो आज के दिनों में रियाद शहर के बाहरी इलाके में स्थित छोटा सा शहर नखलिस्तान कहा जाता है। दिरियाह पर अल सऊद के सरदार मुहम्मद इब्न सऊद का शासन था। सऊद ने न सिर्फ वहाब को हिजाज़ (इसी में मक्का-मदीना आते थे) से बाहर निकाले जाने के बाद उसे रहने की जगह दी, बल्कि उसके साथ साल 1744 में एक समझौता भी किया। इस “वहाबी-सऊदी समझौते” के तहत पहले सऊदी राज्य की स्थापना हुई, जिसमें मुहम्मद इब्न सऊद को अमीर की पदवी मिली, जबकि वहाब को “इमाम” की उपाधि दी गई।

ये समझौता मजबूत रहे, इसके लिए इब्न सऊद के सबसे बड़े बेटे ने अल-वहाब की बेटी से निकाह किया और इसके बाद अल सईद ने सार्वजनिक रूप से वहाबिज्म को स्वीकार कर लिया। वहाब के इस कट्टरपंथी इस्लाम ने मजहबी सुधारों का तीखा विरोध किया और सूफी कार्यक्रमों, संतों की इबारत पर रोक लगा दी। यही नहीं, नजद के बाहर जब सऊद ने जीत दर्ज की, तो उसके नेतृत्व में शिया मस्जिदों को ध्वस्त कर दिया गया। यही नहीं, शियाओं को अलग दिखाने के लिए उन्हें ‘रफीदा’ (अस्वीकार करने वालों) का अपमानजनक टैग दिया, जो आज भी जारी है। पाकिस्तान जैसे कट्टरपंथी देश में शियाओं को काफिर मान कर उनका दमन किया जाता है।

वहाबी विचारधारा के कट्टरपंथी विचारों की नवजह से सऊदी अरब के कई ऐतिहासिक स्मारकों को व्यवस्थित तरीके से बर्बाद कर दिया गया। वहाबियों का मानना था कि ऐसी ऐतिहासिक जगहों को बचाने से मूर्ति पूजा को बढ़ावा मिलेगा और लोग प्रतीकों को मानने लगेंगे, जोकि इस्लाम के खिलाफ है। ऐसे में उन्होंने कई ऐतिहासिक और धार्मिक ढाँचों को नष्ट कर दिया। इसके साथ ही किसी भी तरह की इबादत और मजहबी यात्रा पर बैन लगा दिया गया, जिसमें अल्लाह के अलावा किसी को भी मानने की बात हो।

कर्बला में हुसैन इब्न अली की कब्र को किया तबाह

साल 1802 में सऊद बिन अब्दुल-अजीज की अगुवाई में वहाबियों की सेना ने कर्बला शहर पर हमला किया। कर्बला उस समय तुर्की के ऑटोमन साम्राज्य में आता था। कर्बला आज भी शिया मुस्लिमों के लिए पाक शहर है, लेकिन दिरिया पर हमले के दौरान अब्दुल अजीज की अगुवाई वाली सेना ने हुसैन इब्न अली की कब्र को नष्ट कर दिया, हजारों शिया मुस्लिमों को मार डाला और शहर को लूट लिया। वहाबियों ने मुहर्रम के महीने से ठीक पहले दो से पाँच हजार से अधिक शियाओं का नरसंहार किया।

हालाँकि मौजूदा समय में कर्बला इराक में है, लेकिन शियाओं के इस पवित्र स्थल पर वहाबी-सऊदी हमले से वहाबियों की कट्टरपंथी मानसिकता को एक्सपोज कर दिया। वहाबी लोग शफ़ाअत (शफ़ाअत) जैसे कर्मकांडों को शिर्क (बहुदेववाद/मूर्तिपूजा) के संकेत मानते हैं। शफ़ाअत का मतलब है, मुस्लिम संत (सूफियों) के ज़रिए अल्लाह से प्रार्थना करना, कब्रों पर इमारतें (दरगाह) बनाना, तीर्थयात्रा (ज़ियाराह) और तवस्सुल (अल्लाह के नजदीक जाने के लिए की जाने वाली इबारत), जिसका वहाबी कड़ा विरोध करते हैं।

कर्बला को तबाह करने के महज 4 साल के भीतर ही साल 1806 तक वहाबियों ने मदीना शहर पर कब्ज़ा कर लिया और उन इमारतों को बड़े पैमाने पर नष्ट कर दिया, जिनसे उन्हें डर था कि वे मूर्तिपूजा को बढ़ावा देंगी। वहाबी ताकतों ने जन्नत-अल-बाकी कब्रिस्तान के अंदर और बाहर सभी गुंबदों और ढाँचों को नष्ट कर दिया। यह कोई साधारण कब्रिस्तान नहीं था, बल्कि मदीना के हिजाज़ में पहला इस्लामी कब्रिस्तान था। उन्होंने इस्लामी महत्व की अन्य इमारतों के अलावा फातिमा अल-ज़हरा की मस्जिद, अल-मनरतैन की मस्जिद और क़ुब्बत अल-थानाया को भी नष्ट कर दिया।

अल बाक़ी कब्रिस्तान की एक ताज़ा तस्वीर (स्रोत: अल अरबिया)

साल 1816 में दिरिया के अमीर अब्दुल्लाह बिन मुहम्मद बिन सऊद के खिलाफ़ ओटोमन सेना का नेतृत्व करने वाले मिस्र के वली मुहम्मद अली पाशा के बेटे तुसुन पाशा की मौत हो जाने के बाद साल 1818 में सुल्तान महमूद द्वितीय के नेतृत्व में ओटोमन खिलाफत ने वहाबियों को कुचलने का फैसला किया। इसी क्रम में तुसुन पाशा के बेटे इब्राहिम पाशा ने दिरिया में सेना का नेतृत्व किया और वहाबियों को बुरी तरह से हराकर मक्का-मदीना पर फिर से कब्जा कर लिया। इसके साथ ही सऊद की पहली सल्तनत यानी राज खत्म हो गया। सऊद कबीले की हार और वहाबियों की हार के बाद ओटोमन साम्राज्य ने फिर से मस्जिदों को बनवाया। ओटोमन साम्राज्य ने पैगंबर मुहम्मद की बेटी फातिमा अल-ज़हरा, ज़ैनुल ‘अबिदीन (‘अली बिन अल-हुसैन), मुहम्मद इब्न ‘अली अल-बाकिर और जाफ़र अल-सादिक की कब्रों पर गुंबद का निर्माण भी कराया।

ओटोमन साम्राज्य द्वारा इन मस्जिदों, दरगाहों के फिर से निर्माण का सिलसिला लंबे समय तक नहीं चल पाया, क्योंकि प्रथम विश्व युद्ध में हार के बाद सऊद कबीला फिर से उभरा और उसने साल 1924 में फिर से मक्का और मदीना पर कब्ज़ा कर लिया। वहाबी-सऊद ने जन्नत उल बक़ी कब्रिस्तान पर फिर से हमला बोलकर कब्रों, मस्जिदों, गुंबदों और अन्य ढाँचों को तबाह कर दिया। 25 अप्रैल 1925 को राजा इब्न सऊद की अनुमति से वहाबी ताकतों ने मकबरों, गुंबदों और कब्रों को नष्ट कर दिया। यहाँ नष्ट की गई कब्रों में पैगंबर मुहम्मद की अम्मी अमीना, अब्बू अब्दुल्ला इब्न अब्दुल-मुत्तलिब और प्रमुख इमामों के अलावा परिवार के अन्य सदस्यों की कब्रें भी शामिल थीं।

जन्नत-उल-बकी कब्रिस्तान की एक पुरानी तस्वीर स्रोत: Cities from Salt

आज भी वहाबी मौलवी ऐसे कई ऐतिहासिक विरासत से जुड़ी जगहों को बर्बाद करने को उचित ठहराते हैं कि जो लोग मर गए, उनकी इबादत से अल्लाह की इबादत में खलल पड़ती है।

मक्का-मदीना के विकास और विस्तार की आड़ में कई प्राचीन संरचनाओं को किया गया तबाह

उल्लेखनीय है कि सऊदी अरब ने ग्रैंड मस्जिद में ज्यादा लोगों के आने के लिए 4 प्रमुख विस्तार परियोजनाएँ शुरू की। किंग अब्दुल अजीज ने साल 1955 में ऐसा पहला प्रोजेक्ट शुरू किया, जिसमें नए फ्लोर्स का निर्माण, नया बड़ा आँगन, बिजली की रोशनी और पंखे लगाए जाने थे। ऐसा दूसरा प्रोजेक्ट साल 1988 में किंग फहद ने शुरू किया, जिसमें ग्रैंड मस्जिद के पूर्वी और पश्चिम किनारों पर नए पंखे लगाने, मीनारों के निर्माण, एक्सेलेटर और एसी सिस्टम लगाने जैसी सुविधाएँ बनाई गई।

साल 2008 में किंग अब्दुल्ला इब्न अब्दुलअजीज के नेतृत्व वाली सऊदी सरकार ने ग्रैंड मस्जिद के विस्तार को मंजूरी दी, जिसमें इसके उत्तर और उत्तर-पश्चिम में 3,200,000 वर्ग फीट भूमि का अधिग्रहण शामिल था। 2011 में किंग अब्दुल्ला की सरकार ने घोषणा की कि 21 बिलियन डॉलर की लागत वाली “किंग अब्दुल्ला विस्तार परियोजना” के तहत मीनारों सहित कई नई संरचनाएँ खड़ी की जाएंगी और 2.5 मिलियन हज तीर्थयात्रियों की जगह के लिए परिक्रमा (मताफ़) क्षेत्र का विस्तार किया जाएगा। इसके बाद से मक्का-मदीना के कई ऐतिहासिक स्थलों को बर्बाद कर दिया गया।

मक्का-मदीना में जो चीजें नष्ट की गई, उसमें ऑटोमन साम्राज्य द्वारा बनवाया गया महत्वपूर्ण वास्तुशिल्प पोर्टिको भी शामिल है। इसे 17वीं शताब्दी में बनाया गया था, जो अपने शानदार मेहराबों और खंबों के लिए मशहूर थी। ऑटोमन पोर्टिको को तोड़े जाने की वजह से साल 2013 में तुर्की में काफी विरोध हुआ। यही नहीं, अब्बासियों को बनाए गए ग्रैंड मस्जिद के कुछ अहम हिस्सों को भी इस दौरान नष्ट कर दिया गया।

ऑटोमन पोर्टिको (स्रोत: सीएनएन)

रिपोर्ट्स के मुताबिक, साल 1985 से अब तक 98% ऐतिहासिक और इस्लामी विरासत स्थलों को ध्वस्त कर दिया गया है। आलोचकों का आरोप है कि सऊदी सरकार इतिहास को “मिटाना” चाहती है। ऐसी ही एक खास विरासत, जो पैगंबर मुहम्मद के चाचू हमजा का घर था, उसे होटल बनाने के लिए तोड़ दिया गया।

यही नहीं, वहाबियों और सऊद की जोड़ी ने पैगम्बर मुहम्मद की बीवी खदीजा का घर भी तोड़ दिया गया। खदीजा के घर की जगह पर एक दशक पहले 1400 सार्वजनिक शौचालय बना दिए गए। ब्रिटिश इतिहासकार जियाउद्दीन सरदार ने अपनी किताब मक्का: द सेक्रेड सिटी में भी इसकी पुष्टि की है।

सरदार ने लिखा, “यह परिसर अल-अयाद किले के ऊपर बना था, जिसे 1781 में बनाया गया था और अब यह मक्का को हमलावरों से बचाने का अपना काम नहीं कर सकता। ग्रैंड मस्जिद कॉम्प्लेक्स के दूसरे छोर पर, जैसा कि इसे अब कहा जाता है, पैगम्बर मुहम्मद की पहली पत्नी खदीजा का घर शौचालयों के एक ब्लॉक में बदल दिया गया है। रॉयल मक्का क्लॉक टॉवर पवित्र मस्जिद के ऊपर मँडराती एकमात्र इमारत नहीं है। यहाँ रैफल्स मक्का पैलेस है, जो एक लग्जरी होटल है, जहाँ चौबीसों घंटे बटलर सेवा उपलब्ध है। इसके अलावा मक्का हिल्टन भी है, जो पैगम्बर के सबसे करीबी साथी और पहले खलीफा अबू बकर के घर के ऊपर बना है। यहाँ इंटरकॉन्टिनेंटल मक्का जैसे कई ढाँचे हैं। इस ब्लॉक में कई अन्य पाँच सितारा होटल और ऊँचे-ऊँचे अपार्टमेंट ब्लॉक हैं।”

उन्होंने आगे लिखा है, “अगले दशक के दौरान पवित्र मस्जिद के नीचे की ओर 130 स्काईस्क्रैपर (बहुमंजिली इमारतें) बनाए जाएँगे, ताकी इसमें 5 मिलियन लोग यानी 50 लाख हज यात्री एक साथ आ सकें। इतिहास को तबाह करने के लिए सऊदी अरब ऑटोमन-जमाने के निर्माण को ध्वस्त कर रहा है, खासकर वो हिस्सा, जो सबसे पुराना है। 1553 से 1629 तक ओटोमन सुल्तानों – सुल्तान सुलेमान, सुल्तान सलीम I, सुल्तान मुराद III और सुल्तान मुराद IV और उनके उत्तराधिकारियों ने जो शानदार मस्जिद बनवाए, उन सबको तोड़ दिया जाएगा और एक मल्टीस्टोरी बिल्डिंग का निर्माण किया जाएगा।”

सरदार ने आगे लिखा है, “पैगंबर के साथियों के नाम जिन खंबों पर लगे हैं, उन्हें भी ध्वस्त कर दिया जाएगा। वास्तव में पुरानी मस्जिद को पूरी तरह से बुलडोजर से ध्वस्त कर दिया जाएगा। इतिहास इस्लाम के दूसरे खलीफा उमर इब्न जुबैर से शुरू होता है, जिन्होंने काबा के पुनर्निर्माण के लिए अपने जीवन का बलिदान दिया था, और अब्बासी खलीफाओं तक, जिन्होंने मौजूदा मस्जिद बनाई थी। वो सबकुछ तोड़ दिया जाएगा। उसकी जगह पर 12 फ्लोर की नई बिल्डिंग बनाई जाएगी, ताकी हज पर आने वाले लोग ‘शैतानों को पत्थर मार’ सकें। ऐसा लगता है कि कुछ ही समय में पैगंबर मोहम्मद के घर को भी ढहा दिया जाएगा, जो भव्य रॉयल पैलेस के सामने है। उसे जमींदोज कर कार पार्किंग की जगह पर बदल दिया जाएगा।”

जियाउद्दीन सरदार की पुस्तक मक्का: द सेक्रेड सिटी का पेज

इसी कड़ी में 13 अगस्त 2002 को मदीना में मस्जिद-ए-नबवी से चार किलोमीटर दूर स्थित पैगंबर मुहम्मद के वारिसों में नौंवें नंबर पर आने वाले सैयद इमाम अल-उरैदी इब्न जाफर अल-सादिक की 1,200 साल पुरानी मस्जिद और मकबरे को धमाके से उड़ा दिया गया और पूरी तरह से तबाह कर दिया गया।

यही नहीं, साल 2003 में एक ऐतिहासिक ओटोमन अज्याद किला जो कभी मक्का को हमलों से बचाता था और 200 साल से भी ज़्यादा पुराना था, उसे ध्वस्त कर दिया गया। इसकी जगह पर 601 मीटर ऊँचा मक्का रॉयल होटल क्लॉक टॉवर बना दिया गया। यह क्लॉक टॉवर ‘बिन लादेन ग्रुप’ ने बनाया है, जिसमें पाँच मंज़िला शॉपिंग मॉल, लग्जरी होटल, पार्किंग आदि शामिल हैं।

अज्याद किला (स्रोत: विकिपीडिया)

तुर्की ने अज्याद के किले को बचाने के लिए यूनेस्को से हस्तक्षेप की माँग की थी, लेकिन यूनेस्को ने इस मामले में कुछ भी नहीं किया। यही नहीं, मक्का-मदीना में सड़कों को बनाने के लिए कई पहाड़ों को भी काट दिया गया। साल 2013 में मदीना के उत्तर में उहुद पहाड़ी में दरार को कंक्रीट से भर दिया गया था। रिपोर्ट्स कहती हैं कि 625 ई. में कुरैश के खिलाफ उहुद की लड़ाई में घायल होने के बाद पैगंबर मुहम्मद को वहाँ ले जाया गया था। इतना ही नहीं, आज हिल्टन होटल जिस जगह पर है, उस जगह पर इस्लाम के पहले खलीफा अबू बकर का घर हुआ करता था, उस जगह को भी समतल किया जा चुका है।

मदीना में हिल्टन होटल (स्रोत: हिल्टन की वेबसाइट)

इस्लामिक हेरिटेज रिसर्च फाउंडेशन के संस्थापक, इतिहासकार और पूर्व कार्यकारी निदेशक डॉ. इरफान अल-अलावी ने एक अनुमान के तौर पर बताया है कि विकास कार्यों की आड़ में सऊदी सरकार ने पिछले कुछ सालों में 300 से ज्यादा इस्लामिक ऐतिहासिक विरासत के ढाँचों को नष्ट कर दिया है।

टाइम मैगज़ीन की 2014 की रिपोर्ट में बताया गया, “मदीना में छह छोटी मस्जिदें, जहाँ माना जाता है कि मुहम्मद ने नमाज़ पढ़ी थी, बंद कर दी गई हैं। इस्लाम के पहले खलीफ़ा अबू बकर की सातवीं मस्जिद को एटीएम बनाने के लिए ढहा दिया गया है।” यही नहीं, पैगंबर मुहम्मद की बेटी और उनके चार “सबसे खास साथियों” बनाए गए मशहूर “सात मस्जिदों” में से पाँच को ध्वस्त कर दिया गया है। इसमें मस्जिद अबू बक्र, मस्जिद सलमान अल-फारसी, मस्जिद उमर इब्न अल-खत्ताब, मस्जिद सय्यदा फातिमा बिन्त रसूलिल्लाह, और मस्जिद अली इब्न अबी तालिब शामिल हैं, जो अब मौजूद नहीं है।

दिलचस्प बात यह है कि 75 साल से भी ज़्यादा पहले काबा के पास पैगंबर मुहम्मद की जन्मस्थली को ‘जानवरों के बाजार’ में बदल दिया गया। मौजूदा समय में सुक अल-लैल स्ट्रीट पर स्थित उनके जन्मस्थान को सऊदी सरकार ‘मक्का अल मुकर्रमाह लाइब्रेरी’ नाम की लाइब्रेरी में बदल चुकी है।

सऊदी सरकार द्वारा विरासत स्थलों को ध्वस्त किये जाने पर यूनेस्को की चुप्पी

सऊदी अरब में छह यूनेस्को विरासत स्थल हैं: मक्का और मदीना का एंट्री गेट, दिरियाह में अत-तुरैफ़ जिला, हेल क्षेत्र की रॉक आर्ट, अल-हिज्र पुरातत्व स्थल (मदैन सालेह), अल अहसा ओएसिस और हिमा सांस्कृतिक क्षेत्र। बता दें कि संयुक्त राष्ट्र यूनेस्को के माध्यम से दुनिया भर के शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक विरासत स्थलों के संरक्षण की वकालत करता रहा है, लेकिन सऊदी अरब में वो पूरी तरह से विफल रहा है।

अफ़गानिस्तान में बामियान बुद्ध प्रतिमाओं का विनाश तथा तालिबान और वहाबी मानसिकता में समानताएं

बता दें कि मार्च 2001 में अफ़गानिस्तान की तालिबान सरकार ने बामियान बुद्ध की दो विशाल मूर्तियों को ध्वस्त कर दिया, जो छठी शताब्दी में बामियान घाटी में बनाई गई थी। तालिबान नेता मुल्ला मोहम्मद उमर ने बामियान बुद्ध को ईशनिंदा और इस्लामी सिद्धांतों के खिलाफ घोषित करते हुए उन्हें उड़ाने का हुक्म दिया था। इसकी वजह ये है कि सुन्नी मुस्लिम देवबंदी (हन्फी) समुदाय और तालिबान मूर्तियों को हराम मानता है। इन्हें पूरी दुनिया के विरोध के बावजूद बम लगाकर उड़ा दिया गया।

तालिबान का ऐसा (बामियान को नष्ट करना) करना वहाबी (सलाफी) चरमपंथी विचारधारा से जोड़ता है, जो इस्लाम की शुद्धतावादी स्वरूप को मानता है।

ठीक इसी तरह से, सऊदी अरब भी ऐतिहासिक रूप से इस्लामी विरासत स्थलों को संरक्षित करने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं रखता है। उसका मानना ​​है कि ऐसी जगहें मूर्ति पूजा या शिर्क को बढ़ावा दे सकते हैं। हालाँकि भारतीय सूफियों ने इस साल मई में सऊदी अरब सरकार से मदीना में नष्ट हो चुके जन्नत अल-बकी कब्रिस्तान को फिर से बनाने की अपील की थी, जिसके लिए अजमेर के मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में एक बैठक का भी आयोजन किया गया था। इसमें कोई चौंकने वाली बात नहीं कि सऊदी अरब को इनकी अपील से कोई फर्क नहीं पड़ा, जोकि पड़ना भी नहीं था।

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