बांग्लादेश में हुई हिंदू विरोधी हिंसा ने कई घरों के चिरागों को उनसे छीन लिया। मंदिर से लेकर घरों तक में तोड़फोड़-आगजनी की घटनाओं को अंजाम दिया गया। जहाँ हिंदू महिला या लड़की मिलीं उनसे रेप हुआ। जहाँ हिंदू आदमी मिला उसे मौत के घाट उतार दिया गया
इन सबके बीच न जाने कितने बच्चे अनाथ हुए और कितनी औरतें विधवा हुईं…जतन साहा भी उसी सूची में शामिल एक नाम हैं जो इस्लामी कट्टरता का शिकार होने के बाद अपने पीछे अपने चार साल के मासूम बेटे आदित्य और पत्नी को छोड़ गए हैं।
बेटा बार-बार माँ के सामने दोहराता है- “जब तक पापा नहीं आएँगे मैं खाना नहीं खाऊँगा, बताओ न वो कब आएँगे…।” माँ के पास इतनी हिम्मत नहीं है कि बच्चे को बता सकें कि उसके पापा अब नहीं लौटने वाले क्योंकि उन्हें तो उन कट्टरपंथियों ने कुचल दिया जो सैंकड़ों की तादाद में सिर्फ हिंदुओं को ही मारने निकले थे।
डेली स्टार से बात करते हुए नम आँखों से आदित्य की माँ लकी राणा साहा ने कहा,”मैं उसे कैसे बोलूँ कि उसके पापा अब नहीं आएँगे, कभी उसके साथ खाना नहीं खाएँगे, कभी उसके साथ नहीं खेलेंगे या वो कभी उसे गले नहीं लगाएँगे…एक तरफ तो मैं खुद अपने पति की इस तरह हुई मौत से सदमे में हूँ, दूसरा मुझको मेरे बेटे की चिंता खाई जा रही है जो अपने पिता की गैर मौजूदगी में बीमार पड़ रहा है।”
लकी की चिंता औ दुविधा दोनों जायज हैं। आखिर कब उन्होंने सोचा होगा कि घर से बाहर निकले उनके पति मार दिए जाएँगे। 15 अक्टूबर को दुर्गा पूजा थी। सब तैयारी में जुटे थे। लेकिन आतताई भीड़ सैंकड़ों हिंदुओं का काल बन वहाँ आ रही है ये किसने अंदाजा लगाया होगा। जो- जो उस दिन नोआखली के मंदिरों में मिला..सब पर प्रहार हुआ..पार्थ दास जैसे शव भी मिले जिनके शरीर के भीतर से अंगों को नोच लिया गया था।
उस दिन आदित्य के पापा के साथ भी कुछ यही हुआ था। वो अपनी बहन के घर दुर्गा पूजा वाले दिन नरोत्तमपुर गए थे जो बेगमगंज उपजिले में पड़ता था। जतन की बहन मुक्तारानी ने बताया, “जतन बहुत ही सीधा और खुशमिजाज था। वो मेरे घर हर साल दुर्गा पूजा पर आता था और ये पहली दफा था कि अपनी बीवी-बच्चों के साथ वो मेरे पास आया। लेकिन पूजा की खुशी मेरे भाई के साथ मर गई। मैंने कभी सोचा नहीं था कि ऐसा होगा। मैं यकीन नहीं कर पा रही कि मैं दोबारा अपने भाई को देख नहीं पाऊँगी।‘
जतन के बहनोई उत्पल साहा ने उस खौफनाक दिन क्या हुआ था इस बारे में सारी जानकारी दी। उन्होंने बताया कि 15 अक्टूबर को 3 बजे जुमे वाले दिन करीब 2000 लोगों ने हगनीपुर गर्ल्स स्कूल पर हमला बोला था। कुछ देर बाद उन्होंने इस्कॉन को निशाना बनाया और फिर वो बिजॉय सर्बोजोनी दुर्गा मंदिरों पर टूट पड़े।
हमले के समय जतन भी इस्कॉन मंदिर के दरवाजे पर थे। पहले हमलावरों ने उनका पाँव तोड़ा। जिसके बाद जतन फौरन घर आ गए और बर्फ की सिंकाई लेकर दोबारा हालात देखने बाहर निकले। इसी दौरान इस्लामी कट्टरपंथियों ने उनको पकड़ा और जोर-जोर से मारने लगे।
उत्पल कहते हैं, “हमने एंबुलेंस बुलाई लेकिन कोई नहीं आया। हम उसे प्राइवेट अस्पताल ले गए। वहाँ से उसे बेगमगंज उपजिला हेल्थ कॉम्प्लेक्स में भर्ती कर दिया गया। मगर उसकी हालत बिगड़ती रही डॉक्टरों ने उसे नोआलखी ले जाने को कहा, जहाँ पहुँचते-पहुँचते वो दम तोड़ चुका था।” उत्पल को समझ नहीं आ रहा था कि वो किस चीज पर हैरान हों। एक तरफ उनके साले का शव था और दूसरी तरफ इस्लामी आतताइयों के आगे लाचार हुई कानून व्यवस्था।
वह कहते हैं कि करीब 3 घंटे कोई पुलिसकर्मी घटनास्थल पर नहीं आया। बार-बार पुलिस इन्चार्ज व कई अधिकारियों को फोन किया गया लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। वह पूछते हैं, “हम आज भी डरे हैं कि आखिर कब तक पुलिस हमारी सुरक्षा में तैनात रहेगी। क्या कोई दावा कर सकता है कि ऐसी घटना दोबारा नहीं घटेगी।” वहीं जतन की पत्नी पूछती हैं, “मेरे पति हमारे परिवार में अकेले कमाने वाले थे। हमलावरों ने बेरहमी से उन्हें मारा। अब मेरा और मेरे बच्चे का भविष्य तो काले अंधकार में चला गया है न। मुझको कुछ समझ नहीं आ रहा कि आखिर मैं बच्चे को कैसे पालूँगी। मैं बस चाहती हूँ कि मेरे पति के हत्यारे सबसे कड़ी सजा पाएँ। ”