ईरान के सर्वोच्च कमांडर क़ासिम सुलेमानी को बग़दाद के एयरपोर्ट पर अमेरिका ने मार गिराया। इसके बाद ईरान और अमेरिका के बीच तनाव बढ़ गया। बदला लेने की बात करते हुए ईरान ने अमेरिका की पूरी सेना को ही ‘आतंकवादी समूह’ घोषित कर दिया। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कहा है कि अगर ईरान ने एक भी मिसाइल दागी तो अमेरिका उसकी ऐतिहासिक इमारतों को निशाना बनाएगा। अब पता चला है कि बगदाद के पश्चिमी क्षेत्र में ईरान ने अमेरिकी एयर बेस पर दर्जन भर मिसाइलें दागी है। दुनिया भर में तेल के दाम बढ़ गए हैं और भारत पर भी इसका असर पड़ रहा है।
सबसे पहले ताजा घटना के बारे में जानते हैं। ईरान ने अमेरिकी एयर बेस पर बैलिस्टिक मिसाइल फायर किया। हालाँकि, इसमें किसी के हताहत होने की ख़बर नहीं है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने दावा किया कि सब ठीक है और यूएस इस बात के आकलन में लगा है कि नुकसान कितना हुआ है? ईरान के सबसे बड़े नेता आयतुल्लाह खामनेई ने कहा कि ये हमले अमेरिका को तमाचा है। मिसाइल हमले के ठीक बाद तेहरान से यूक्रेन जा रहा यात्री विमान उड़ान भरने के बाद दुर्घटनाग्रस्त हो गया। इसमें 176 लोगों की मौत हो गई।
ईरान ने 1979 में तेहरान स्थित अमेरिकी दूतावास को सीज़ कर लिया था। इसके बाद से यह पहला मौक़ा है, जब ईरान ने हमला किया हो। ईरान के ‘रिवोल्यूशनरी गार्ड्स’ ने स्पष्ट कर दिया है कि ये हमले सुलेमानी की मौत के बदले के लिए किया गया है। ईरान ने उन सभी देशों को भी चेतावनी दी है, जिन्होंने अमेरिकी सेना को अपना एयरबेस इस्तेमाल करने की अनुमति दी हुई है। ईरान के सेनाध्यक्ष मोहम्मद बाकेरी ने कहा कि ये हमले ईरान की क्षमता का एक नमूना भर है। वहीं ईरान के विदेश मंत्री जावेद जारिफ ने दावा किया कि हमले बदले की भावना से नहीं, बल्कि आत्मरक्षा में किए गए। इससे पता चलता है कि ईरान बदला तो ले रहा है, लेकिन वो दुनिया की नज़र में दोषी नहीं दिखना चाहता।
जहाँ तक ईरान-अमेरिका के रिश्तों की बात है तो 1979 तक सब ठीक था। ईरान में शाह का राज था, जिन्हें अमेरिका का समर्थन प्राप्त था। तख्तापलट के बाद ईरान एक इस्लामी गणतंत्र बना और दर्जनों अमेरिकी नागरिकों को बंधक बनाया गया। तब से रिश्ते तनावपूर्ण हैं। 2015 में लगा था कि सब ठीक हो रहा है, क्योंकि ईरान ने अपनी परमाणु गतिविधियों पर लगाम लगाने का वादा किया था। उस पर से कई आर्थिक प्रतिबन्ध हटा लिए गए थे, जिसके बाद उसने वादा निभाया भी। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने इस करार को ग़लत ठहराया और तनाव बढ़ने फिर शुरू हो गए।
Iran took & concluded proportionate measures in self-defense under Article 51 of UN Charter targeting base from which cowardly armed attack against our citizens & senior officials were launched.
— Javad Zarif (@JZarif) January 8, 2020
We do not seek escalation or war, but will defend ourselves against any aggression.
2018 में ईरान पर फिर से आर्थिक प्रतिबन्ध लगा दिए गए, जिसके बाद उसकी अर्थव्यवस्था की स्थिति ख़राब हो गई। 2019 के दिसंबर में इराक़ में एक अमेरिकी कांट्रेक्टर की मौत का इल्जाम ईरान पर लगा। अमेरिका ने बदले की कार्रवाई की, जिसमें 25 ईरानी लड़ाका मारे गए। इसके बाद इराक़ की राजधानी बग़दाद में यूएस एम्बेसी पर हमला किया गया। इस हमले में सुलेमानी का हाथ सामने आने के बाद अमेरिका ने बड़ी कार्रवाई करते हुए उसे मार गिराया। सुलेमानी मिडिल ईस्ट का एक ताक़तवर चेहरा था, जो ईरान के लिए लड़ाकू युद्धों का नेटवर्क बना रहा था और उसका प्रबंधन करता था।
अब सवाल ये उठता है कि इसका भारत पर क्या पड़ेगा? भारत में ईरानी दूतावास ने कहा था कि अमेरिका-ईरान के संबंधों में आए तनाव में अगर भारत मध्यस्थता करता है तो ईरान उसका स्वागत करेगा। तेल के दाम बढ़ने पर भारत में इसका असर पड़ना लाजिमी है। भारत, ईरान के सबसे बड़े ग्राहकों में से एक रहा है। विदेश मंत्री एस जयशंकर हाल ही में तेहरान गए थे। खाड़ी देशों में भारत के 1 करोड़ के क़रीब कामगार मौजूद हैं, जिन पर इसका असर पड़ सकता है। भारत ने वहाँ की यात्रा करने वालों के लिए एडवाइजरी भी जारी की है।
All is well! Missiles launched from Iran at two military bases located in Iraq. Assessment of casualties & damages taking place now. So far, so good! We have the most powerful and well equipped military anywhere in the world, by far! I will be making a statement tomorrow morning.
— Donald J. Trump (@realDonaldTrump) January 8, 2020
1990-1991 में खाड़ी संकट के वक्त हजारों की संख्या में फँसे नागरिकों को को कुवैत और दूसरी जगहों से निकालने में भारत के पसीने छूट गए थे। अगर फिर से ऐसी स्थिति बनती है तो ये और भी परेशानी की बात हो सकती है। भारत ने ईरान के चाबहार पोर्ट में अरबों रुपए का निवेश किया है और अफ़ग़ानिस्तान तक सड़क निर्माण भी करवाया है। भारत को ये भी देखना है कि अमेरिका से उसके रिश्ते ख़राब न हों।
गौरतलब है कि 1990 में जब इराक़ ने कुवैत पर हमला किया था, तब वहाँ से 1 लाख 70 हज़ारो भारतीयों को निकाला गया था। भारत सरकार और कुवैत में भारतीय उद्योगपति जॉन मैथ्यू ने एयरलिफ्ट को अंजाम देने में बड़ी भूमिका निभाई थी। सोचिए, आज तो खाड़ी देशों में हमारे 1 करोड़ लोग हैं। लगभग ढाई महीने चली उस प्रक्रिया में एयर इंडिया की 488 फ्लाइट्स ने उड़ान भरी थी। सोचिए, अभी अगर ऐसी हालत आती है तो कितना समय लगेगा और कितनी उड़ानों की व्यवस्था करनी पड़ेगी।