आज से 21 साल पहले 22 नवंबर, 2002 को अमूमन अमन में रहने वाला अफ्रीकी मुल्क नाइजीरिया अचानक से दुनिया में सुर्खियों में आ गया था। वजह थी वहाँ मजहबी और जातीय हिंसा भड़क उठी थी और 23 नवंबर 2002 को यहाँ होने वाला मिस वर्ल्ड कॉन्टेस्ट आयोजकों ने रद्द कर दिया था। आज इस घटना को घटे हुए 21 वर्ष से ज़्यादा हो गए लेकिन वह घटना आज भी ताजा है।
इस मुल्क में एक-दूसरे के साथ मिलजुल कर रहने वाली मुस्लिम और ईसाई आबादी के बीच ये खूनी संघर्ष एक-दूसरे की जान लेने तक जा पहुँचा। इस हिंसक आक्रोश और खून-खराबे में 100 लोग मारे गए और इस सबकी वजह थी पैगंबर मोहम्मद के बारे में दिसडे (ThisDay) अखबार में छपी एक रिपोर्ट।
इस रिपोर्ट में मुल्क में होने जा रहे मिस वर्ल्ड पैजेंट की मेजबानी के साथ मेल खाती थी। इस रिपोर्ट पर मुस्लिमों ने खासा एतराज जताया था। दरअसल, 2002 में नाइजीरिया ने मिस वर्ल्ड पैजेंट की मेजबानी करने का फैसला लिया था। हालाँकि, इस मुल्क ने ये फैसला जोश और डर दोनों के साथ लिया था।
दरअसल, इस ब्यूटी पैजेंट के जरिए इस अफ्रीकी मुल्क की सांस्कृतिक समृद्धि को दुनिया से रूबरू कराने का का वादा किया था। लेकिन इसे लेकर कुछ मजहबी समूहों खासकर मुस्लिम समुदाय के रूढ़िवादी रवैये की वजह से पहले ही खासी चुनौतियाँ पेश आ रही थी।
इन समूहों का आरोप था कि इस आयोजन से व्यभिचार और अश्लीलता को बढ़ावा मिलेगा। इसी बीच अखबार दिसडे में छपी रिपोर्ट ने आग में भी डालने का काम किया।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, मिस वर्ल्ड की मेजबानी की तैयारियों के बीच ‘दिसडे अखबार’ में इसियोमा डैनियल की लिखी रिपोर्ट में पैगंबर मोहम्मद को उनकी बीवी को लेकर एक काल्पनिक सुझाव दिया गया था। इसमें लिखा गया था कि मिस वर्ल्ड में शिरकत करने वाली हसीनाओं को अगर पैगंबर देखते तो उन्होंने भी अपनी शरीक-ए-हयात को उन्हीं एक में से चुना होता।
डैनियल ने लिखा था, “(पैगंबर) मुहम्मद इन हसीनओं को देख क्या सोचेंगे? पूरी ईमानदारी से कहें तो वो शायद इन (मिस वर्ल्ड कंटेस्टेंट ) में से एक को बीवी चुनेंगे। इस रिपोर्ट के तीखे लफ्जों ने मुस्लिम समुदाय को नाराज कर दिया। नाइजीरियन मुस्लिमों ने इसे अपने मजहब की बेइज्जती के तौर पर लिया।
बता दें कि ‘दिसडे अखबार’ में ये रिपोर्ट रविवार के एडिशन में छपी थी। अखबार के छपे इस लेख के तुरंत बाद मुस्लिम समूहों ने अखबार से माफी की माँग करते हुए विरोध प्रदर्शन किया था।
मुस्लिमों की नाराजगी को देखते हुए अगले ही दिन अखबार ने पहले पन्ने पर एक छोटा सा माफीनामा छापा था। इसके एक दिन बाद ही अखबार ने मंगलवार को फिर से मुस्लिमों के एतराज जताने वाले इस अंश के रिपोर्ट में गलती से छप जाने को लेकर लंबा तर्क छापा था।
अखबार के इस तरह से दो बार छापे गए लिखित माफीनामे के बाद भी नाइजीरिया में हालात काबू में नहीं हो पाए थे। वहाँ हिंसा का नंगा नाच चलता रहा था और तेजी से हालात काबू से बाहर होते चले गए थे।
खासकर मुल्क के उत्तरी राज्य कदूना में हिंसा भड़क उठी थी। ईसाई और मुस्लिम आपस में भिड़ गए। इससे जानमाल का काफी नुकसान हुआ। बड़े पैमाने पर सार्वजनिक और निजी संपत्ति का नुकसान हुआ है। इसके बाद वहाँ खौफ और संदेह का माहौल बन गया।
चूँकि, नाइजीरिया में मिस वर्ल्ड की मेजबानी को लेकर ये हिसंक दंगे भड़के थे तो इसे दुनिया में अक्सर ‘2002 के मिस वर्ल्ड दंगे’ के नाम से भी जाना जाता है। रिपोर्टों से पता चलता है कि शहर भर में गुस्साई भीड़ ने आसपास खड़े लोगों पर चाकू से हमला किया था।
ये दंगे यहाँ कम से कम तीन दिनों तक चले। इसमें 100 से अधिक मौतें हुईं और नाइजीरिया के सांप्रदायिक सद्भाव के माथे पर लंबे वक्त तक इन दंगों का दाग बना रहा।
वैसे तो नाइजीरिया अपनी अलग-अलग तरह की आबादी के लिए जाना जाता है। यहाँ मुस्लिम और ईसाई समुदाय बहुतायत में है। ये दोनों ही यहाँ शांतिपूर्वक सह-अस्तित्व में रहते हैं, लेकिन राजनीतिक पेचीदीगियों, मजहबी मतभेदों और आर्थिक असमानताओं के बीच इस तरह की हिंसाकी ऐतिहासिक घटनाएँ भी हुई हैं।
नाइजीरिया के मिस वर्ल्ड दंगों में हुई हिंसा की रिपोर्ट जैसे ही अंतरराष्ट्रीय समुदाय तक पहुँची तो फिक्र के साथ ही इस मुल्क की खासी लानत-मलामत हुई। मिस वर्ल्ड ऑर्गनाइजेशन ने प्रतियोगियों और आयोजक टीम की सुरक्षा को वरीयता देते हुए इस ब्यूटी पैजेंट की मेजबानी का जिम्मा लंदन को सौंप दिया।
नाइजीरिया में शरिया कानून
संयुक्त राज्य के इंटरनेशनल रीलिजियस फ्रीडम कमीशन (International Religious Freedom) के मुताबिक, नाइजीरिया के 36 राज्यों में से 12 में शरिया कानून लागू है। दरअसल, साल 1999 में इस मुल्क ने एक संविधान अपनाया गया। इसमें सरकार की संघीय प्रणाली और मजहबी, रिवाजों और नागरिक कानूनों का एक खाका तैयार किया। इसके तहत यहाँ के संविधान में प्रावधान है कि राज्यों में हाईकोर्ट तो होंगे ही, लेकिन जहाँ जरूरी हो वहाँ शरिया और अपील की रिवाजी अदालतें भी हो सकती हैं।
हालाँकि, इन वर्षों में यहाँ के कई राज्यों ने देश के इस्लामी आपराधिक कानून या शरिया कानून को फिर से एक कर दिया। ऐसे कई उदाहरण हैं जहाँ शरिया कानून ने ईशनिंदा के लिए लोगों को मौत की सजा सुनाई है।
दिसंबर 2022 में, एक मौलवी को कथित ईशनिंदा के लिए शरिया अदालत ने मौत की सजा सुनाई थी। उन्होंने कह दिया था कि शिया मजहब सुन्नी से बेहतर था। अगस्त 2020 में ही एक शरिया अदालत ने पैगंबर मुहम्मद के खिलाफ कथित ईशनिंदा के लिए एक नाइजीरियाई सिंगर को मौत की सजा सुनाई।
नाइजीरिया में ईशनिंदा के आरोप में मुस्लिम भीड़ के ईसाइयों के पीट-पीट कर हत्या किए जाने की अनगिनत खबरें आई हैं। मई 2022 में, सोकोतो में मुस्लिम छात्रों ने पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ ईशनिंदा का आरोप लगाने के बाद एक ईसाई छात्र की पत्थर मारकर हत्या कर दी और उसकी लाश को जला दिया।