Sunday, December 22, 2024
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‘औरतों की आवाज इबादत के वक्त भी सुनाई न पड़े’ : अफगान महिलाओं के लिए तालिबान का फरमान, अल्लाह-हु-अकबर और सुभानाल्लाह कहने की भी आजादी नहीं

तालिबान के मंत्री मोहम्मद खालिद हनफी ने अपने फरमान में कहा कि औरतों की आवाज को आवारा माना जाता है। इसलिए उन्हें छिपकर रहना चाहिए और सार्वजनिक स्थानों पर उनकी आवाज किसी के कानों में नहीं पड़नी चाहिए। महिलाओं के भी नहीं। इसलिए कुरान पढ़ते समय भी उनकी आवाज सुनाई नहीं देनी चाहिए। पूर्वी लोगार प्रांत में एक कार्यक्रम के दौरान मंत्री खालिद हनफी ने इसकी घोषणा की।

अफगानिस्तान में साल 2021 में सत्ता सँभालने के बाद से तालिबान महिलाओं के खिलाफ एक के बाद एक फरमान जारी कर रहा है। स्कूल-कॉलेज एवं नौकरीपेशा से निकालने के बाद तालिबान ने एक और विचित्र फरमान जारी किया है। तालिबान ने कहा कि इबादत करते समय महिलाओं की आवाज सुनाई नहीं देनी चाहिए। तालिबान ने महिलाओं की आवाज को ‘आवारा’ बताया है।

तालिबान के मंत्री मोहम्मद खालिद हनफी ने अपने फरमान में कहा कि औरतों की आवाज को आवारा माना जाता है। इसलिए उन्हें छिपकर रहना चाहिए और सार्वजनिक स्थानों पर उनकी आवाज किसी के कानों में नहीं पड़नी चाहिए। महिलाओं के भी नहीं। इसलिए कुरान पढ़ते समय भी उनकी आवाज सुनाई नहीं देनी चाहिए। पूर्वी लोगार प्रांत में एक कार्यक्रम के दौरान मंत्री खालिद हनफी ने इसकी घोषणा की।

हनफी ने कहा, “जब एक वयस्क महिला प्रार्थना करती है और दूसरी महिला उसके पास से गुजरती है तो उसे इतनी ऊँची आवाज में प्रार्थना नहीं करनी चाहिए कि वह सुन सके।” म्यूजिक को लेकर उन्होंने आगे कहा, “अगर उन्हें प्रार्थना करते समय (एक-दूसरे की) आवाज सुनने की भी अनुमति नहीं है तो उन्हें गाने की अनुमति कैसे दी जा सकती है, किसी और चीज की तो बात ही छोड़िए।”

हनफी ने कहा, “एक महिला के लिए किसी अन्य वयस्क महिला के सामने कुरान की आयतें पढ़ना वर्जित है। यहाँ तक कि तकबीर (अल्लाह हु अकबर) के नारे लगाने की भी अनुमति नहीं है।” उन्होंने कहा कि वे सुभानाल्लाह भी नहीं कह सकतीं। एक महिला को अजान देने की अनुमति भी नहीं है। हनफी की टिप्पणी का ऑडियो मंत्रालय के सोशल मीडिया मंच पर साझा किया गया था, लेकिन बाद में हटा दिया गया।

मंत्री ने कहा कि नैतिकता कानूनों के तहत ये नए प्रतिबंध लगाए गए हैं और उन्हें इसका पालन करना होगा। इन कानूनों के तहत महिलाओं को घर के बाहर बिना बुर्के के निकलना, ऊँची आवाज में बात करना और अपना चेहरा दिखाने पर प्रतिबंध लगाया गया है। इसके अलावा, लड़कियों को छठी कक्षा के बाद पढ़ाई पर रोक और महिलाओं को नौकरियों से बाहर रखा गया है।

यह फरमान तालिबान द्वारा इस साल अगस्त में लागू किए गए उस नए कानून ठीक दो महीने बाद आया है, जिसमें महिलाओं को घर से बाहर निकलते समय चेहरे सहित पूरे शरीर को ढकने का आदेश दिया गया है। तालिबान के अधिकारी महिला स्वास्थ्य कर्मियों को बात करने से मना करते हैं, खासकर पुरुष रिश्तेदारों से।

हेरात में दाई का काम करने वाली एक महिला ने एक टीवी चैनल को कहा, “जब हम काम पर जाते हैं तो वे हमें चेकपॉइंट पर बात करने की भी अनुमति नहीं देते हैं और क्लीनिकों में हमें पुरुष रिश्तेदारों के साथ चिकित्सा मामलों पर चर्चा नहीं करने के लिए कहा जाता है।” दाई ने बताया कि उसने आठ सालों तक दूरदराज के स्वास्थ्य क्लीनिकों में काम किया है।

विदेश में रहने वाले अफगान कार्यकर्ताओं ने तालिबान के इस आदेश की निंदा की है। ऑस्ट्रेलियाई हजारा एडवोकेसी नेटवर्क की ज़ोहल अज़रा ने कहा, “पिछले महीने तालिबान द्वारा सार्वजनिक रूप से महिलाओं की आवाज़ और चेहरे पर प्रतिबंध लगाने के बाद स्थिति और खराब होने की कल्पना करना कठिन है। इस आदेश के साथ हमने देखा कि महिलाओं को नुकसान पहुँचाने की तालिबान की क्षमता की कोई सीमा नहीं है।”

अज़रा ने कहा, “अफगानिस्तान में सत्ता में लौटने के बाद से तालिबान ने 105 से अधिक आदेशों और फतवों को लागू करके महिलाओं और बच्चियों के सार्वजनिक जीवन को समाप्त कर दिया है। इन्हें हिंसक और मनमाने ढंग से लागू किया जाता है, जिसमें हिरासत, यौन शोषण, यातना और क्रूरता या अपमानजनक व्यवहार एवं दंड जैसे कि महिलाओं और लड़कियों को पत्थर मारना और कोड़े मारना शामिल हैं।”

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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