भारत-पाकिस्तान विभाजन को लगभग आठ दशक हो चुके हैं लेकिन अभी भी लाखों लोगों को विभाजन की विभीषिका के दौरान छूटे हुए अपनों के मिलने की आशा है। ऐसा ही एक मामला पाकिस्तान के करतारपुर कॉरिडोर से सामने आया है जहाँ 76 वर्षों के बाद विभाजन में अलग हुए भाई-बहन फिर से मिले।
रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय पंजाब के जालंधर की रहने वाली सुरिंदर कौर और पाकिस्तानी पंजाब के साहीवाल के रहने वाले मोहम्मद इस्माइल वर्ष 1947 में हुए विभाजन में अलग हो गए थे। वह एक बार फिर से 2023 में पाकिस्तान के करतारपुर कॉरिडोर में मिले हैं।
Another family reunion, at Darbar Sahib Kartarpur Corridor.
— PMU Kartarpur Official (@PmuKartarpur) October 21, 2023
Mr. Muhammad Ismael from Sahiwal, Pakistan
Surinder Kaur from Jalandhar, India#KartarpurSahib #Pakistan #IndoPakRelations #PMU #TDCP #PTC #Official #Corridor #CEO #Sikhs #gurdawara #meetup pic.twitter.com/jOWIdg1liG
इस्माइल का कहना था कि वह विभाजन से पहले जालन्धर के शाहकोट कस्बे में रहते थे। सुरिंदर कौर उनकी चचेरी बहन थीं, विभाजन में दोनों परिवार अलग हो गए थे। दोनों मिलने पर भावुक हो गए और उनकी आँखों में आँसू थे। इन दोनों का मिलना करतारपुर कॉरिडोर और सोशल मीडिया के कारण संभव हो पाया है। इस्माइल ने बताया कि कुछ समय पहले एक स्थानीय यूट्यूबर द्वारा उनका वीडियो बनाया गया था जो कि वायरल हो गया।
इसके पश्चात ऑस्ट्रेलिया से सरदार मिशन सिंह ने सीमा के दोनों तरफ दोनों परिवारों से संपर्क किया और उन्हें मिलाने के प्रयास किए। हालाँकि, दोनों देशों के बीच राजनीतिक समस्याओं के कारण वीजा मिलने में समस्याएं आ रही थीं।
इसके लिए करतारपुर कॉरिडोर का रास्ता निकाला गया जहाँ भारतीय भी पाकिस्तान के भीतर करतारपुर साहिब में बिना वीजा जा सकते हैं। जालन्धर से सुरिंदर कौर इसी सुविधा का लाभ उठाते हुए पाकिस्तान पहुँची जहाँ इस्माइल भी पहुँचे थे। दोनों के परिवार भी इस दौरान मौजूद थे।
हालाँकि, यह बात ध्यान देने वाली है कि सुरिंदर कौर जहाँ सिख हैं वहीं मोहम्मद इस्माइल मुस्लिम। इसका कारण यह हो सकता है कि पाकिस्तान में जाने के बाद इस्माइल को अपना सिख धर्म छोड़कर मुस्लिम बनना पड़ा हो क्योंकि पाकिस्तान में धार्मिक आधार पर प्रताड़ना सदैव चरम पर रही है। करतारपुर में सिख धर्म के संस्थापक गुरुनानक देव ने अंतिम साँस ली थी। यहाँ एक भव्य गुरुद्वारा बना हुआ है। यह भारतीय सीमा से काफी निकट है। इस गुरूद्वारे में भारतीय श्रद्धालु जा सकें इसके लिए पाकिस्तान की सहायता से वर्ष 2019 में कॉरिडोर स्थापित किया गया था।