कतर में भारत और तालिबान के बीच मंगलवार (31 अगस्त) को पहली औपचारिक बैठक हुई। विदेश मंत्रालय के मुताबिक, कतर में भारत के राजदूत दीपक मित्तल ने तालिबान के नेता शेर मोहम्मद स्टानिकजई से मुलाकात की। स्टानिकजई दोहा में तालिबान के राजनीतिक कार्यालय के प्रमुख हैं। दोनों प्रतिनिधि दोहा स्थित भारतीय दूतावास में मिले।
BIG BREAKING: Indian Envoy to Qatar, Deepak Mittal meets Sher Mohammad Abbas Stanekzai, Head of Taliban’s Political Office in Doha. pic.twitter.com/V3b8eaDOax
— Sidhant Sibal (@sidhant) August 31, 2021
भारतीय विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर बताया कि यह दोनों पक्षों के बीच पहली आधिकारिक बैठक है। यह बैठक तालिबान के अनुरोध पर भारतीय दूतावास दोहा में हुई। विदेश मंत्रालय की ओर से जारी प्रेस रिलीज में कहा गया है कि तालिबान नेता और भारतीय राजदूत के बीच अफगानिस्तान में मौजूदा समय में फँसे भारतीय नागरिकों की सुरक्षा और उनके जल्द से जल्द भारत लौटने पर चर्चा हुई। ऐसे अफगान नागरिक, खासकर अल्पसंख्यक जो कि भारत जाना चाहते हों, उन्हें लेकर भी भारत ने बात की।
राजदूत मित्तल ने भारत को लेकर अपनी चिंता जाहिर करते हुए कहा अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल किसी भी तरह से भारत विरोधी गतिविधियों और आतंकवाद के लिए नहीं किया जाना चाहिए। इसको लेकर तालिबान प्रतिनिधि ने उन्हें सभी मुद्दों पर आश्वासन दिया और कहा कि इन्हें सकारात्मक ढंग से सुलझाया जाएगा।
कौन है शेर मोहम्मद स्टानिकजई
तालिबानी नेतृत्व का प्रमुख चेहरा स्टानिकजई कभी उत्तराखंड के देहरादून में प्रतिष्ठित भारतीय सैन्य अकादमी (आइएमए) के 1982 बैच में रह चुका है। यहाँ उसके सहपाठी उसे प्यार से ‘शेरू’ कह कर बुलाते थे। बताया जाता है कि जब वह आईएमए में भगत बटालियन की केरेन कंपनी में शामिल हुआ था, तब वह 20 साल का होने वाला था। उसने भारत-अफगान रक्षा सहयोग कार्यक्रम के तहत भारत की यात्रा की। उसके साथ 44 अन्य विदेशी कैडेट भी इस बटालियान का हिस्सा थे।
लोगार प्रांत के बाराकी बराक जिले में 1963 में स्टानिकजई का जन्म हुआ था। वह मूल रूप से पश्तून हैं और तालिबान में सबसे अधिक पढ़े-लिखे नेता है। राजनीति विज्ञान में मास्टर्स करने के बाद शेर मोहम्मद स्टानिकजई ने डेढ़ साल में आईएमए में अपना प्री-कमीशन प्रशिक्षण पूरा किया था।
उसने सोवियत-अफगान युद्ध और अफगानिस्तान की मुक्ति के लिए लड़ाई लड़ी। इसके बाद साल 1996 में उसने सेना छोड़ दी और तालिबान में शामिल हो गया। लेकिन अफगान बलों के साथ उनके समय और उनके अंतरराष्ट्रीय अनुभव ने उन्हें तालिबान से अलग कर दिया। न्यूयॉर्क टाइम्स में प्रकाशित एक लेख में, स्टानिकजई के पुराने दोस्त ने कहा कि वह शुरू में आतंकवादी संगठन के साथ अच्छी तरह से फिट नहीं थे।
हालाँकि, बाद में जब साल 1996 से 2001 के बीच जब तालिबान ने अफगानिस्तान पर शासन किया, तब स्टानिकजई को उपविदेश मंत्री बनाया गया था। वह तालिबान शासन के दौरान अक्सर विदेशी मीडिया को इंटरव्यू देता था। बताया जाता है कि वह काफी अच्छी अंग्रेजी बोलता था।
1996 में, स्टानिकजई ने क्लिंटन प्रशासन से तालिबान शासित अफगानिस्तान की राजनयिक मान्यता प्राप्त करने के लिए कार्यवाहक विदेश मंत्री के रूप में वाशिंगटन डीसी की यात्रा की थी। बाद में जब अमेरिका ने तालिबान को अफगानिस्तान से उखाड़ फेंका तो स्टानिकजई भी बाकी कमांडर्स के साथ विदेश भाग गया था।