बांग्लादेश मुक्ति संघर्ष के बड़े नाम और बांग्ला भाषा के लिए जीवन भर पाकिस्तानी सरकार से लोहा लेने वाले क्रांतिकारी धीरेन्द्रनाथ दत्ता की आज 2 नवम्बर को जयंती है। उन्हें पाकिस्तान की सेना ने उनके बेटे के साथ घर से उठा कर मार दिया था। लेकिन उनका पार्थिव देह आज तक नहीं मिल सकी है।
धीरेन्द्रनाथ दत्ता का जन्म वर्ष 1886 में 2 नवम्बर को बांग्लादेश (तब संयुक्त बंगाल) के कमिला जिले के रामरेल गाँव हुआ था। धीरेन्द्रनाथ दत्ता की शुरूआती पढ़ाई स्स्थानीय स्तर पर और फिर कोलकाता के रिपन कॉलेज में हुई थी। धीरेन्द्रनाथ दत्ता ने अपनी पढ़ाई के बाद वकालत का पेशा चुना।
वह वकील के तौर पर आमजनमानस में काफी लोकप्रिय थे। धीरेन्द्रनाथ दत्ता शुरुआत से ही क्रांतिकारी विचारों वाले थे। उन्होंने 1905 में कर्जन द्वारा प्रस्तावित बंगाल विभाजन, 1920 में असहयोग आन्दोलन और फिर 1942 में महात्मा गाँधी द्वारा चालू किए गए ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ में भी हिस्सा लिया था।
धीरेन्द्रनाथ अपने इलाके में लोकप्रिय थे इसीलिए उनको वर्ष 1937 में बंगाल प्रांतीय विधानसभा में विधायक चुना गया था। धीरेन्द्रनाथ दत्ता बंगाली राष्ट्रवाद और बंगाली भाषा के बड़े समर्थक थे। उन्होंने इस कारण से भारत-पाक विभाजन के बाद बांग्लादेश (तब पूर्वी पाकिस्तान) में रहना चुना।
उनके पास देश की आजादी के बाद एक समय भारतीय बंगाल की विधानसभा या फिर संविधान सभा में जाने का विकल्प भी था लेकिन अपनी मातृभूमि से प्रेम के चलते वह वहीं रहे और पाकिस्तान की संविधान सभा में शामिल होने का निर्णय लिया।
पाकिस्तान की संविधान सभा में धीरेन्द्रनाथ दत्ता अकेले और पहले ऐसे नेता थे जो कि बंगाली भाषा को पूर्वी पाकिस्तान की आधिकारिक भाषा बनाने की लड़ाई लड़ रहे थे। वह पूर्वी पाकिस्तान के पहले ऐसे नेता थे जिन्होंने पाकिस्तान में उर्दू के विरुद्ध आवाज उठाई थी जो कि आगे चल कर बांग्लादेश की आजादी का सबसे बड़ा कारण बनी।
धीरेन्द्रनाथ दत्ता का कहना था कि भले ही पाकिस्तान के भीतर बांग्ला एक क्षेत्रीय भाषा है लेकिन पूर्वी पाकिस्तान में यह आमजन में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है। उनका कहना था कि 6.9 करोड़ पाकिस्तानियों में से 4 करोड़ लोग बांग्ला भाषा बोलते हैं ऐसे में इसे ही आधिकरिक भाषा बनाया जाना चाहिए।
हालाँकि, उनकी इस माँग को पाकिस्तान की संविधान सभा में ठुकरा दिया गया। पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति मुहम्मद अली जिन्ना ने करोड़ों पूर्वी पाकिस्तानियों का अपमान करते हुए ढाका में एक रैली में स्पष्ट कर दिया था कि उर्दू के अलावा और कोई भी भाषा पाकिस्तान में नहीं चलेगी।
धीरेन्द्रनाथ दत्ता बंगाल की प्रांतीय सरकार में रहकर बांग्ला भाषा के लिए काम करते रहे और बंगालियों के लिए अधिकारों की माँग करते रहे। वह पूर्वी बंगाल के मुख्यमंत्री अताउर रहमान की सरकार में स्वास्थ्य और समाज कल्याण मंत्री भी रहे।
धीरेन्द्रनाथ दत्ता को वर्ष 1960 में पाकिस्तानी सरकार ने 1960 में विधानसभा से बर्खास्त कर दिया था। उन्हें 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान उनको घर में नजरबन्द कर दिया गया। इसके बाद उन्होंने राजनीति से संन्यास भी ले लिया था।
राजनीति से संन्यास लेने के बाद भी धीरेन्द्रनाथ बंगाली अधिकारों के लिए सक्रिय रहे और लगातार नए बंगाली नेताओं को बढ़ाने में सहायता करते रहे। हालाँकि, उनका यह रवैया पाकिस्तान के जनरल याहया खान की तानाशाह सरकार को पसंद नहीं आया।
29 मार्च 1971 को धीरेन्द्रनाथ दत्ता और उनके पुत्र दिलीप कुमार दत्ता को पाकिस्तान की सेना के द्वारा उनके घर से अगवा करके मैनामाटी कैंटोनमेंट में ले जाकर मार दिया गया। आजतक उनका शव भी बरामद नहीं हो सका है।
धीरेन्द्रनाथ दत्ता की आज 137वीं जयंती है। बंगाली राष्ट्रवाद और बांग्ला भाषा के अधिकारों के लिए लड़ने वाले धीरेन्द्रनाथ बांग्लादेश के निर्माण से पहले ही मार दिए गए। इस प्रकार उनका बांगला को आधिकारिक भाषा बनते देखने का सपना उनके जीवनकाल में पूरा नहीं हो सका।
बंगाल की जनता उनका आज भी सम्मान करती है और बांग्ला भाषा के लिए आवाज उठाने वाले पहले क्रांतिकारी के तौर पर जानती है। उनके बांग्लादेश के निर्माण में योगदान को लेकर फरवरी 2023 में डाक्यूमेंट्री भी रिलीज की गई थी।