अफगानिस्तान में शरिया कानून लागू होने के बाद महिलाओं के साथ-साथ पत्रकारों की सुरक्षा भी एक बड़ी चिंता का विषय बना हुआ है। खबर आई है कि मात्र 48 घंटों के भीतर तालिबान ने 24 पत्रकारों को अपनी हिरासत में लिया और कई घंटों बाद उन्हें गिरफ्त से रिहा किया गया।
टोलो न्यूज पर 9 सितंबर को प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, अफगानिस्तान डेस्क के हेड रेजा मोइनी ने कहा कि बीते 48 घंटों में 24 पत्रकारों को तालिबान ने हिरासत में लिया और कई घंटों बाद जाकर उन्हें छोड़ा।
इससे पहले बुधवार (8 सितंबर) को एतिलात्रोज़ (Etilaatroz) अखबार ने दावा किया था महिलाओं का प्रोटेस्ट कवर करने पहुँचे उनके 5 रिपोर्टर को तालिबान ने हिरासत में लिया था। इनमें दो को तो इतनी बुरा पीटा गया था कि उन्हें अस्पताल में भर्ती होना पड़ा था। उनकी तस्वीरें भी सामने आई थी।
8 सितंबर को सामने आई रिपोर्ट के मुताबिक एतिलात्रोज़ (Etilaatroz) से जुड़े दो पत्रकार- तकी दरयाबी (Taqi Daryabi) और नेमातुल्लाह नक़दी (Nematullah Naqdi) को तालिबान ने बेरहमी से मारा था। दोनों पत्रकार महिलाओं का प्रदर्शन कवर करने मौके पर पहुँचे थे। इसी बीच तालिबानियों ने दोनों को पकड़ा और अंधाधुंध पीटा। पत्रकारों की पीठ पर केबल की तार और डंडों के निशान पाए गए थे।
दोनों का इलाज अस्पताल में हुआ था। नक़दी ने हिरासत से रिहा होने के बाद बताया था कि तालिबानियों में से किसी एक ने उनके सिर पर पाँव रखा और जमीन से मसलने लगे। उन्हें लगा कि वे मार दिए जाएँगे। हालाँकि, घंटों बाद जब उन्हें छोड़ा गया तो ये भी कहा गया, “तुम खुशकिस्मत हो तुम्हारा सिर कलम नहीं हुआ।”
इस बीच कुछ रिपोर्टर ऐसे भी हैं जिनका कहना है कि तालिबान ने ऊपर लिमिटेशन लगा दी है। इस बाबत तालिबान ने कहा है कि उन्होंने रिपोर्टर्स के साथ होते व्यवहार मामले में संज्ञान लिया है और आगे ऐसी घटनाएँ रोकने का वो प्रयास कर करेंगे।
तालिबान के सांस्कृतिक आयोग के एक सदस्य अनामुल्ला समांगानी ने कहा, “पिछले दिनों जो पत्रकार शिकार हुए, हमें उसका खेद हैं। हमने उनकी चुनौतियों का समाधान करने की कोशिश की। अगर मुजाहिद्दीनों द्वारा उन्हें किसी सुरक्षित स्थान भेजा जाता है और इस काम को हिरासत में लेना समझते हैं तो हम इस पर भी काम करेंगे और कोशिश करेंगे उनसे सही व्यवहार किया जाए।”
बता दें कि अफगानिस्तान में कुछ दिन पहले टोलो न्यूज के रिपोर्टर जियार याद और उनके कैमरा मैन बेस मजीदी को काबुल में बेरहमी से पीटा गया था। बेस मजीदी उस समय उन लोगों को कैमरे में शूट कर रहे थे जो बेरोजगार थे या मजदूर थे। इसी बीच तालिबानी उनके पास आए उन्हें मारने लगे और उनका कैमरा-फोन सब छीन लिया।