‘हिन्दू ऑन कैम्पस’ नामक ट्विटर हैंडल से शुक्रवार (22 अक्टूबर 2021) को संयुक्त राज्य अमेरिका के डार्टमाउथ शहर में एक मुस्लिम छात्रा द्वारा 3 हिन्दू प्रोफेसरों के खिलाफ रची गई एक असफल साजिश का खुलासा किया गया है। छात्रों द्वारा संचालित ट्विटर हैंडल हिन्दू ऑन कैम्पस ने बताया कि कॉलेज की मुस्लिम समुदाय की पूर्व Ph.D छात्रा माहा हसन अलशावी ने कॉलेज के 3 हिन्दू प्रोफ़ेसरों को निकलवाने की साजिश रची थी। जाँच के बाद सभी प्रोफेसर बेदाग निकले हैं। इसे डार्टमाउथ शहर के इतिहास का सबसे बड़ा ‘हिंदूफोबिक स्कैंडल’ बताया गया है।
THREAD: Did you know that a student filed a complaint against Hindu professors at @Dartmouth just bc they were Hindu?
— Hindu On Campus (@hinduoncampus) October 22, 2021
Didn’t hear about it? Our team investigated the biggest Hinduphobic scandal in Dartmouth’s history. #Hinduphobia #AcademicTwitter https://t.co/Bun38wjyVN
हिन्दू ऑन कैम्पस ट्विटर एकाउंट द्वारा मिली जानकारी के अनुसार, माहा हसन अलशावी ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि वो तीनों प्रोफेसर हिन्दू हैं। कंप्यूटर साइंस पीएचडी की पूर्व छात्रा माहा हसन अलशावी द्वारा यह आरोप सितंबर 2019 और नवंबर 2020 के बीच लगाए गए थे। इन आरोपों में माहा हसन अलशावी ने कहा गया था कि उसके रिसर्च सलाहकार अल्बर्टो क्वाट्रिनी ली ने बिना अनुमति के उसके कार्यालय में प्रवेश किया। इसके साथ ही उन्होंने 20-30 सेकंड तक दो बार अपने प्राइवेट पार्ट को उसके सामने छुआ।
इसके साथ ही माहा हसन अलशावी ने कंप्यूटर साइंस विभाग के अपने 3 हिन्दू प्रोफेसरों पर धर्म के आधार पर उसके साथ भेदभाव करने का भी आरोप लगाया था। इन प्रोफेसरों के नाम दीपर्णब चक्रवर्ती, अमित चक्रवर्ती और प्रसाद जयंती हैं।
अपनी शिकायत में अलशावी ने कहा था कि प्रोफेसर जयंती ने जानबूझ कर उसे ‘लो पास’ ग्रेड दिया था और उसके लिए समस्याएँ खड़ी की थी। इसके साथ ही उन्होंने एडवांस एल्गोरिदम की क्लास लेने से भी उसे रोक दिया था। एक अन्य हिन्दू प्रोफेसर अमित चक्रवर्ती पर अलशावी ने आरोप लगाया था कि प्रोफेसर अमित चक्रवर्ती ने उसके रिसर्च एडवाइजर से खुद को अलग कर लिया थाऔर 3 अक्टूबर 2020 तक नया एडवाइजर खोजने के लिए कहा था। अलशावी ने कहा कि उसके साथ ऐसा बदला इसलिए लिया जा रहा था, क्योंकि उसने अपने रिसर्च सलाहकार अल्बर्टो के खिलाफ यौन शोषण की शिकायत की थी।
अलशावी ने इस मामले को तूल देने की पूरी कोशिश की। उसने भूख हड़ताल का भी एलान किया था। साथ ही अपनी विचारधारा के समर्थक कई छात्रों को भी उसने अपने साथ जमा कर लिया था। इस घटना को लेकर बाकायदा विरोध प्रदर्शन भी किए गए थे।
प्रोफेसरों पर लगाया मुसलमानों से नफरत करने का आरोप
इस मामले की जाँच कॉलेज के विविधता और समानता (IDE) निदेशक एंटोनियो फेरेंटिनों ने की। उन्होंने माहा हसन अलशावी के 16 जून 2020 में भेजे गए एक ईमेल का उल्लेख किया। इस ईमेल में अलशावी द्वारा आरोप लगाया गया था कि उसकी धार्मिक पहचान के खिलाफ प्रोफेसर दीपर्णब चक्रवर्ती, अमित चक्रवर्ती और प्रसाद जयंती ने अशोभनीय टिप्पणी की। शिकायत में तीनों प्रोफेसरों के अलावा अलशावी ने 3 छात्रों का भी नाम लेते हुए उन्हें हिन्दू होने के नाते मित्र और सहकर्मी बताया था।
जाँच के दौरान जाँचकर्ता एंटोनियो फेरेंटिनो ने पाया कि प्रोफेसर दीपर्णब चक्रवर्ती के खिलाफ कोई विशेष शिकायत नहीं है। तब अलशावी ने कहा कि उसे मुस्लिम होने के चलते परेशान किया गया। जब जाँचकर्ता ने उत्पीड़न के सबूत मांगे तब महाहसन अलशावी उसे देने में नाकाम रहीं। फेरेंटिनो ने बताया कि इसके बदले में अलशावी ने जवाब दिया कि हिन्दुओं को मुसलमानों का प्रताड़ित होते देखना पसंद है और ऐसा उसका मानना है। इन आरोपों पर जाँचकर्ता का निष्कर्ष था कि ऐसा अलशावी का मानना भर है, बाकी कुछ नहीं।
फेरेंटिनो को भेजी गई ईमेल में अलशावी ने लिखा था, “मुझे ऐसा लगता है कि वो सब मुझे गाली देने में जयंती की मदद इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि मैं एक मुस्लिम हूँ। आप बताईये कि उन्होंने ऐसा सिर्फ मेरे ही साथ क्यों किया, बाकी किसी को उन्होंने गाली क्यों नहीं दी?” निष्कर्ष के तौर पर जाँच में यह माना गया कि शिकायत करने वाली छात्रा को यह लगता है कि हिन्दू प्रोफेसर दीपर्णब चक्रवर्ती, अमित चक्रवर्ती और प्रसाद जयंती मुस्लिम होने के कारण उससे नफरत करते हैं। उन सभी की शिकायत के पीछे उसकी यही भावना थी।
हिन्दू प्रोफेसरों पर लगाया RSS का सदस्य होने का आरोप
एक अन्य आरोप में पूर्व छात्रा अलशावी ने यह भी कहा था कि प्रोफेसर प्रसाद जयंती राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) नामक एक मुस्लिम विरोधी संगठन के सदस्य हैं। इसी के साथ उसने यह भी दावा किया कि एक ग्रेजुएट छात्र को उसके धर्म के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए कहा था। जब जाँचकर्ताओं ने इन आरोपों के प्रमाण माँगे तब अलशावी ने सबूत न होने की बात कही और बताया कि उसे एक भारतीय स्रोत से पता चला था।
जब जाँचकर्ताओं ने अलशावी से उस भारतीय स्रोत के बारे में सवाल किया तो उसने इसके लिए भी मना कर दिया। जब अलशावी के धर्म की प्रोफेसर जयंती द्वारा जानकारी जुटाने की शिकायत पर ग्रेजुएट छात्र से सवाल किए गए तो उसने इससे इंकार कर दिया। उसके अनुसार उस से ऐसा करने के लिए किसी ने भी कभी नहीं कहा। इसी के साथ इन आरोपों के समर्थन में भी अलशावी कोई अन्य सबूत नहीं दे पाई।
हिन्दू प्रोफेसरों के खिलाफ आधारहीन आरोपों का असर
जाँचकर्ताओं की अंतिम रिपोर्ट में प्रोफेसर प्रसाद जयंती बेगुनाह साबित हुए थे, लेकिन इसके बाद भी उनके खिलाफ इस्लामिक चरमपंथियों ने उनके खिलाफ अभियान छेड़ दिया। बाकायदा ट्विटर पर हैशटैग #justice4mahahasan चलाया गया। कई लोगों द्वारा माहा हसन अलशावी के समर्थन में ट्वीट भी किए गए। एक कट्टरपंथी हैंडल (@wassimhds) ने प्रोफेसर जयंती के प्रोफाइल लिंक को शेयर किया। इसी के साथ उन्हें ‘अपमानजनक हिंदुत्व घोटाला’ बता कर उन्हें धमकी भरे फोन करने को उकसाया गया। इसका असर भी हुआ और प्रोफेसर जयंती को अज्ञात व्यक्तियों की धमकियां ईमेल और ट्विटर से आने लगीं। अपनी सुरक्षा को देखते हुए प्रोफेसर जयंती ने 26 जुलाई 2021 को हनोवर पुलिस विभाग में शिकायत दर्ज कराई।
इस मामले में किए गए अंतिम ट्वीट में हिंदू ऑन कैंपस लिखता है, “हालात का सार: एक छात्र ने एक हिंदू प्रोफेसर के खिलाफ ‘मुसलमानों को प्रताड़ित देखना हिंदुओं को अच्छा लगता है’ की शिकायत की। प्रोफेसर भारतीय पृष्ठभूमि से आया था। इस हरकत से हिंदू प्रोफेसर और छात्र चरमपंथियों के शिकार बने, उन्हें परेशान किया गया, उन्हें धमकाया गया और उनके खिलाफ हिंसा की भी धमकी दी गई।”