भारत ने जम्मू-कश्मीर में किशनगंगा (Kishenganga) और रातले पनबिजली परियोजनाओं (Ratle Hydroelectric Projects) मामलों में विश्व बैंक (World Bank) के फैसले को लेकर आपत्ति जताई है। विश्व बैंक ने इन मामलों में दिल्ली और इस्लामाबाद के बीच मतभेदों को दूर करने के लिए दो अलग-अलग प्रक्रियाओं के तहत एक मध्यस्थता अदालत (Court of Arbitration) और एक तटस्थ विशेषज्ञ (Neutral Expert) की नियुक्ति करने का फैसला किया है। भारत का कहना है कि वर्ल्ड बैंक ऐसा नहीं कर सकता है।
पिछले हफ्ते, भारत ने इन विवादों से निपटने में इस्लामाबाद के अड़ियलपन को देखते हुए नदियों के प्रबंधन के लिए सिंधु जल संधि की समीक्षा और संशोधन की माँग की थी और इस सिलसिले में पाकिस्तान को एक नोटिस जारी किया था। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा, “मुझे नहीं लगता है कि वर्ल्ड बैंक हमारे समझौते को सुलझाने की स्थिति में है। यह दो देशों के बीच की संधि है और इसके बारे में मूल्यांकन हम श्रेणीबद्ध दृष्टिकोण (Graded Approach) के साथ करेंगे।”
भारत ने विशेष रूप से वर्ल्ड बैंक द्वारा मध्यस्थता अदालत की नियुक्ति पर निराशा जताई थी। बागची ने मामले पर एक सवाल का जवाब देते हुए कहा, “भारत के सिंधु जल आयुक्त ने 25 जनवरी, 2023 को अपने पाकिस्तानी समकक्ष को 1960 की सिंधु जल संधि में संशोधन के लिए एक नोटिस जारी किया था। यह नोटिस संधि के उल्लंघन को सुधारने के लिए सरकार से सरकार की बातचीत के लिए अवसर प्रदान करने के इरादे से जारी किया गया था।”
बागची ने कहा कि पाकिस्तान को 90 दिनों के अंदर नोटिस का जवाब देना है। उन्होंने कहा कि वर्ल्ड बैंक ने खुद 5-6 साल पहले स्वीकार किया था कि यह एक समानांतर प्रक्रिया (Parallel Processes) है। इस हिसाब से हमारा आकलन यह है कि यह संधि के प्रावधानों के अनुरूप नहीं है और इसलिए हम इस बारे में श्रेणीबद्ध दृष्टिकोण के बारे में बात कर रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल समझौता हुआ था। विश्व बैंक भी समझौते का हस्ताक्षरकर्ता है। पाकिस्तान मामले को भारत के साथ सुलझाने की बजाय बार-बार वर्ल्ड बैंक के पास चला जाता है। इसी को देखते हुए भारत ने पाकिस्तान को मामले में नोटिस जारी किया था।