Sunday, November 17, 2024
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₹3,72,618 करोड़ का घाटा: ट्रंप मामले पर फेसबुक और ट्विटर को एक सप्ताह में लोगों ने दिखाई ‘औकात’

एक निर्णय के कारण इतना नुकसान देखकर ट्विटर प्रमुख को अब अपने निर्णय पर पछतावा होने लगा है। उनका कहना है कि उनके सामने असामान्य और मुश्किल परिस्थितियाँ थीं जिसकी वजह से पूरा ध्यान लोगों की सुरक्षा पर केंद्रित करना पड़ा। उन्होंने अपनी मजबूरी बताते हुए अफसोस जताया और कहा कि...

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनॉल्ड ट्रंप को अपने प्लेटफॉर्म से ब्लॉक करने के बाद कई सोशल मीडिया साइट्स को अरबों का नुकसान झेलना पड़ा। ट्विटर और फेसबुक जैसे महारथियों को ही अपने एक फैसले के चलते कुल 51.2 बिलियन डॉलर यानी 3 लाख 72 हजार करोड़ रुपए का घाटा हुआ।

हैरानी की बात यह है कि ट्रंप समर्थकों ने इन टेक दिग्गजों को मात्र एक हफ्ते में ही इस जगह पहुँचा दिया। कैपिटल हिल में हिंसा के बाद ट्रंप को अलग-अलग प्लेटफॉर्म से ब्लॉक किया गया था।

ट्रंप को ब्लॉक करने से पहले फेसबुक, ट्विटर ने परिणामों की शायद कल्पना नहीं की थी। उन्होंने केवल अतिरिक्त हिंसा की संभावना के मद्देनजर प्रतिबंध लगाया। बाद में पता चला कि फेसबुक को सोमवार तक 4% और मंगलवार को 2.2% की गिरावट देखनी पड़ी क्योंकि शेयरधारकों ने स्टॉक डंप कर दिया था। नतीजतन मंगलवार को बाजार बंद होने तक फेसबुक की मार्केट $47.6 बिलियन नीचे रही।

इसी तरह ट्विटर ने सप्ताह की शुरुआत के साथ 6.4% की गिरावट दर्ज की और मंगलवार को बाजार बंद बोने तक 2.4 % की गिरावट हुई। ट्विटर के मार्केट कैप में कुल गिरावट 3.5 बिलियन डॉलर की हुई। ट्विटर के लिए यह दर बुधवार को 2.9% बढ़ी लेकिन फेकबुक उसी हालत में रहा।

बता दें कि एक निर्णय के कारण इतना नुकसान देखकर ट्विटर प्रमुख को अब अपने निर्णय पर पछतावा होने लगा है। उनका कहना है कि उनके सामने असामान्य और मुश्किल परिस्थितियाँ थीं जिसकी वजह से पूरा ध्यान लोगों की सुरक्षा पर केंद्रित करना पड़ा। उन्होंने अपनी मजबूरी बताते हुए अफसोस जताया और कहा कि ट्रंप के अकॉउंट पर बैन लगाना एक तरह से ट्विटर की असफलता भी है क्योंकि वह इस प्लेटफॉर्म पर स्वस्थ संवाद को बढ़ावा देने के लिए जरूरी कदम नहीं उठा सके।

जैक ने इस संबंध में 14 जनवरी 2021 को कई ट्वीट किए। उन्होंने कहा कि वह न तो कोई गर्व महसूस कर रहे हैं और न ही जश्न मना रहे हैं। उनके अनुसार कई बार ट्रंप को चेतावनी दिए जाने के बाद उनके अकॉउंट को हटाया गया। उनका निर्णय जनसुरक्षा के मद्देनजर लिया गया था।

दूरगामी परिणामों पर बात करते हुए उन्होंने कहा, “इस तरह की कार्रवाई से जनसंवाद में बाधा पैदा होती है और ये हमें बाँटता है। इससे वैश्विक संवाद के हिस्से पर किसी एक व्यक्ति या कंपनी का नियंत्रण मजबूत होता है और मुझे लगता है कि यह भयावह है।”

उनके अनुसार, “अभी तक ट्विटर जैसे प्लेटफॉर्म की शक्तियों और उत्तरदायित्व को लेकर संतुलन बना हुआ था क्योंकि ये इंटरनेट का एक छोटा सा हिस्सा है। अगर लोग हमारे नियमों से सहमत नहीं होते तो वे आसानी से दूसरी सेवाओं का इस्तेमाल कर सकते हैं। इससे हमारी शक्ति सीमित थी। पिछले हफ्ते इस अवधारणा को चुनौती दी गई जब तमाम टूल प्रोवाइडर ने अपने प्लेटफॉर्म पर कुछ चीजों को खतरनाक समझते हुए बैन लगाने का फैसला किया। मुझे नहीं लगता कि सभी कंपनियों ने एक दूसरे से पूछकर यह फैसला लिया बल्कि कंपनियाँ स्वयं इस नतीजे पर पहुँची। और दूसरी कंपनियों के फैसलों से ही उनका हौसला बढ़ा।”

डॉर्सी कहते हैं कि किसी एक पल के लिए यह प्रतिबंध उचित हो सकता है लेकिन लंबे समय के लिए ये मुक्त इंटरनेट व्यवस्था के आदर्श के लिए विनाशकारी साबित होगा। उनके अनुसार किसी कंपनी की तरफ से होने वाले रेगुलेशन और सरकार की सेंसरशिप में फर्क है मगर कई बार ये दोनों एक जैसे हो सकते हैं। उनका कहना है कि ये वक्त अनिश्चतताओं और संघर्ष से भरा है मगर उनका प्रयास यही है कि वह दुनिया के लोगों के बीच आपसी समझ बढ़ाने और शांतिपूर्ण सह अस्तित्व को प्रोत्साहित कर सकें। इसके लिए उन्हें और ज्यादा पारदर्शी होना पड़ेगा।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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