चीन और पाकिस्तान का बढ़ता याराना अब प्रकृति पर खतरा बन रहा है। यही कारण है कि POK के मुजफ्फराबाद में लगातार प्राकृतिक धरोहर को बचाने के लिए लोग सड़कों पर उतर रहे हैं और खुलकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। इसी कड़ी में सोमवार (अगस्त 24, 2020) को भी वहाँ की सड़कों पर लोगों में गुस्सा देखने को मिला।
नीलम-झेलम नदी पर विशाल बाँध निर्माण को रुकवाने के लिए ‘दरिया बचाओ, मुजफ्फराबाद बचाओ’ (सेव रिवर, सेव मुजफ्फराबाद) कमिटी के प्रदर्शनकारियों ने ‘नीलम-झेलम बहने दो , हमें जिंदा रहने दो’ जैसे नारे लगाए। इस प्रदर्शन में सैंकड़ों लोग शामिल हुए। मुजफ्फराबाद को छोड़ दें, तो POK के अन्य शहरों से भी इस प्रदर्शन में काफी लोग थे।
गौरतलब है कि पाकिस्तान ने भारत के डर से चीन को POK के कुछ हिस्से दे रखे हैं और वहाँ के खनिज संसाधनों को भी चीन के हवाले कर दिया है, जो POK का जम कर दोहन तो कर ही रहा है, साथ ही वहाँ कई सारे प्रोजेक्ट्स भी चला रहा है। इससे स्थानीय लोगों मे आक्रोश का माहौल है।
अभी हाल में पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में आज़ाद पट्टन और कोहाला हाइड्रोपावर कंपनी ने निर्माण के लिए समझौतों पर हस्ताक्षर किए थे। चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) के हिस्से के रूप में 700.7 मेगावाट बिजली की आजाद पट्टन हाइड्रो प्रॉजेक्ट पर 6 जुलाई, 2020 को हस्ताक्षर किए गए थे।
जानकारी के अनुसार, ये 1.54 बिलियन डॉलर की परियोजनाएँ चीनी जियोझाबा कंपनी द्वारा प्रायोजित की जाएँगी और कोहारला हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर प्रोजेक्ट जो झेलम नदी पर बनाया जाएगा, वह पीओके के सुधनोटी जिले में आज़ाद पट्टन पुल से लगभग 7 किमी और पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद से 90 किमी दूर है।
कहा जा रहा है कि ये परियोजना साल 2026 तक पूरी होगी। जिसके बाद देश में बिजली सस्ती हो पाएगी। लेकिन वहाँ स्थानीय लोग इस समझौते के सख्त ख़िलाफ़ हैं। वह वहाँ पर चीनियों की उपस्थिति, बांधों के बड़े पैमाने पर निर्माण और नदियों के बहाव मोड़ने से उनके अस्तित्व पर पड़ रहे खतरे को लेकर खासा नाराज हैं।
रिपोर्ट्स बताती हैं कि चीन और पाकिस्तान मिलकर पीओके और गिलगित बाल्टिस्टान के प्राकृतिक संसाधनों को लूट रहे हैं। यही कारण है कि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ताओं में इसे लेकर अक्सर रोष देखने को मिलता है।
याद दिला दें कि ये विरोध प्रदर्शन पहली बार देखने को नहीं मिला है। इससे पहले भी मुजफ्फराबाद की जमीन पर ऐसे विरोध हुए हैं। 6 जुलाई को ऐसा ही नजारा क्षेत्र में देखने को मिला था। दरअसल, तब भी लोगों का यही आरोप था कि चीन द्वारा बनाए जा रहे बाँधों से वहाँ के वातावरण पर भी काफ़ी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, जिसके कारण पर्यावरण संबंधी कई समस्याओं के खड़े होने की आशंका है। इसके बाद 13 अगस्त को एक बार फिर ऐसा ही माहौल मुजफ्फराबाद में फिर बना। तब भी लोगों ने विरोध करके अपना गुस्सा जाहिर किया था और जमकर नारेबाजी की थी।