Sunday, November 17, 2024
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ISIS आतंकी के ‘मानवाधिकार’ पर कोर्ट मेहरबान, ब्रिटेन की नागरिकता दी: पहचान छिपाकर रहने की आजादी भी

कोर्ट ने ऐसा फैसला सुनाते हुए यूके के गृह मंत्रालय की चेतावनियों को भी दरकिनार किया जो उन्होंने सूडान से आए घुसपैठिए को लेकर दी थी, जिसने पहले 2005 और फिर 2018 में अवैध रूप से यूके में एंट्री ली।

यूनाईटेड किंगडम (ब्रिटेन) में सूडान के एक जेहादी को महज इसलिए यूके की स्थाई नागरिकता दे दी गई क्योंकि उसके वकील ने वहाँ की अदालत में दलील दी कि अगर उसके मुअक्किल को वापस सूडान भेजा गया तो इससे उसके मानवाधिकारों का हनन होगा। इस फैसले के बाद वहाँ विरोध के स्वर भी उठने लगे हैं।

कोर्ट ने ऐसा फैसला सुनाते हुए यूके के गृह मंत्रालय की चेतावनियों को भी दरकिनार किया जो उन्होंने सूडान से आए घुसपैठिए को लेकर दी थी, जिसने पहले 2005 और फिर 2018 में अवैध रूप से यूके में एंट्री ली। सुरक्षा सेवाओं के अनुसार, ये घुसपैठिया लगातार इस्लामी स्टेट का प्रोपगेंडा यूके में फैला रहा था और अब इसे जिंदगी भर की नागरिकता दे दी गई है।

बताते चलें कि जेहादी लिंक के कारण इस घुसपैठिए का दो बार यूके ने पासपोर्ट रद्द किया था। एक बार 2005 में और दूसरी बार 2018 में। उसके बावजूद ये गैरकानूनी तरीके से यूके में दाखिल हुआ। इसके बावजूद इसे कोर्ट ने शरण दे दी।

31 दिसंबर, 2023 की मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि अफ्रीकी देश सूडान के इस नागरिक ‘एस 3’ की अदालत में पैरवी करने वाले वकील न्यायधीशों को ये समझाने में कामयाब हो गए कि इसे सूडान वापस भेजना उसके मानवाधिकारों का हनन होगा।

अजीब बात तो ये है कि ISIS से लिंक होने के बावजूद भी घुसपैठिए की पहचान उजागर नहीं की गई है। अदालत ने उसे ये भी सुविधा दी थी कि केस में उसका नाम न लिया जाए। उसे एल-3 के साम से बुलाया जाए। अब ये अपने नाम के साथ ही आराम से यूके में रह सकता है।

जेहादी ने कोर्ट को बस ये कहा था कि अगर अगर एस-3 को भेजा गया तो सूडान में उसे हिरासत में लेकर यातनाएँ दी जाएँगी। बस फिर क्या था अदालत ने आनन-फानन में ‘एस 3’ को यूके में स्थाई तौर पर रहने के लिए नागरिकता का फरमान सुना डाला। यूके के जज ‘एस 3’ के वकील के तर्क पर बावजूद इसके राजी हो गए कि वो बगैर किसी परेशानी का सामना किए कई दफा सूडान गया और वहाँ ये यूके लौट के आया था।

यूके की सुरक्षा सेवा जो MI5 के नाम से भी जानी जाती है, उसने ‘एस 3’ को लेकर जजों को चेताया था और जानकारी दी थी कि ये शख्स सूडान में रहने के चार महीने के टाइम में ISIS का सोशल मीडिया पर प्रचार करता था। अदालती दस्तावेजों में साफ तौर पर दर्ज था कि इस सूडानी शख्स ने ISIS की आंतकी विचारधारा के लिए प्रतिबद्धता जाहिर थी। MI5 ने फिक्र जताई थी कि इस बात की असल संभावना थी कि ये अन्य लोगों को कट्टरपंथी बनाना चाहता होगा और उन्हें इस्लामी आंतकी गतिविधियों में शामिल होने के लिए बढ़ावा देगा।

इसके निर्वासन यानी वापस भेजने को लेकर अवैध अप्रवासी की कानूनी टीम ने मानवाधिकार पर यूरोपीय कन्वेंशन ऑन ह्यूमन राइट्स (ईसीएचआर) का हवाला दिया। इसके बाद ही जजों ने कहा कि उस शख्स को उसकी ब्रिटिश नागरिकता से वंचित करना मानवाधिकारों पर यूरोपीय कन्वेंशन का उल्लंघन है।

निगेल फ़राज़ और पूर्व गृह सचिव सुएला ब्रेवरमैन जैसे ब्रेक्जिटर्स का मानना है कि पीएम ऋषि सुनक के प्रशासन को यूके की सीमाओं पर अपना नियंत्रण फिर से वापस लेने के वादे को पूरा करना है तो उन्हें मानवाधिकार पर मानवाधिकार के लिए बना ईसीएचआर छोड़ना होगा।

बताते चलें कि रिपोर्टों के मुताबिक, फरवरी 2023 में ऐसी अफवाहें थीं कि सरकार कम से कम 53 आतंकवादियों को निर्वासित होने से बचाने के लिए ईसीएचआर इस्तेमाल उनके बचाव के तौर पर कर रही है।

यूके कोर्ट का सूडानी जेहादी को नागरिकता देने का ये फैसला इस संदिग्ध इस्लामवादी को अनिश्चित वक्त तक वहाँ रहने की मंजूरी देता है। वो भी उसके आस-पास रहने वाले लोगों को यह पता चले बगैर कि वो एक संभावित आतंकवादी के साथ रह रहे हैं।

कंजर्वेटिव पार्टी के पूर्व नेता सर इयान डंकन स्मिथ ने इस फैसले की आलोचना करते हुए इसे बेहूदा कहा है। उन्होंने कहा, “जजों को पता होना चाहिए कि एक ऐसे शख्स को ब्रिटेन में उसके मानवाधिकारों के बचाने के लिए रहने दिया जा रहा है, जब देश की सुरक्षा सेवाएँ उसे ब्रिटेन में जनता के लिए खतरा बताती हैं।”

माइग्रेशन वॉच यूके थिंक टैंक के अध्यक्ष एल्प मेहमत ने भी इस मामले पर कहा, “या तो हमारे आव्रजन जज भोले-भाले हैं या उन्हें गद्दारों, बदमाशों और आतंकवादियों का पक्ष लेने, उनके फायदों को ब्रिटिश लोगों से ऊपर रखने में विकृत आनंद मिलता है। यदि आतंकवादी हमारे बीच खुलेआम घूम रहे हैं, तो हमें यह जानने का हक है कि वे कौन हैं और वे संभावित तौर से क्या नुकसान पहुँचा सकते हैं।”

बताते चलें कि ब्रिटिश न्यायाधीशों का आतंकवादियों और विदेशी अपराधियों के निर्वासन में बाधा डालने का एक लंबा और गंभीर इतिहास रहा है। इसका एक विवादास्पद उदाहरण तब का है जब ब्रिटेन में न्यायाधीशों ने जमैका के एक बलात्कारी और हत्यारे सहित अधिकांश दोषियों के निर्वासन को रोक दिया था। इसकी वजह महज इतनी सी थी कि हिरासत में रहने के दौरान कैदियों को अस्थाई तौर से सेल फोन का इस्तेमाल नहीं करने दिया गया था।

इसके अलावा, 2020 में, स्कॉटलैंड के एक न्यायाधीश ने फैसला सुनाया था कि तालिबान के एक आतंकवादी को अफगानिस्तान वापस नहीं भेजा जाना चाहिए। इसके पीछे की वजह दी गई थी कि उसे ब्रिटिश सैनिकों सहित पश्चिमी सहयोगियों (ये देश शीत युद्ध के दौरान अमेरिका के साथ थे) से लड़ने से PTSD यानी तनाव की बीमारी हुई थी। इस वजह से अदालत ने उसे यूके में मुफ्त इलाज देने को कहा था। अदालत का तर्क था कि उसके अपने देश में उसे ऐसी देखभाल नहीं मिल सकेगी।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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