फिलिस्तीन में स्थित आतंकी संगठन हमास की तरफ से किए जाने वाले रॉकेट फायर्स का इजरायल की तरफ से भरपूर जवाब दिया जा रहा है। जिस सटीकता से इजरायल ने हमास के ठिकानों को तबाह किया है, उससे अंदेशा लगाया जा रहा है कि उसके पास ‘निंजा मिसाइल तकनीक’ मौजूद है। अमेरिका के पास भी 6 ब्लेड वाले निंजा मिसाइल मौजूद हैं। गाज़ा में बमबारी से तबाह एक कार की तस्वीर के आधार पर दावा किया जा रहा है कि इजरायल ने भी इस तकनीक को विकसित कर लिया है।
मंगलवार (मई 18, 23021) को Citroen Xsara मॉडल की एक सफ़ेद कार इजरायल के हमले का निशाना बनी। ‘इजरायल डिफेंस फोर्सेज (IDF)’ ने बताया कि उसने हमास के आत्मघाती सबमरीन के संचालकों को निशाना बनाया है। IDF ने इस हमले का जो वीडियो जारी किया, उसमें देखा जा सकता है कि कार के ड्राइवर की तरफ एक मिसाइल आता है, जिससे कार की खड़कियाँ और दरवाजे तो तबाह हो जाते हैं लेकिन कार वहीं मौजूद रहती है।
ड्राइवर की मौत हो जाती है और मिसाइल आगे जाकर सड़क पर गिरती है। जिस सटीकता और कुशलता से ये हमला हुआ, वो छोटी मिसाइलों से ही संभव है। लीबिया, सीरिया और इलाक़ में अमेरिका भी R9X मिसाइलों का उपयोग करता रहा है, जो बल के साथ-साथ 6 ब्लेड्स का इस्तेमाल करती हैं। लोग पूछ रहे हैं कि इजरायल ने कहीं अमेरिका के साथ मिल कर इसका अपना वर्जन तो नहीं बना लिया? निंजा मिसाइल से गाड़ी पर किए जाने वाले हमलों में एक छेद भर बनता है लेकिन गाड़ी यूँ ही खड़ी रहती है।
6 ब्लेड्स वाले मिसाइलों से जब हमला किया जाता है तो ये छेद किसी तारे की आकृति का बनता है। ये छोटे से लक्ष्य को भेद कर दुश्मन को मार गिराता है। सामान्य रॉकेट जब गिरते हैं तो वहाँ ब्लास्ट होता है और आसपास की चीजें तबाह हो जाती हैं, लेकिन ‘निंजा मिसाइलों’ में ऐसा नहीं होता। हालाँकि, गाज़ा पट्टी वाले हमले में कार को कई अन्य जगह भी नुकसान होता दिखा है, लेकिन कार और उसका रंग फिर भी स्पष्ट दिख रहा है।
वहाँ पर दो अन्य गाड़ियाँ भी खड़ी थीं, जिन्हें थोड़ा नुकसान पहुँचा है। लेकिन, पारम्परिक मिसाइलों से अगर हमला किया जाता तो शायद तबाही का मंजर कहीं ज्यादा ही होता। एक विशेषज्ञ ने कहा कि मिसाइल के हमले में किसी एक व्यक्ति का मारा जाना, उस मिसाइल हमले के लक्ष्य को पहचानने की सूक्ष्मता को दिखाता है। हालाँकि, इजरायल के पास अमेरिका का R9X मौजूद नहीं है। लेकिन, जिस मिसाइल से हमला हुआ वो उसी तरह का कोई वर्जन है।
इजरायल ने ये तकनीक इसलिए भी विकसित की होगी क्योंकि गाज़ा पट्टी के आतंकी अक्सर महिलाओं और बच्चों के पीछे छिपने की कोशिश करते हैं। छोटी मिसाइलों में बम सामग्रियों की जगह 45 किलो का धातु प्रयोग में लाया जाता है, जो लक्ष्य को भेद देता है। इसके 6 ब्लेड्स लक्ष्य तक पहुँचने के एकदम पहले बाहर आते हैं। 2017 में सीरिया में अलकायदा के सरगना अबू खयर अल-मासरी को मारने में इसके पहली बार इस्तेमाल हुआ था।
Israel fights to protect its civilians.
— Israel Defense Forces (@IDF) May 18, 2021
Hamas uses civilians to protect itself. pic.twitter.com/J6WVye1Lqy
इसके बाद से कई देशों में छोटे लक्ष्यों को भेदने के लिए अमेरिका ने इनका इस्तेमाल किया है। लीबिया, ईराक, यमन और सोमालिया के अलावा 2019 में अफगानिस्तान में भी इसका प्रयोग किया गया। मान लीजिए कुछ लोग साथ बैठ कर डिनर कर रहे हैं और उनमें से किसी एक को चिह्नित कर मार गिराना है, तो ये मिसाइल कारगर है। ये ड्राइवर को नुकसान पहुँचाए बिना गाड़ी में बैठे दुश्मन को ढेर कर सकता है।
अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भी अलकायदा के सबसे बड़े सरगना ओसामा बिन लादेन को मार गिराने के लिए इन्हीं मिसाइलों का प्रयोग किया था, लेकिन बाद में सील कमांडो को भेजा गया। इजरायल का कहना है कि लगातार नौवें दिन उस पर रॉकेट्स फायर किए जा रहे हैं, ऐसे में वो जवाब देता रहेगा। इजरायल के पास मिसाइल हमलों से बचने के लिए ‘आयरन डोम‘ सिस्टम भी है। उसने कहा है कि वो लोगों की जान बचाने के लिए माफ़ी नहीं माँगेगा।